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________________ अंक ११] आधुनिक भूगोल और भारतवर्ष के प्राचीन ज्योतिषी । हैं । जैनसाहित्य और इतिहासकी सुन्दर चर्चा करनेवाला सबसे पहले यही एक पत्र था। इसमें आजतक उत्तम कोटिके ऐसे अनेक ऐतिहासिक लेख प्रकट हो चुके हैं, जिनसे विद्वानोंको बड़ा लाभ पहुँचा है। जैनसमाजकी वर्तमान परिस्थितिपर भी प्रकाश डालनेवाले अच्छे अच्छे मार्मिक और विचारणीय लेख इसमें समय समय पर प्रकाशित होते रहते हैं । इसलिए प्रत्येक विचारशील जैनीको इस पत्रको अपनाकर अपने ज्ञानकी वृद्धि करते रहनेका हम साग्रह निवेदन करना अपना कर्तव्य समझते हैं ।" एक पत्र में आपने लिखा था - " हितैषी पढ़ गया हूँ । 'जैनाचार्योंका शासनभेद' बहुत अच्छा लिखा गया है ।" 1 आधुनिक भूगोल और भारत वर्षके प्राचीन ज्योतिषी । (ले० - श्रीयुक्त बाबू निहाल करणजी सेठी एम. एस.सी.) भूगोल सम्बन्धी जिन सिद्धान्तोंको आजकलका वैज्ञानिक संसार मानता है, उनका खंडन जैन समाजमें कुछ ऐसे 'ढंग से किया जाता है कि जिससे साधारण लोगोंको यह भ्रम हो गया है कि ये सिद्धान्त केवल यूरोपके ही विद्वानोंके हैं। और बहुत लोग समझते हैं कि भारतवर्ष के ज्योतिषी गए इन सिद्धान्तोंसे विपरीत जैन शास्त्रोक्त सिद्धान्तोंको ही मानते थे और उनके ही द्वारा वे अपनी समस्त गणनाएँ किया करते थे । किन्तु यदि वे आर्यभट्ट, बराहमिहिर, लल्ल, श्रीपति, भास्कराचार्य श्रादि किसी भी प्रख्यात ज्योतिषीके ग्रंथोंको पढ़े तो उन्हें वह समझने में देर न लगेगी कि जिस ज्योतिष ज्ञान के कारण भारतका समस्त Jain Education International ३४५ संसार में आदर था और अब भी है, तथा जिसकी सहायता से पंचांगादि बनाये जाते हैं, सूर्य चन्द्रमा के ग्रहणोंका समय ठीक ठीक निर्णय कर लिया जाता है, वह मूलमें आधुनिक यूरोपीय सिद्धान्तोंसे भिन्न न था । यह सच है कि उस समय के पश्चात् बहुतसे नये श्राविष्कार हो चुके हैं, और प्राचीन सिद्धान्तों में बहुत कुछ सुधार भी हुए हैं ।. यूरोपीय विद्वान् भी इस बातको मानते हैं कि आधुनिक ज्योतिष इन्हीं भारतीय ज्योतिषियों की रखी हुई नींव पर श्रवलम्बित है । यह लज्जाका विषय है कि जिस ज्ञानके कारण हमारा गौरव है, उसीमें हम आज इतने पिछड़ गये हैं कि स्वयं अपनी वस्तुको पहचान भी नहीं सकते और दूसरों की समझकर उसका तिरस्कार करते हैं। इस मिथ्या भ्रमको दूर करनेके लिये पाठकों म मैं सूर्य सिद्धान्त और सिद्धान्त शिरोमणि नामक दो प्रख्यात ग्रन्थोंसे पृथ्वीके आकार, आकर्षण शक्ति, सूर्य चन्द्रग्रहण आदि कुछ साधारण बार्तोसे सम्बन्ध रखनेवाले श्लोकोंको रखना चाहता हूँ ताकि इस विषयका अनुचित भ्रम दूर हो जाय । परन्तु ऐसा करने से पहले यह श्रावश्मक और मुनासिंघ मालूम होता है कि इन दोना ग्रन्थोंका कुछ परिचय दे दिया जाय । ज्योतिष शास्त्र के १० प्राचीन सिद्धान्त ग्रन्थ माने जाते हैं । उनमें 'सूर्य' सिद्धान्त' कुछ लोगोंके मत से सबसे प्राचीन, और कुछ लोगोंके मतसे एक दोको छोड़कर प्रायः सबसे प्राचीन है । यह ठीक ठीक ज्ञात नहीं है कि किसने और कब इस ग्रंथकी रचना की, किन्तु इसमें सन्देह नहीं कि इस ग्रन्थका बहुत श्रादर है और यह प्राचीन ग्रंथोंमें सर्वश्रेष्ठ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522893
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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