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________________ २९२ जैनहितैषी [भाग १४ बहलाया करते हैं। यदि कोई अंग्रेजी पढ़ा लग जाते हैं, किसी रातिको किसी प्रकार और साथी, नहीं मिलता, तो किसी अग्रेजी समा- किसीको किसी प्रकार करके अपनी खूब ही चारपत्र या पुस्तकको ही अपना साथी बनाकर हँसी कराते हैं और अनभिज्ञता प्रकट करते हैं। उसीसे अपना दिल बहलाते रहते हैं; परन्तु ऐसे सारांश यह कि, जातिके रीतिरिवाजोंसे अच्छी पुरुषसे बातचीत करके दिलबहलाना पसन्द तरह वाकिफ होकर और अपनी स्त्रीको अच्छी नहीं करते जो अंग्रेजी पढ़ा नहीं होता और तरह समझानेके पश्चात् उससे सम्मति मिलाकर जो उनके रुचिकर विषयोंमें अच्छी तरह बात- सुधार करना तो इन लोगोंके लिये बहुत ही चीत नहीं कर सकता । यही कारण है कि इन मुश्किल हो रहा है । यही वजह है कि इन बाबू लोगोंको अपनी अनपढ़ स्त्रीके साथ बात. लोगों द्वारा कुछ भी सुधार नहीं होता बल्कि चीत करके दो घड़ी दिल बहलाना भी बहुत करीतियोंकी बहत कछ पष्टि ही होती रहती है। दूभर होता है। बल्कि अपनी स्त्रीके पास बैठने बाबू लोगों के विषयमें एक बात यह भी पर तो इनको ऐसा कोई विषय ही नहीं मिलता जाननेके योग्य है कि, बड़े बड़े धनाढ्योंके बालक जिसमें इन दोनोंकी बातचीत होकर दिल बह- तो प्रायः विद्याप्राप्तिका कष्ट उठाना ही पसन्द लावा हो सके। नहीं करके बल्कि उनमें कोई कोई तो ऐसे लाडले ऐसी हालतमें वे अपनी जातिकी दशा और भी होते हैं जो अपनी दूकानके बहीखातोंका रीति रस्मोंसे बिल्कुल अनजान ही रहते हैं, लिखना पढ़ना मात्र भी नहीं सीखते हैं, और बड़े न उसका कुछ सुधार कर सकते हैं और न होकर अपना सब काम मुनीमों तथा कारिदोंके ही सुधार करनेकी कुछ इच्छा ही रखते हैं। वे भरोसे पर छोड़नेके लिये लाचार होते हैं । रहे अपने लिये सबसे सहज सुखका मार्ग यही गरीब लोग सो वे अंग्रेजी पढ़नेका भारी खर्चा समझते हैं कि नित्य तो जो चाहा सो किया नहीं उठा सकते हैं । अतः अंग्रेजीकी उच्च शिक्षा परन्तु जब कभी बिरादारीके साथ मिल कर कोई प्रायः मध्यम स्थितिके मनुष्योंके बालक ही पाते कार्य करना पड़ा तो जातिकी पुरानी चाल हैं और वे सब सरकारी नौकरी पाने या वकील ढालके अनुसार ही कर दिया । इसीसे आदि होनेके वास्ते ही पढ़ते हैं । ये अंग्रेजी इन बाबू लोगोंके रीति-रिवाज सम्बन्धी सब पढ़नेवाले बालक सरकारी हाकिमोंको बहुत कुछ कार्य प्रायः उनकी स्त्रीके ही अधिकारमें रहते अधिकारप्राप्त और बड़े बड़े धनाढ्यों तथा ध्वजाहैं, ये लोग उस समय उसीके इशारे पर काठकी धारियोंसे भी सर्व प्रकार सेवित और पजित देखपुतलीकी तरह नांचा करते हैं और अपनी कर अपने वास्ते भी बड़ी ऊँची ऊँची आकांक्षाएँ बुद्धिको जरा भी काममें नहीं लाते; परंतु कारज बाँध लेते हैं और शेखचिल्लीवाले बड़े बड़े पूरा होने पर फिर अपनी उसी चाल ढाल पर मंसूबे घड़ने लग जाते हैं कि पढ़लिखकर हम आ जाते हैं । यदि किसी नगर या ग्राममें या भी ऐसा ऐसा वैभव प्राप्त करेंगे और ऐसे ऐसे किसी जातिमें इन बाबू लोगोंकी कुछ जबर- अधिकार पावेंगे । इसी प्रकार इनके कुटुम्ब तथा दस्ती चल सकती है तो वहाँ ये लोग अपनी ग्रामके लोग भी इनके विषयमें ऐसा ही विचार स्त्रीको भी धता बताकर और जातिके करके इनके विद्यार्थी-जीवनमें ही इनकी बहुत लोगोंके बुड़बुड़ानेकी भी कुछ परवाह न करके बड़ी प्रतिष्ठा करने लग जाते हैं, जिससे इनके रीतिरिवाजोंको बिल्कुल अंधाधुंध ढंगसे तोड़ने दिमाग और भी ज्यादा ऊँचे चढ़ जाते हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522883
Book TitleJain Hiteshi 1920 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1920
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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