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________________ - तीर्थोंके झगड़ोंका रहस्य । १३५ कहकर कराई थी कि जिस मार्ग स्त्री... १२-ऐसा मालूम होता है कि दिगको मोक्ष माना है वही सच्चा है। जीत म्बर और श्वेताम्बर प्रतिमाओंमें भेद चाहे किसीकी हुई हो-क्योंकि शास्त्रा- हो जानेके बाद भी बहुत समय तक थोंमें तो हम आजकल भी यही देखते हैं दिगम्बरों और श्वेताम्बरों में मित्रता बनी कि दोनोंही पक्षवाले अपनी अपनी जीत- रही है। बहुत समय तक इस खयालके का डंका पीटा करते हैं-परन्तु यह लोग दोनों सम्प्रदायोंमें बने रहे हैं कि निश्चित है कि उक्त विवाद हश्रा था और एक दूसरेके धर्मकार्यों में बाधा नहीं डालउसी समयसे दिगम्बरों और श्वेताम्ब- नी चाहिए। दोनों को अपने अपने विश्वास. रोंमें विद्वेषका यह बीज विशेष रूपसे के अनुसार पूजा-अर्चा करने देनाही बोया गया था जिसने आगे चलकर सजनता है। अनुसन्धान करनेसे इसके बड़े बड़े विषमय फल उत्पन्न किये। अनेक प्रमाण मिल सकते हैं। . पिछले दिगम्बर-श्वेताम्बर साहित्यका शत्रुजय और पाबूके पहाड़ोंमें श्वेतापरिश्रमपूर्वक परिशीलन करनेसे इस म्बर मन्दिरोंके बीचों बीच दिगम्बर घटनाका निश्चित समय भी मालूम हो मन्दिरोंका अस्तित्व अब भी इस बातकी सकता है और हमारा अनुमान है कि साक्षी दे रहा है कि उस समयके वैभव. दोनों ओरके प्रमाणोंसे वह समय भी सम्पन्न और समर्थ श्वेताम्बरी भी यह एक ही ठहरेगा। * नहीं चाहते थे कि इन तीर्थोपर हमही ११-मुग़ल बादशाह अकबरके समय- हम रहे, दिगम्बरी नहीं पाने पावें। में हीरविजय सूरि नामके एक सुप्रसिद्ध २-गन्धार (भरोंच ) एक प्रसिद्ध श्वेताम्बराचार्य हुए हैं। अकबर उन्हें बन्दरगाह था। वहाँ एक पुराना दिगगुरुवत् मानता था। संस्कृत और गुज- म्बर मन्दिर था। जब वह गिर गया रातीमें उनके सम्बन्धमें बहुतसे ग्रन्थ और उसकी जगह नया श्वेताम्बर मन्दिर लिखे गये हैं। इन ग्रन्थों में लिखा है कि बनवाया गया, तब वहाँके श्वेताम्बर "हीरविजयजीने मथुरासे लौटते हुए भाइयोंने दिगम्बर प्रतिमाओंको एक गोपाचल (ग्वालियर ) की बावन-गजी जुदा देवकुलिका (देहली) में स्थापित भज्याकृति मूर्तिके दर्शन किये।” और कर दिया । यह देवकुलिका अब भी यह मूर्ति दिगम्बर सम्प्रदायकी है, इसमें मौजूद है। कोई सन्देह नहीं । इससे मालूम होता है ३-बिहारमें अबसे १२-१३ वर्ष कि बादशाह अकबरके समय तक भी पहले एक जैन मन्दिर हमने स्वयं देखा दोनों सम्प्रदायोंमें मूर्ति-सम्बन्धी विरोध है जिसके अधिकारी श्वेताम्बर हैं । उसमें नहीं था। उस समय श्वेताम्बर सम्प्रदाय- एक ओर दिगम्बरी वेदिका भी है और के प्राचार्य तक नग्म मूर्तियोंके दर्शन उसमें जो मूर्तियाँ है, उनका दर्शन पूजन किया करते थे। दिगम्बरी भाई किया करते हैं। ४-ओरिएण्टल कालेज लाहौरकेप्रो० • पूर्वोक्त पद्मनन्दिकी ही शिष्य-परम्परामें एक पक्षनन्दि भट्टारक और हुए हैं जिन्होंने शत्रंजय पर्वतके दिग- बनारसीदास जी एम० ए० से मालम स्बर मन्दिरकी प्रतिष्ठा सम्बत् १६८६ में कराई थी। देखो। जैन मित्र भाग २२ अंक १५ । सम्प्रदायोंकी मूर्तियाँ दो पृथक् पृथक् Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522888
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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