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________________ भारतके प्राचीन राजवंश । उत्तमोत्तम जैन ग्रन्थ । हिन्दी में इतिहासका एक अपूर्व ग्रन्थ । नीचे लिखी आलोचनात्मक पुस्तके इस देशमें पहले जो अनेक वंशोके बड़े विचारशीलोंको अवश्य पढ़नी चाहिएँ । बड़े प्रतापी, दानी और विद्याव्यवसनी राजा महाराज हो गये हैं उनके सच्चे साधारण बुद्धि के गतानुगतिक लोग इन्हें इतिहास हम लोग बिलकुल नहीं जानते। न मँगावें। बहुलोंके विषयमें हमने तो झूठी, ऊटपटांग १ ग्रंथपरीक्षा प्रथम भाग । इसकिम्वदन्तियाँ सुन रक्खी हैं और बहतोको में कुन्दकुन्द श्रावकाचार, उमास्वातिहम भूल ही गये हैं । इस ग्रन्थक्षत्रपवंश, श्रावकाचार और जिनसेन त्रिवर्णाचार इन हैहयवंश (कलचुरि) परमारवंश (जिसमें तीन ग्रन्थोंकी समालाचना है। अनेक राजा भोज, मुंज, सिन्धुल आदि हुए हैं), प्रमाणोंसे सिद्ध किया है कि ये असली चौहानवंश (जिसमें प्रसिद्ध महाराज H ' जैनग्रन्थ नहीं हैं-भेषियोंके बनाये हुए पृथ्वीराज हुए हैं ), सेनवंश और पाल- है । मूल्य ।) वंश तथा इन वंशोकी प्रायः सभी शाखा- २ ग्रंथपरीक्षा द्वितीय भाग । ओंके राजाओंका सिलसिलेवार और यह भद्रबाहुसंहिता नामक ग्रन्थकी सच्चा इतिहास प्रमाणों सहित संग्रह किया विस्तृत समालोचना है। इसमें बतलाया गया है। शिलालेखो, ताम्रपत्रो, ग्रन्थ- है कि यह परमपूज्य भद्रबाहु श्रृतकेवलीप्रशस्तियों, फारसी-अरबीकी तवारीखों का बनाया हश्रा ग्रन्थ नहीं है. किन्तु तथा अन्य अनेक साधनोंसे बड़े हो परि- ग्वालियरके किसी धूर्त भट्टारकने १६-१७ श्रमपूर्वक यह ग्रन्थ रचा गया है। प्रत्येक वीं शताब्दिमें इस जाली ग्रन्थको उनके इतिहासप्रेमीको इसकी एक पक प्रति नामसे बनाया है और इसमें जैनधर्मके . मँगाकर रखनी चाहिए। इसमें अनेक विरुद्ध सैंकड़ों बातें लिखी गई हैं। इन जैन विद्वानों तथा जैन धर्मप्रेमी राजाओंका दोनों पुस्तकों के लेखक श्रीयुक्त बाबू भी उल्लेख है । लगभग ४०० पृष्ठोका जुगुलकिशोरजी मुख्तार हैं । मूल्य ।) कपड़ेकी जिल्द सहित ग्रन्थ है। मूल्य ३) ३ दर्शनमार । प्राचार्य देवसेनका २० । आगेके भागों में गुप्त, राष्ट्रकूट आदि मल प्राकृत ग्रन्थ, संस्कृतच्छाया, हिन्दी घंशोके इतिहास निकलेंगे। अनुवाद और विस्तृत विवेचना। इतिनकली और असली धमात्मा। हासका एक महत्वका ग्रन्थ है। इसमें श्रीयुत बाबू सूरजभानुजी वकीलका श्वेताम्बर, यापनीय, काष्ठासंघ; माथुरलिखा हुआ सर्वसाधारोपयोगी सरल संघ, द्राविड़संघ श्राजीवक (अज्ञानमत) उपन्यास । ढोंगियोकी बड़ी पोल खोली और वैनेयिक आदि अनेक मतोकी उत्पत्ति गई है। मूल्य ॥) और उनका स्वरूप यतलाया गया है। नया सूचीपत्र। बड़ी खोज और परिश्रमसे इसकी रचना उत्तमोत्तम हिन्दी पुस्तकोंका ४२ हुई है। पृष्ठोंका नया सूचीपत्र छपकर तैयार है। आत्मानुशासन । पुस्तक-प्रेमियोको इसकी एक कापी मँगा भगवान् गुणभद्राचार्यका बनाया हुआ कर रखनी चाहिए। मैनेजर, यह ग्रन्थ प्रत्येक जनीके स्वाध्याय करने हिन्दी-ग्रन्थ-रत्नाकर कार्यालय, योग्य है । इसमें जैनधर्मके असली उद्देश्य हीराबाग, पो. गिरगाँव, बम्बई। शान्तिसुखकी ओर आकर्षित किया गया है । बहुत ही सुन्दर रचना है। आजकल. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelionergy
SR No.522888
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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