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________________ अङ्क ६ संकटनिवारण फंडका ट्रस्ट डीड। संकटनिवारण फंडका ट्रस्टडीड। । पत्र ( Deed of Trust ) द्वारा, एक " विश्वास कोष (Trust) स्थापित करता [सेठी अर्जुनलालजीके मज़रबन्द हूँ, कि ऊपरकी रकममें एक सालका किये जानेके समय ब्रह्मचारी शीतल- ब्याज दर ॥ सैंकड़ा जोड़कर १२७६प्रसादजीकी प्रेरणासे उक्त नामका जो ६-३ एक हज़ार, दो सौ छिहत्तर रुपये, फएड खोला गया था, उसका कुछ रुपया नौ पाने, तीन पाई, (जिसको मैंने 'ट्रेडिंग बाबू अजितप्रसाद साहब वकील हाई ऐण्ड बैंकिंग हाउस' लखनऊमें ब्याजपर कोर्ट लखनऊके पास जमा हुआ था, जमा कर दिया है)* जैन जनताके उपजिसका वे हिसाब प्रकाशित करते रहे कारार्थ जमा रहेगी। चाहे इस ही बैंकमें हैं। हालमें बाबू साहबने, अपने सिरका चाहे कहीं और-और इसके ब्याज अथवा बोझा हलका करनेके लिए, उक्त फण्डकी यदि आवश्यकता हो, तो मूलसे, जैन रकमपर सूद लगाकर उसे 'ट्रेडिंग ऐण्ड जनताका यथोचित उपकार होता रहेगा। बैंकिंग हाउस लखनऊ में तीन व्यक्तियों- इस कोषके प्रबन्धक (Trustees) के नामसे सूदपर जमा करा दिया है श्रीमान् जैनधर्भ-भूषण ब्रह्मचारी शीतल- . और साथ ही, उसका एक ट्रस्ट डीड प्रसादजी, पण्डित नाथूराम प्रेमी बम्बई, लिखकर उसकी रजिस्टरी भी करा दी पण्डित जुगुलकिशोरजी सरसावा, है। ट्रस्ट डीड (Trust deed) की एक ज़िला सहारनपुर, श्रीयुत ज्योतीप्रसाद, नकल बाबू साहबने जैनहितैषीमें प्रका- सम्पादक जैनप्रदीप, देवबन्द और मैं शित करनेके लिए हमारे पास भेजी है अजितप्रसाद रहेंगे। प्रबन्धक बहसम्मतिजिसे हम अपने पाठकोंके अवलोकनार्थ से इस कोषके उपयोगार्थ नियम बनावें। नीचे प्रकट करते हैं-सम्पादक।] मैं इस विश्वासपत्रको यथाशक्ति बदल __ सर्वसाधारण जनता और विशेष (Modify) वा खण्डित (Cancel) कर करके जैन जनताको विदित हो कि सकूँगा। और मेरे देहान्तपर अन्य प्रबश्रीमान जैनधर्मभूषण ब्रह्मचारी शीतल- न्धक ऐसा ही बहुसम्मतिसे कर सकेंगे। प्रलादजीके उपदेशले जैन जनतामें पण्डित अजितप्रसाद अर्जुनलाल सेठी बी० ए० को सन् १६१४ (Sd) Ajit Prasad में नज़रबन्द किये जाने पर एक कोष वकील हाईकोर्ट, लखनऊ । सङ्कट निवारण फण्डके नामसे स्थापित किया था। कुछ रुपया उस फण्डका मेरे (Sd) Witness पास आता रहा और जमाखर्च होता Gokul Chand Rai रहा, जिसका हिसाब मैं जैन गज़ट और Vakil . जैनमिंत्र समाचारपत्रों में प्रकाशित करता 22-3-2 Registerd as No. रहा। मई १६२० में मेरे पास १२०४-६- (Sd) Jaswant Rai 199 in Book in ३ थे (जैनमित्र मिती आषाढ़ सुदी १५ से Shamna Vol.293. pp. 97 22-3-2 &98 on 30.3.21. २४४६)। एक सालके करीब हो चुका, किन्तु जैन जनताने इस विषयमें अभी ___ * इस रुपएकी रसीद नं० २५० है जो श्रीमान् तककुछ निर्णय नहीं किया। अतः इस ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद, अजितप्रसाद और पण्डित भारसे हलके होनेके हेतुमें इस विश्वास- जुगलकिशोर के नाम है। Witness Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522889
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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