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जनहितधी।
[भाग १५ इन्ही यशोभद्रका स्मरण करते हुए ये फणिमण्डल (?) के उरगपुर-नरेशके कहा है
पुत्र थे । इनके बनाये हुए देवागम (माप्तविग्विणी मत Ra m मीमांसा), युक्त्यनुशासन, वृहत्स्वयंभू. निखर्वयति तद्र्व यशोभद्रः स पातु नः ॥४६॥
स्तोत्र, जिन-शतक और रत्नकरण्ड श्राव.
काचार, ये ग्रन्थ छप चुके हैं। हरिवंशइनके विषयमें और कोई उल्लेख नहीं
पक जीवसिद्धि' नामक मिला और न यही मालूम हुआ कि इनके ग्रन्थका उल्लेख मिलता है। षट्खण्डसूत्रो बनाये हुए कौन कौन ग्रन्थ हैं । आदि- के पहले पाँच खण्डों पर भी इनकी बनाई पुराणके उक्त श्लोकसे तो वे तार्किक ही
हजार श्लोक प्रमाण संस्कृत टीकाजान पड़ते हैं।
का उल्लेख मिला है। आवश्यकसूत्रकी ४ प्रभाचन्द्र । आदिपुराणमें न्याय- मलयगिरिकृत टीकामें 'श्राद्यस्तितिकारोकुमुन्दचन्द्रोदयके कर्ता जिन प्रभाचन्द्रका ऽप्याह' कहकर इनके स्वयंभू स्तोत्रका स्मरण किया है, उनसे ये पृथक् और पहले- एक पद्य उद्धत किया है। इससे मालूम के मालूम होते हैं । क्योंकि चन्द्रोदयके होता है कि ये सिद्धसेनसे भी पहलेके कर्ता प्रकलङ्कभट्टके समयमें हुए हैं, इस- ग्रन्थकर्ता हैं। क्योंकि सिद्धसेन भी स्तुतिलिए उनका जिक्र जैनेन्द्र में नहीं हो कारके नामसे प्रसिद्ध हैं। अभी तक इन सकता। मालूम नहीं, ये प्रभाचन्द्र किस दोनों ही प्राचार्यों का समय निति ग्रन्थके कर्ता हैं और कब हुए।
नहीं हुआ है। ५ सिद्धसेन । ये सिद्धसेन दिवाकरके नामसे प्रसिद्ध हैं। ये बड़े भारी तार्किक
पूज्यपादके अन्य ग्रन्थ । हुए हैं। स्वर्गीय डा० सतीशचन्द्र विद्या- जैनेन्द्रके सिवाय पूज्यपादस्वामीके भूषणका खयाल था कि विक्रमी सभाके बनाये हुए अबतक केवल तीन ही ग्रन्थ 'क्षपणक' नामक रत्न यही थे। श्रादि- उपलब्ध हुए हैं और ये तीनों ही छप पुराणमें इनका कवि और प्रवादिगज चुके हैं :केसरी कहकर और हरिवंश पुराणमें १–सर्वार्थसिद्धि । दिगम्बर सम्प्रसूक्तियोंका कर्ता कहकर स्मरण किया है। दायमें प्राचार्य उमास्वामिकृत तत्त्वार्थन्यायावतार, सम्मतितर्क, कल्याणमन्दिर- सुत्रकी यह सबसे पहली टीका है। अन्य स्तोत्र और २० द्वात्रिंशिकायें (स्तुतियाँ) सब टीकायें इसके बादकी हैं और वे सब इनकी उपलब्ध हैं। यदि विक्रमका समय इसको आगे रखकर लिखी गई हैं। ईसाकी छठी शताब्दी माना जाय-जैसा २-समाधितंत्र । इसमें लगभग १०० कि प्रो० मोक्षमूलर श्रादिका मत है--तो श्लोक हैं, इसलिए इसे समाधिशतक भी सिद्धसेन इसी समयमें हुए हैं। और लग- कहते हैं । यह अध्यात्मका बहुत ही भग सही समय जैनेन्द्र के बननेका है। गम्भीर और तात्त्विक ग्रन्थ है। इस पर
६ समन्तभद्र । दिगम्बर सम्प्रदाय कई संस्कत टीकायें लिखी गई हैं। ये बहुत ही प्रसिद्ध आचार्य हुए हैं। बीसो ३-इष्टोपदेश । यह केवल ५१ श्लोकदिगम्बर ग्रन्थकारोंने इनका उल्लेख प्रमाण छोटासा ग्रन्थ है और सुन्दर उपकिया है। ये बड़े भारी तार्किक और कवि देशपूर्ण है। पं० आशाधरने इस पर एक थे। इनका गृहस्थावस्थाका नाम वर्म था। संस्कृत निबन्ध लिखा है।
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