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________________ १६ द्वारा नहीं हुआ, चाहे वे जैन हो या अजैन, अथवा यो कहिये कि वैसे किसी अनुभवी पुरुषकी देखरेख में यह सब काम नहीं हुआ । इसीसे काम यथार्थ नहीं हो सका । जो सूची इस प्रकार अशुद्धियोंसे परिपूर्ण हो और ग़लत सूचनाएँ देती हो, हमारी रायमें, वह सूची बिलकुल रद्द की जानी चाहिये और उस का एक रुपये मूल्यमें बेचा जाना तो किसी तरह भी उचित नहीं है । जैनहितैषीः । भवनको, जहाँ तक बने शीघ्र, हस्तलिखित ग्रन्थोंकी एक प्रामाणिक सूची तैयार करा कर प्रकाशित करनी चाहिये । ऐसी एक सूचीकी बहुत बड़ी ज़रूरत है । हमारी रायमें वह सूची विषयवार - विषयविभागको लिये हुए होनी चाहिये और उसमें १ ग्रन्थका नम्बर, २ ग्रन्थका नाम, ३ ग्रन्थकर्ताका नाम, ४ प्रन्थकी भाषा, ५ ग्रन्थका निर्माणसमय, ६ लिपि- समय, ७ श्लोक संख्या और = विशेष विवरण ऐसे आठ कोष्टक ज़रूर होने चाहिये । प्रन्थ किस लिपिमें है, काग़ज़ पर है या ताड़पत्र पर मुद्रित हो चुका है या कि नहीं और किस अवस्था में है, इस प्रकार की सब सूचनाएँ विशेष विवरणके कोठेमें दी जानी चाहियें। कुछु ग्रन्थकर्तादिके परिचयादि सम्बन्धी बातें फुटनोटके तौर भी दी जा सकती हैं । प्रत्येक विषयके ग्रन्थ अपने अपने विभाग में अकारादि क्रमसे रक्खे जायें, और पुस्तकर्मे तीन अनुक्रमणिकाएँ ज़रूर लगाई जायँ, एक विषयानुक्रमणिका, दूसरी ग्रन्थानुक्रमणिका और तीसरी ग्रन्थकर्ता - नुक्रमणिका । इसके सिवाय एक लिस्ट उन ख़ास ख़ास दिगम्बर जैनग्रन्थों के नामादिककी भी साथमें जोड़ी जाय जो भवन में मौजूद नहीं हैं, परन्तु दूसरे भंडारोंमें पाये जाते हैं और जिनके संग्रह करनेकी Jain Education International [ भाग १५ भवनको ज़रूरत है । दूसरे भंडारोंकी बहुतसी सूचियाँ भवनमें मौजूद हैं जो शुरू शुरू में एकत्र की गई थीं। उनका अबतक प्रायः कुछ भी उपयोग किया गया मालूम नहीं होता। कई सूचियाँ तो शायद रजिस्टर में भी दर्ज नहीं हुई हैं। इन सूचियों परसे उक्त लिस्ट बहुत कुछ. तैयार हो सकती है और भी दूसरे भंडारोंकी सूचियाँ इस कामके लिये मँगाई जा सकती हैं। अभी हमने ऐसी ही कुछ सूचियों परसे संस्कृत तथा प्राकृतके ख़ास ख़ास ग्रन्थोंकी एक लिस्ट उतारी है जो भवनमें मौजूद नहीं हैं और जिनकी संख्या दो सौके करीब है । यदि इस लिस्ट में कनड़ी श्रादि दूसरी भाषाओके ग्रन्थ भी शामिल कर दिये जाते तो संख्या शायद तीन सौसे भी अधिक हो जाती । कितनी ही सूचियाँ भवनमें ऐसी रह गई। हैं जिन्हें हम देख नहीं सके। इसके लिये भवनमें एक ख़ास रजिस्टर खुलना चाहिये. जिसमें इन दूसरे भंडारोंकी सूचियों परसे उन ख़ास ख़ास ग्रन्थोंका नामादिक दर्ज किया जाय जो भवनमें मौजूद नहीं हैं और एक कोटक को द्वारा उन भंडारोंके नाम सूचित किये जायें जिन जिनमें प्रत्येक ग्रन्थ मौजूद है ताकि उन भंडारों में से जिस भंडारसे भी ग्रन्थकी प्राप्ति हो सके उससे वह मँगाया. जाय । भंडारोंके नाम रजिस्टरके शुरूमें पूरे पते सहित नम्बर डालकर दर्ज करते रहना चाहिये । इस रजिस्टर पर से उक्त लिस्ट सहजमें ही उतार कर सूत्री के साथमें जोड़ी जा सकेगी। इस तरह पर जो सूची तैयार होगी वह सर्वसाधारणके लिये बहुत ज्यादा उपयोगी और कार्यकारी होगी। उसके द्वारा सहजमें ही दिगम्बर जैन ग्रन्थों और उनके कर्ताओंका बहुत कुछ परिचय For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522885
Book TitleJain Hiteshi 1920 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1920
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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