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जैनहितैषी ।
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विश्वास था कि पृथ्वी स्थिर है और सूर्यादि उसके चारों ओर भ्रमण करते हैं । किन्तु यह कहना श्रयुक्त होगा कि ऐसा एक भी ज्योतिषी न था जो पृथ्वीको घूमती हुई मानता हो । श्रार्यभट एक बहुत विख्यात ज्योतिषी हो गये हैं और वे सूर्यकेन्द्रक ज्योतिषके प्रचारक वृद्धार्यभटके नाम से विख्यात हैं। उनका समय ४७६ ई० निश्चित किया गया है। उन्होंने अपने श्रर्यभटीय, श्रार्यभट सिद्धान्त, अथवा श्रार्यसिद्धान्त नामक ग्रन्थ में पृथ्वी के भ्रमणका सिद्धान्त प्रतिपादित किया है । अनेक पाठकों को यह जानकर श्राश्चर्य होगा कि यूरोप में तो कोपर्निकसने यह सिद्धान्त १५ वीं शताब्दी में प्रचलित किया था, किन्तु इस भारतवर्ष में उसके एक हज़ार वर्ष पहले ही आर्यभट इस सिद्धान्तको स्पष्ट भाषामें लिख गये हैं । वे लिखते हैं:
अनुलोम गतिनौस्थ:
पश्यत्यचलं विलोमगं यद्वत् । अचलानि भानि तद्वत्
समपश्चिमगानि लङ्कायाम् ॥ इसका भाव यो है - " जैसे नाव पर चढ़े हुए मनुष्यको तीरके अचल वृक्ष आदि नाव से विपरीत दिशामें चलते हुए जान पड़ते हैं, उसी प्रकार अचल नक्षत्र पृथ्वी पर से पूर्व से पश्चिम दिशामें जाते हुए प्रतीत होते हैं।" अर्थात् पृथ्वी पश्चिमसे पूर्व दिशामें गमन करती है ।
आर्यभटीयके टीकाकार परमेश्वर इस श्लोक की टीकाके अन्तमें लिखते हैं "परमार्थतस्तु स्थिरैव भूमिः” । और भी
भूमेः प्राग्गमनं नक्षत्राणां गत्यभावं. चेच्छन्ति केचित्तन्मिथ्याज्ञान वशात् । इस टीकासे इसमें तनिक भी सन्देह
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[ भाग १५
में
नहीं रह जाता कि आर्यभटका वास्तवयह मत था कि पृथ्वी घूमती है । किन्तु दुर्भाग्यवश श्रार्यभट के बाद के प्रायः समस्त ज्योतिषियोंने इस मतका खण्डन किया है । किन्तु उस खण्डनसे भी प्रकट है कि उस समय यद्यपि वह सर्वमान्य न हो सका, तब भी वह मत
ज्ञात श्रवश्य था ।
ग्रहण होनेका कारण ।
ग्रहण के समय सूर्य और चन्द्रमाके बिम्बको कौन ढकता है, इस प्रश्न के उत्तरमें सूर्यसिद्धान्त कहता है
छादको भास्करस्येन्दुरधः स्थोघनवद्भवत् । भूच्छायां प्राङ्मुखश्चन्द्रो
विशत्यस्य भवेदसौ ||९|| अध्याय ४ मेघ के समान चन्द्रमा नीचे आकर सूर्य को ढक लेता है। पूर्व की ओर चलता हुआ चन्द्रमा जब पृथ्वीकी छायामें प्रवेश करता है, तब उसका ग्रहण होता है । सिद्धान्तशिरोमणिमें भी इसी आशयका वृत्तान्त है
पश्चाद्भागाज्जलदुवदधः
संस्थितोऽभ्येत्य चन्द्रो । भानोर्बिम्बं स्फुरदसितया छादयत्यात्ममूर्त्या ॥१॥
सि० शि० ग्रहणवासना मेघ के समान नीचे स्थित चन्द्रमा पीछे से आकर सूर्यबिम्बको अपनी श्याममूर्त्तिसे ढक लेता है ।
समकलकाले भूभालगति
मृगाङ्के यतस्तया म्लानम् । इ० [ ३ ग्रहणवासना ] जिस समय सूर्य और चन्द्रकी स्फुट कला समान होती हैं, उस समय भूभा
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