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________________ L अंक ११] आधुनिक भूगोल और भारतवर्ष के प्राचीन ज्योतिषी । अर्थात् पृथ्वी की छाया चन्द्रमापर पड़ने से चन्द्रबिम्ब मलिन या निस्तेज हो जाता है । वेद-पुराण ग्रन्थोंमें जो राहुको ग्रहणो त्पादक बताया है, उसका भास्काराचार्यने बड़े कौशलले समर्थन और खण्डन एक ही साथ कर दिया है और उपर्युक्त सिद्धान्तकी पुष्टि भी की है। यथा दिग्देशकालावरणादिभेदान्नछादको राहुरिति ब्रुवन्ति । यन्मानिन: केवल गोलविद्यास्तत्संहिता वेदपुराणबाह्यम् ॥२॥ राहु कुभामण्डलगः शशाङ्कं शशाङ्कगश्छादयतीन बिम्बम् । तमोमयः शम्भुवर प्रदानात् सर्वागमानामविरुद्धमेतत् ॥ १०॥ [ सि० शि० ग्रहणवासना ] दिशा, प्रदेश, काल और आवरणके परस्पर भेद होने से बहुतसे मानी और केवल गोल विद्याके ज्ञाता राहुको छादक नहीं कहते। यह मत वेद पुराणादिसे विरुद्ध है । इस विषय में सर्वसम्मत मत यह है कि ब्रह्मा के वरदानसे तमोमय राहु चन्द्र मण्डल में प्रविष्ट होकर सूर्यका और पृथ्वीकी छाया में प्रविष्ट होकर चन्द्रमाका आच्छादन करता है । " ऊपरके दोनों अवतरणोंसे यह भी स्पष्ट है कि भास्कराचार्य चन्द्रमाको प्रकाशवाला नहीं समझते थे । उसके लिए " असितया श्रात्ममूर्त्या ” पदका प्रयोग किया है। उसका वर्ण उन्होंने श्याम बतलाया है । सूर्यसिद्धान्त के "चनवत्" से भी चन्द्रमा प्रकाशरहित ही बोध होता है। किन्तु इससे भी अधिक स्पष्ट रीतिले एक और स्थान पर यह कहा है कि Jain Education International ३५१ तरणि किरण सङ्गादेष पीयूषपिण्डो दिनकरदिशि चन्द्रश्चन्द्रिकाभिश्चकास्ति । तदितरदिशिबाला कुन्तलश्यामल श्रीर्घटइत्र निजमूर्त्तिच्छाययै वातयस्थः॥ १ ॥ सूर्यादधस्थस्य विधोरधस्थं म नृदृश्यं सकलासितं स्यात् दर्शेऽथ भार्घान्तरितस्य शुक्लं तत्पौर्णमास्यां परिवर्तनेन ||२|| सि० शि० शृङ्गोनांतवासना । अर्थात् सूर्य की किरणों के संयोग से इस अमृतपिड चन्द्रमाका सूर्य की ओरवाला भाग चाँदनी से चमकता है और दूसरी ओरका भाग नवीन स्त्रीके श्याम केशोंके तुल्य काला रहता है; क्योंकि वह धूपमें र हुए घड़ेकी भाँति अपनी ही छायासे ढका रहता है । अर्थात् जैसे धूपमें रक्खे हुए घड़ेका सूर्यके सम्मुखवाला भाग प्रकाशित और दूसरी तरफवाला भाग प्रकाशहीन रहता है, वैसे ही चन्द्रमाका एक भाग प्रकाशित और दूसरा प्रकाशहीन होता है । अमावस्याको सूर्यके नीचे स्थित चन्द्रमाका उससे नीचे स्थित मनुष्योंको दिखलाई देनेवाला नीचे का भाग काला हो जाता है और अमावस्या के बाद ६ राशि भ्रमण करनेके अनन्तर पूर्णिमाको चन्द्रमाका वह भाग चमकीला हो जाता है । इससे न केवल यह प्रकट है कि चन्द्रमा स्वयं प्रकाशहीन है, किन्तु यह भी असंदिग्ध है कि भास्कराचार्य के मतसे चन्द्रमाकी चाँदनी सूर्य ही का दिया हुआ प्रकाश है । साथ ही यह भी स्पष्ट है कि चन्द्रमा सूर्य की अपेक्षा पृथ्वी के बहुत निकट माना जाता था । अन्यथा सूर्य और पृथ्वीके बीचमें श्राकर उसका सूर्य-बिम्बको ढक लेना कैसे सम्भव होता ? यही क्यों, जब For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522893
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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