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जैनहितैषी
[भाग १५ है, ऐसा मालूम होता है; जैसे जममें यदि मेरु रात्रिका कारण है तो मनुष्यकी छाया उलटी मालूम होती है। मनुष्योंको वह उनके और सूर्यके बीच किन्तु ऊपर किंवा नीचे रहनेवाले सब में क्यों नहीं दीखता है ? और मेरु पर्वत मानन्दसे निवास करते हैं जैसे हम लोग उत्तर में है फिर सूर्य दक्षिण गोलमें क्यों यहाँ पर रहते हैं।
उदय होता है ? पृथ्वी परसे वस्तुएँ गिर क्यों नहीं सूर्योदयका समय भिन्न होता है, पड़तीं, इसका उत्तर शिद्धान्तशिरोमणि- इसका वर्णन उन्होंने यों किया हैमें यों दिया है:
.. लङ्कापुरेऽस्य यदोदयः । * आकृष्टशक्तिश्च मही तया यत्
__ स्यात्तदा दिनार्द्ध यमकोटिपुर्याम् । खस्थं गुरु स्वाभिमुखं स्वशक्त्या ।
___ अधस्तदा सिद्धपुरेस्तकालः आकृष्यते तत्पततीव भाति
स्याद्रोमके रात्रिदलं तदैव ॥४४॥ ' . समे समन्तात् क पतत्वियं खे ॥६॥ ...
-सि० शि० भुवनकोशः । . भुवनकोशः पृथ्वीमें आकर्षणशक्ति है । उससे
जब लंका सूर्योदय होगा, उस समय
यम कोटिमें दिनार्द्ध और नीचे सिद्धपुरमें आकाशमें फेंकी हुई भारी वस्तुको पृथ्वी
अस्तकाल एवं रोमकपत्तनमें आधी रात अपनी तरफ खींचती है। और वह भारी
होगी। वस्तु पृथ्वीकी ओर गिरती हुई मालूम . '
___ लंकापुरी आदि पृथ्वी पर किस स्थान होती है। पृथ्वी स्वयं कहाँ गिर सकती है क्योंकि आकाश सब तरफ समान है।
' पर स्थित हैं, यह बात ऊपर "लङ्का
कुमध्ये" आदि द्वारा बतलाई जा चुकी जिस आकर्षणशक्तिका आविष्कार
है । भूगोलसे परिचित पाठक सूर्योदय यूरोपमें न्यूटनने १७ वीं शताब्दीमें किया
कालके इस वर्णनमें और आधुनिक था, उसी आकर्षणशक्तिका १२ वीं
वर्णनमें किसी भी प्रकारका अन्तर न शताब्दीके रचित इस भारतीय ग्रन्थमें
पावेगे। इतना स्पष्ट वर्णन पढ़कर विचारवान् पाठकों को अवश्य गर्व होना चाहिए कि
पृथ्वी पर कहीं दिन बड़ा और कहीं
छोटा, इसका कारण बतलाकर ध्रुवोंके भारतके प्राचीन ज्योतिषी किसीसे इस
समीप दिन कितना बड़ा होता है, इस विद्यामें कम न थे।
विषयमें भास्कराचार्य कहते हैंजो लोग चपटी पृथ्वीपर मेरुकी प्रदक्षिणा करता हुआ सूर्यको मानते हैं लम्बधिका क्रान्तिरुदक् च यावत् और दिन और रात होनेका कारण सूर्यका ___ तावहिनं सन्ततमेव तत्र । मेरुकी प्रोटमें आ जाना समझते हैं, उनसे यावञ्च याम्या सततं तमिस्रा भास्कराचार्य पूछते हैं
ततश्च मेरौ सततं समाधम् ॥७॥ यदिनिशाजनकः कनकाचलः
-त्रिप्रश्नवासना। .. किमुतदन्तरगः सन दृश्यते ।
सूर्यकी उत्तर क्रान्ति जब तक लम्बांशउदगयं ननु मेरुरथांशुमा.
से अधिक रहेगी तब तक वहाँ सदा दिन कथमुदेति च दक्षिणभागके ॥१२॥ ही रहेगा। और उसी प्रकार जब तक
सि०शि० भुवनकोशः दक्षिण क्रान्ति अधिक रहेगी तब तक
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