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________________ अङ्क ३-४] विविध विषय । और किसी सम्पादकके पास भेज दीजिए। “माणिकचन्द्र ग्रन्थमालाने १६ अपूर्व सम्भवतः वे उसे लौटा देंगे। केवल रत्न प्रकाशित करके प्राचीन दिगम्बर शब्दालङ्कारके लिए समय नष्ट न कीजिए। जैनसाहित्यका जो उद्धार किया है उसके जो कहना हो बिना आडम्बरके उसे कह लिये वह कमेटी तथा खासकर वह मन्त्री डालिए । जब लेख समाप्त हो जाय तब जिनके उद्योगसे लुप्तप्राय ग्रन्थ जैसे कल्पना कीजिए कि आपको अपने खर्चसे नयचक्र, युक्त्यनुशासन, आराधनासार, उसे तारद्वारा आस्ट्रेलिया भेजना है, एक पात्रकेसरीस्तोत्र, तत्वानुशासन, अनएक अनावश्यक शब्द चुन चुनकर निकाल गार-धर्मामृत आदि प्रकट, हुए, जैनबाहर कीजिए और विशेषतः विशेषणों- समाजकी ओरसे धन्यवादके पात्र हैं। का बहिष्कार कीजिए। इसके बाद यदि नाथूरामजी प्रेमीने मन्त्रीका काम बड़ी कुछ रह जाय तो किसी सम्पादकके पास सच्चाईके साथ किया है। उनके कामको भेजिए और देखिए, क्या होता है। यदि देखकर तथा यह विश्वास करके किं असफल हों तो बार बार प्रयत्न कीजिए, उनके उद्योगसे बहुतसे प्राचीन ग्रन्थोंका जबतक आप विशेष कहना न चाहते हो उद्धार हो जायगा, हमने १०००) रुपएतबतक असफलता रक्खी हुई है। इस का फण्ड समाजसे एकत्र किया । आज प्रकार प्रयत्न करनेके बाद श्राप जान मन्त्रीजीका इस्तीफा पाकर हमारे चित्तसकेंगे कि आप सम्पादक होनेके योग्य हैं को बहुत दुःख हुआ। इस्तीफा देनेका वा नहीं।" कारण केवल यही है कि हिन्दी जैनगजटहमारे देशके होनहार लेखकोंको भी के सम्पादक उनके हाथसे काम निका लना चाहते हैं। उनको यह भ्रम है कि इसका मनन करना चाहिए । इससे वर्तमान सम्पादकोंके अनेक कष्ट कट जायँगे, कहीं वे अपना विधवा-विवाह-पोषक मत लेखकोंको बहुत कम हताश होना पड़ेगा। किसी ग्रन्थमें न रख देवें । इसीसे उदार तथा हिन्दीमें भी अच्छे सम्पादक उत्पन्न होकर मन्त्रीजी काम छोड़ रहे हैं। हम होंगे। . (श्रीशारदा). _ नाथूरामजीसे कहेंगे कि आपको ऐसे १५• लेखोसे घबराना नहीं चाहिए । जैन... बात बहुत ठीक है। जैनसमाजके समाज में गालियाँ सहकर भी काम करना लेखकोंको ही नहीं बल्कि कितने ही पत्र- चाहिए । हिन्दी जैनगजटने जो ग्रन्थसम्पादकोंको भी इसपर खास. तौरसे मालाकी कमेटीको लिखनेके पहले बिना ध्यान देना चाहिए। सोचे समझे ऐसा मत प्रकट कर दिया ८-हृदय-हीनता और अनुभव- सो एक महत्वके कार्य में अन्तराय डालने का काम किया है। भले ही नाथूरामजीके शून्यता। कैसे ही विचार हो पर उनपर ऐसा दोष .. माणिकचन्द्र ग्रन्थमालाके मन्त्री श्री- तब ही लगाया जा सकता था जब उनके युत पण्डित नाथूरामजी प्रेमीके कार्यकी द्वारा किसी भी ग्रन्थमें ऐसा कहा (किया) प्रशंसा और उनके इस्तीफेका उल्लेख गया हो । दूसरे, यह बात नाथूरामजीसे करते हुए, ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीने, सम्भव ही नहीं है क्योंकि वे संस्कृत अपने गत छठी जनवरीके जैनमित्रमें जो प्राकृत ऐसी नहीं जानते कि किसी ग्रन्थकुछ लिखा है वह इस प्रकार है,- में परिवर्तन कर सकें । तीसरे, ग्रेन्याको Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522887
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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