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अङ्क ११ ]
'इस पत्र के साथ जो पत्र भेजा जाता है वह अपना हाल स्वयं बयान करेगा । आपके उच्च विचारोंकी समष्टि- अर्थात् 'मेरी भावना' - सर्वत्र एक बहुमूल्य रसायनके तौरपर स्वीकृत होती जाती है । यह सज्जन उर्दूमें एक हजार कापियाँ प्रकाशित करना चाहते हैं ।"
थकावट ।
'मेरे पास प्रति दिन 'मेरी भावना' हिन्दी संस्करण की माँगें श्रा रही हैं । क्या आपके पास अथवा बम्बई में कुछ और कापियाँ हैं ? कृपाकर मुझे दो हजार कापियोंका एक बण्डल और भिजवाइये ।"
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आशा है जिन भाइयोंका भाव अब इस पुस्तकको वितरण करके संसारका उपकार करनेका हो, वे उससे शीघ्र सूचित करेंगे ।
सम्पादक ।
थकावट ।
( लेखक - महात्मा गान्धी । )
जब मुझसे कोई कहता है कि लोग अब थकने लगे हैं, कोई नई बात बताइये तब मैं हैरान हो जाता हूँ । तब मैं समझता हूँ कि लोग स्वराज्यका रहस्य नहीं जानते, धर्म-युद्धका अर्थ नहीं समझते ।
स्वराज्य अगर नित्य नया होनेवाला हो तो उसके उपाय भी नये हों। मैं तो स्वदेशीके सिवा दूसरा उपाय नहीं बतला सकता; और अगर हम स्वदेशीसे थक गये हो तो हमें स्वराज्यसे भी थक जाना होगा ।
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जो मनुष्य साँस लेते हुए थकता है वह मरनेकी तैयारी में है । तन्दुरुस्त आदमीकी साँस चला करती है, नाड़ी
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चलती है, आँख भी अपना काम करती है, पर इसकी खबर तक उसको नहीं रहती । जरूरी क्रियाओंको करते हुए वह कभी नहीं थकता । कवि कभी अपनी शक्तिके उपयोगसे नहीं थकता, और जो थक जाता है वह कवि हई नहीं । जो सारङ्गीकी धुन में मस्त है वह कभी नहीं थकता । इसी प्रकार अगर हमपर स्वदेशीका गाढा रङ्ग चढ़ा होगा तो हम नहीं थक सकते, बल्कि हम देख सकेंगे कि जितनी सीढ़ियाँ हम स्वदेशीकी चढ़े हैं, उतनी ही स्वराज्य की भी चढ़े हैं और जिस प्रकार हम स्वराज्यका रास्ता तय करते हुए कभी थक नहीं सकते, उसी प्रकार स्वदेशीका मार्ग आक्रमण करते हुए भी हम नहीं थक सकते। ज्यों ज्यों मनुष्य उत्तम और पोषक हवामें आगे बढ़ता है, त्यो त्यों वह अधिक शक्तिमान होता जाता है; ऐसा ही अनुभव हमें भी होना चाहिए । ज्यों ज्यों हम स्वदेशीकी मंजिल अधिकाधिक तय करते हैं, त्यों त्यों हमारा बल अधिक बढ़ता जाता है । एक साल के पहले जो लोग चरखेका मजाक उड़ाया करते थे, आज वे कहाँ हैं ? श्रीयुत प्रफुल्लचन्द्र राय हमारे एक महान् विज्ञानाचार्य हैं। वे श्रीयुत वसुकी जोड़के हैं.! सूक्ष्म शास्त्रोंके पर खैया हैं । स्वयं कितनी ही कम्पनियोंसे सम्बन्ध रखते हैं। पर उन्हें भी कुबूल करना पड़ा है कि बङ्गालके साढ़े चार करोड़ स्त्री-पुरुषोंका एकमात्र आधार चरखा ही है । ऐसी हलचल से जो थक जाता है, वास्तवमें वह उसका रहस्य जानता ही नहीं है ।
भला थका हुआ योद्धा क्या कर सकता है ? जो योद्धा हमेशा अपनी लड़ाईकी गतिको बदला करता है उसकी हार हुए बिना नहीं रहने की। हम तो उत्तरोत्तर आगे ही बढ़ते गये हैं । धारा
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