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________________ Reg. No. A. की शुद्ध हिन्दीमे हमने न्यायतीर्थ न्याय के कथाग्रन्थों में इससे अच्छी और सुन्दर शास्त्री पं० वंशीधरजी शास्त्रीसे इसकी कविता श्रापको और कहीं न मिलेगी। टीका लिखवाई है और मूलसहित छप- विद्यार्थियों के लिये भी बहुत उपयोगी है। वाया है / जो जैनधर्मके जाननेकी इच्छा शास्त्रसभात्रों में बाँचने के योग्य है। बहुत रखते हैं, उन अजैन मित्रोंको भेटमें देने सुन्दरतासे छपा है / मूल्य सिर्फ 1) रु.। योग्य भी यह ग्रन्थ है। मूल्य 2) कथामें जैनसिद्धान्त। युक्त्यनुशासन सटीक। __एक मनोरंजक कथाके द्वारा जैनधर्ममाणिकचन्द्र-जैनग्रन्थमालाका 15 वाँ की गूढ़ कर्म-फिलासफीको सरलताले ग्रन्थ छपकर तैयार हो गया। इसके मूल समझना हो और एक बढ़िया काव्यका कर्ता भगवान् समन्तभद्र और संस्कृत आनन्द लेना हो तो श्राचार्य सिद्धर्षिको टीकाके कर्ता प्राचार्य विधानन्दि हैं / यह बनाये हुए 'उपमितिभवप्रपचाकथा' भी देवागमकी भाँति स्तुत्यात्मक है और नामक संस्कृत ग्रन्थके हिन्दी अनुवादको युक्तियोंका भाएडार है / अभी तक यह अवश्य पढ़िये। अनुवादक श्रीयुत नाथूराम . ग्रन्थ दर्लभ था। प्रत्येक भण्डारमे इसका प्रेमी / मल्य प्रथम भागका।।)ीर द्वितीय एक एक प्रति अवश्य रहनी चाहिए मू.॥) भागका / -) जैन साहित्यमें अपने ढंगका नियमसार। यही एक ग्रन्थ है। भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यका यह बिलकुल संस्कृत ग्रंथ / / ही अप्रसिद्ध ग्रन्थ है। लोग इसका नाम 1 जीवन्धर चम्बू-कवि हरिचन्द्रकृत। / ) भी नहीं जानते थे। बड़ी मुश्किलसे प्राप्त 2 गद्यचिन्तामणि-वादीभसिंहकृत / 2) करके यह छपाया गया है / नाटक समय ३जीवन्धरचरित-गुणभद्राचार्यकृत / 1) सार श्रादिके समान ही इसका भी प्रचार होना चाहिए / मूल प्राकृत, संस्कृतच्छाया, ४.क्षत्रचूड़ामणि-वादीभसिंहकृत। मू०१) 5 यशोधरचरित-वादिराजकृत। मू०॥) आचार्य पद्मप्रभमलधारि देवकी संस्कृत टीका और श्रीयुत शीतल प्रसादजी ब्रह्म चरचा समाधान / पं० भूधर मिश्र कृत। भाषाका नया ग्रन्थ / हालहीमें छपा चारीकृत सरल भाषाटीकासहित यह . है। मूल्य 2 // -) छपाया गया है। अध्यात्मप्रेमियोंको अवश्य मैनेजर, जैन ग्रथरताका कार्यालय, स्वाध्याय करना चाहिए / मूल्य 2) दो रु.। नयचक्र संग्रह। हीराबाग, पा० गिरगाँव बम्बई / यह उक्त ग्रन्थमालाका 16 वाँ ग्रन्थ बम्बईका माल / है। इसमें देवसेनसूरिकृत प्राकृत नयचक्र बम्बईका सब तरहका माल-कपड़ा, (संस्कृतच्छायासहित) और श्रालाप किराना, स्टेशनरी, पीतल, ताँबा, दवापद्धति तथा माइल धवलक्रत द्रव्यस्वभा. इयाँ, तेल, सावुन आदि-हमसे मंगाइये। वप्रकाश (छायासहित ) ये तीन ग्रन्थ माल दस जगह जाँचकर बहुत सावधानी छपे हैं / भूमिका पढ़ने योग्य है। तैयार और ईमानदारीके साथ भेजा जाता है। हो गया / मूल्य // 4) चौथाई रुपये के लगभग पेशगी भेजना चाहिए / एक बार व्यवहार करके देखिये। ण भाषा। कविवर भूधरदासजीका यह अपूर्व नन्हे हाल हेमचंद जैन, ग्रन्थ दूसरी बार छपाया गया है। इसकी कमीशन एजेण्ट, कविता बड़ी ही मनोहारिणी है। जैनियों- चन्दाबाड़ी, पो० गिरगाँव, बम्बई / Printed & Published by G.K. Gurjar at Sri Lakshini Narayan Press, Jatanbar, Benares City, for the Proprietor Nat 11 au Premi of Bombay 114-21. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522888
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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