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________________ अंक ११] आधुनिक भूगोल और भारतवर्षके प्राचीन ज्योतिषी । ३४६ सदा रात्रि ही रहेगी। इस प्रकार मेरु ठीक ठीक शान था। सिद्धान्त शिरोमणिमें प्रदेश ६ मासका दिन होता है। लिखा है वासना भाग्यमें “मेरो सततं समा- प्रोक्तो योजनसंख्यया धेम्" की व्याख्या करते समय भास्करा- कुपरिधिः सप्ताङ्ग नन्दाब्धयः(४९६७) चार्यने स्पष्ट लिखा है कि "मेरी षण्मासं स्तव्यासः कुभुजङ्गसायकदिनम्" मेरु पर ६ मासका दिन होता है। भुवः सिद्धांशकेनाधिकः (१८५११) सूर्य सिद्धान्तमें भी यही बात लिखी है पृष्ठक्षेत्रफलं तथा मेरौ मेषादि चकार्धे युगगुणनिशेच्छराष्टाद्रयो(७८५३०३४) देवाः पश्यन्ति भास्करम् । भूमेः कन्दुकजालवत्कुसकृदेवोदितं तद्वद. परिधि व्यासाहते प्रस्फुटम् ॥५२॥ सुराश्चतुलादिगम् ॥६७॥अध्याय।।१२॥ सि० शि० भुवनकोश मेरु-स्थित. देवता लोग सूर्यको जब भूमिकी परिधि ४६६७ योजन कही तक मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या गई है। उसका व्यास १५८१४योजन और इन ६ राशियों में रहता है, बराबर देखते उसका पृष्ठ क्षेत्रफल ७८५३०३५ योजन रहते हैं। और असुर लोग तुलादि शेष है। यह क्षेत्रफल गेंदके जालके समान ६ राशियों के अन्तर्गत सूर्यको बराबर ऊपरका होता है और भूपरिधि और देखते हैं। और भी व्यासके गुणनसे सिद्ध होता है। सकृदुद्गतमब्दार्ध इसमें योजनकी लम्बाईका ठीक पश्यन्त्यक सुरासुराः। ठीक पता लगना कठिन है; क्योंकि भिन्न पितरः शशिगाः पक्षं भिन्न प्राचार्योंने योजनकी भिन्न भिन्न व्याख्या दी है। अतः भास्कराचार्य के स्वदिनं च नराभुवि ।।७५।। अध्याय१२ भूव्यासकी आधुनिक ७६१२ मीलसे - देवता और असुर लोग एक बार तुलना करना कठिन है। किन्तु क्षेत्रफल उदय हुए सूर्यको बराबर आधे वर्ष तक और व्यासका जो सम्बन्ध उपर्युक्त श्लोक. देखते रहते हैं। पितगण चन्टस्थित में दिखाया गया है, उससे निर्विवाद सिद्ध होनेके कारण पन्द्रह दिन तक और है कि पृथ्वी गेंदके समान गोल मानी पृथ्वीके मनुष्य एक दिन तक ही उसे 'गई थी। और योजन ४ मीलका हो या ५ देखते हैं। मीलका, यह भी स्पष्ट है कि पृथ्वीके ध्रुव देशोंके ६ मास लम्बे दिनकी व्यासमें उन्होंने बहुत ग़लती नहीं की थी। जिस बातको लेकर लोग आधुनिक सम्भव है कि वे उसे ठीक ठीक जानते भूगोलका मज़ाक उड़ानेकी चेष्टा किया हो । सूर्यसिद्धान्तमें भी व्याल १६०० करते हैं, उसके विषयमें हमारे प्राचीन योजन बताया गया है। जो हो, वे पृथ्वी. ज्योतिषियों को कितना सूक्ष्म ज्ञान था, को एक लाख योजन लम्बी चौड़ी तो यह ऊपरके अवतरणोंसे स्पष्ट है। नहीं समझते थे, यह निश्चय है। ___ यही नहीं, इन ज्योतिषियोंको पृथ्वीके पृथ्वीका भ्रमण । व्यास और उसके क्षेत्रफलका भी प्रायः लगभग सभी प्राचीन ज्योतिषियोंका Jain Education International 8 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522893
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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