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अङ्क १०-११]
विविध प्रसङ्ग।
" नवैः संदिग्धनिर्वाहैर्विदध्याद्गणवर्धनम्। किया है। मालूम नहीं जब उक्त पंचायत एकदोषकृते त्याज्यः प्राप्ततत्त्वः कथं नरः ॥ सेठीजीके कार्यको धर्मविरुद्ध नहीं समझती, यतः समयकार्यार्थी नानापंचजनाश्रयः ।
तो फिर वह कैसे उसके द्वारा अपनी जातिके अतः संबोध्य यो यत्र योग्यस्तं तत्र योजयेत् ॥
गौरवका नष्ट होना मानती है । हमारे खयाउपेक्षायां तु जायेत तत्त्वाद्दरतरो नरः।
लमें तो जिस जातिमें धर्माविरुद्ध कार्य करनेततस्तस्य भवो दीर्घः समयोऽपि च हीयते ॥”
वालोंको भी स्थान नहीं है वह जाति कुछ इन पद्योंका आशय इस प्रकार है:
भी गौरवान्वित नहीं है । हम पूछते हैं ऐसे ऐसे नवीन मनुष्योंसे अपनी जातिकी कि जब जैनशास्त्रोंमें जाति तो जाति समूह वृद्धि करनी चाहिये जो संदिग्धनिर्वाह हैं भिन्नवर्ण तकके व्यक्तियोंमें परस्पर विवाह अर्थात्, जिनके विषयमें यह संदेह है कि वे संबंधके सैकड़ों उदाहरण पाये जाते हैं जातिके आचार विचारका यथेष्ट पालन कर- तब क्या बम्बईकी खंडेलवाल जैनपंचायत सकेंगे । ( और जब यह बात है तब ) किसी उन सभी ऐसे विवाह करनेवालोंको, जिनमें एक दोषके कारण कोई विद्वान जातिसे बहि- अच्छे अच्छे पज्य पुरुष भी शामिल हैं, घृणा कारके योग्य कैसे हो सकता है ? चूँकि धर्मका और तिरस्कारकी दृष्टिसे देखती है ? यदि नहीं प्रयोजन नाना पंचजनोंके आश्रित होता है, अतः देखती तो फिर सेठीजीके साथ ऐसा व्यवहार समझाकर जो जिस कामके योग्य हो उसको किये जानेमें कौनसा विशेष कारण है । उसकी उसमें लगाना चाहिये-जातिसे पृथक् न करना इस कार्रवाईसे तो ऐसा मालूम होता है कि चाहिये। यदि किसी दोषके कारण एक व्य- वह अपने वर्तमान रीतिरिवाजोंके मुकाबलेमें क्तिकी-खासकर विद्वानकी-उपेक्षा की जाती है, जैनशास्त्रोंकी आज्ञाओं और उसके विधिविधा. उसे जातिसे पृथक् किया जाता है तो उस उपे- नोंको कोई चीज नहीं समझती और न सोमदेवक्षासे वह मनुष्य तत्त्वसे बहुत दूर जा पड़ता है। सूरि आदिके उन वाक्योंको मानती है जिनमें तस्वसे दूर जा पड़नेके कारण उसका संसार बढ़ लिखा है कि ' जैनियोंको वे सर्वलौकिक जाता है और धर्मकी भी क्षति होती है, अर्थात् विधियाँ प्रमाण हैं जिनसे सम्यक्त्वको हानि नहीं समांजके साथ साथ धर्मको भी हानि उठानी पहुँचती और न व्रतोंमें कोई दषण आता है *।'" पड़ती है।
क्या सेठीजीके इस विवाहकार्यसे सम्यक्त्वमें कोई ___ आचार्य महोदयने अपने इन वाक्यों द्वारा बाधा आती है और श्रावकीय व्रतोंमें कोई दूषण जैन जातियों और जैन पंचायतोंको जो गहरा लगता है ? यदि ऐसा नहीं है तो क्या उक्त परामर्श दिया है और जो दूरकी बात सझाई पंचायतके सदस्योंको अजैन समझा जाय जो है बह सभीके ध्यान देने और मनन करनेके वे सेठीजीकी उक्त कार्रवाईका अभिनंदन न योग्य है । हम बम्बईकी दि० जैन खंडेलवाल करके-उसे प्रामाणिक न मानकर-उलटा उसका पंचायतसे खास तौर पर आचार्य महाराजके तिरस्कार करते हैं ? अथवा यही समझा जाय। इन वाक्यों पर विचार करनेका अनुरोध करते “यथाःहैं, जिसने हालमें पं० अर्जुनलालजी सेठी सर्व एव हि जैनानां प्रमाणं लौकिकोविधिः । जैसे विद्वानोंको अपनी जातिसे पृथक् करनेका यत्र सम्यक्त्वहानिर्न यत्र न व्रतदूषणम् ॥ असमीक्षित कार्य ही नहीं बल्कि दुःसाहस
-यशस्तिलके सोमदेवः ।.
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