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________________ अङ्क १०-११ विधवा-विवाह-खण्डन । ३३७ जाते हैं ? राणा हमीरकी प्रतिज्ञा एक ही वार बारह वर्षकी उग्र तपस्या करके कैवल्य प्राप्त होती है, इस लिए सारी स्त्री जातिका वाग्दान करना ही चाहिए, नहीं तो उसका बहिष्कार किया भी एक ही वार होना चाहिए-इस तरहका जायगा; प्रत्येक पण्डित और तर्कतीर्थको शंकतर्क स्वीकार करनेके पहले पूछना पड़ेगा कि राचार्यके समान दिग्विजय करना ही चाहिए, .. सारी स्त्रीजातिका राणा हमीरके साथ क्या नहीं तो उसे देश निकालेकी सजा दी जानी चा. . सम्बन्ध है और यदि स्त्रीजातिके बिर पर राणा हिए,-समाज यदि इस तरहके नियम बना हमीर (जो एक पुरुष थे) का उदाहरण कानून- चुका हो, तभी वह यह नियम बनानेका अधिके रूप में लाद देना धर्म है तो राणा हमीरके कारी हो सकता है कि प्रत्येक विधवा सम्पूर्णसजातीय पुरुषसमूहके लिए तो यह उदाहरण तया कामको जीतनेवाली होनी चाहिए, नहीं तो खास तौरसे कानून बन जाना चाहिए। पण्डित- उसका बहिष्कार किया जायगा। जीको चाहिए कि पहले वे राणा हमीरके . आदर्श और व्यवहार, व्यक्तिगत धर्म और सजातीय पुरुषवर्गके लिए दूसरी सामाजिक नियम, फर्जियात ( बलात्पालनीय ) करनेका कायदा जारी करावें और तब स्त्री धर्म, और मर्जियात (स्वेच्छया पालनीय ) जाति पर अपना यह निरंकुश शासन चलानेके धर्म, इनके बीचमें क्या अन्तर है, इसका लिए बाहर निकलें । राणा हमीरके उदाहरणको 'विवेक' न कर सकनेके कारण ही ये धर्मके' जनसाधारणकी नीतिमें घुसेड़नेके लिए छटपटा- खिलौने विधवाविवाहके प्रश्नका रहस्य नहीं: नेवालों पर मुझे सचमुच ही बड़ी दया: आती समझ सकते । एक पाठशालामें सातवीं कक्षाके है ! मालूम नहीं इन बेचारे पोथा-पण्डितोंमें, विद्यार्थीको स्थान चाहिए और ' अ इ उ' इतनी सामान्य बुद्धि भी कब आयगी ! पढ़नेवालेके लिए भी स्थान चाहिए । पाठ. इन पढे लिखे बालकोंको इतना भी ज्ञान शालाके विवेकी संचालकका यह कर्तव्य होना नहीं है कि पृथ्वीके भषण राणा हमीर या राणा चाहिए कि वह 'अ इ उ' घोखनेवालोंको पहली प्रताप तो बिरले ही पैदा होते हैं, दनियाके सभी कक्षामें और उनके बाद दूसरोंको दूसरी तीसरी आदमी वैसे नहीं हो सकतेपोशा और सातवीं कक्षाओंमें बिठावे । शालामें केवल इस बातका विचार नहीं कर सकते कि किस उन्हाको स्थान न मिलना चाहिए जो 'अइउ) चीजको 'आदर्श' मानना चाहिए और पढ़ना भी पसन्द न करते हों और केवल आवश्यक-बलादाचरणीय--ठहराना चाहिए, इधर उधर भटकते फिरनेमें ही खुश हों। इसी और यही इनको सबसे बड़ी बीमारी है। तमाम मनष्य रह सकें ५) तरह समाजमें सब तरहके ऊँची नीची श्रेणीके और जी सकें, ऐसी मध्यम स्त्री-पुरुषोंका विकास हो, इस ओर समाजकी ढंगकी उसकी रचना होनी चाहिए-केवल दृष्टि रहना चाहिये और इस कारण हमीर, प्रताप,. आबारा-व्यभिचारी स्त्री-पुरुषोंको ही उसमें महावीर आदिके चरित्र लोगोंके आगे आदर्शके स्थान न मिलना चाहिए। एक बार क्यों इक्कीस रूपमें रखना चाहिए; परंतु इनके नियम सब बार भी पुनर्विवाह करनेवाला समाजसे दूर नहीं लोगोंके बलादाचरणीय नहीं ठहराये जा किया जा सकता; हाँ उसका दर्जा अवश्य ही सकते । यह तो शक्तिका प्रश्न है । नीचा गिना जाना चाहिए और शुद्ध सधवा प्रत्येक गृहस्थको कुबेरके समान धनी होना ही धर्म तथा विधवा धर्मको वीरतासे पालनेवाले चाहिए, नहीं तो उसका सिर काट डाला जायगा; स्त्री-पुरुष, खास करके सर्वथा विवाह ही न प्रत्येक साधुको भगवान महावीरके समान साढे करके आजन्म ब्रह्मचर्य पालनेवाले स्त्री-पुरुष ... Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522883
Book TitleJain Hiteshi 1920 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1920
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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