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जैनहितैषी
[भाग १४
यद्यपि यह काम बड़े खर्चका है परन्तु जो किये जा सकते हैं । प्राचीन ग्रन्थ पब्लिककी समाज केवल मन्दिरों और मूर्तियोंकी प्रतिष्ठामें सम्पत्ति हैं । उन्हें कोई आधिकार नहीं है कि वे प्रतिवर्ष कई लाख रुपये खर्च करता है उसके उनके ज्ञानसे सर्वसाधारणको वंचित रक्खें । लिए तो यह, यदि वह चाहे तो, जरा भी डा० बुल्हर आदि पाश्चात्य विद्वानोंने इसी कठिन नहीं है।
न्यायसूत्रपर राजपूतानेके अनेक प्राचीन पुस्तकायह संग्रह दो तरहसे किया जाना चाहिए। लयोंका निरीक्षण किया था और उनकी सूची एक तो जो ग्रन्थादि खरीदनेसे मिल सकें उन्हें बनाई थी । इस काममें उन्हें कहते हैं कि खरीदकर और दूसरे जो इस तरह न मिल ब्रिटिश सरकारसे और देशी रियासतोंसे काफी / सकते हों उनकी प्रतिलिपि या कापी कराके। सहायता मिली थी । यदि हमारे भाई भी इस यदि तीन चार अच्छे विद्वान् और अनुभवी कामको अच्छे और प्रभावशाली ढंगसे उठायँगे आदमी इस कार्यके लिए नियत कर दिये जायँ तो उन्हें भी इस प्रकारकी सहायता मिल सकती, और वे जगह जगह जाकर ग्रन्थोंकी खोज करें है, इसमें कोई सन्देह नहीं है। - तो ऐसे हजारों ग्रन्थ खरीद किये जा सकते हैं पाठकोंको स्मरण होगा कि लगभग २० वर्ष
और हजारों ग्रन्थोंकी प्रतिलिपि करानेका प्रबन्ध पहले मडबिद्रीके जयधवलादि सिद्धान्तग्रन्थोंकी कर सकते हैं । बाँकीपुरकी सुप्रसिद्ध खुदावख्श द्वितीय प्रति करानेके लिए दिगम्बरजैनसमाजने लायब्रेरीके लिए इसी तरह ग्रन्थोंका संग्रह किया कोई १०-१२ हजार रुपयका चन्दा किया था। गया था । उसके कर्मचारी ईराण, तूरान, और चार पाँच वर्ष हुए कि उक्त कापी करानेका कार्य तुर्कस्तान आदि तक ग्रन्थोंकी खोजके लिए घूमे समाप्त हो गया; परन्तु उन ग्रन्थोंका दर्शन थे । इसी लिए आज उर्दू, अरबी और फारसी सर्वसाधारणके लिए अब भी दुर्लभ है । विद्वान् साहित्यका इतना अच्छा संग्रह कहीं भी नहीं है। लोग तरसते हैं कि देखें उनमें क्या लिखा हुआ
बहुतसे भाण्डार ऐसे हैं जो ऐसे लोगोंके है; परन्तु वे ग्रन्थ वहाँके स्वार्थी मठाधीशके धन हाथों में हैं जिन्हें साक्षात् ज्ञानावरणीय कर्म कहना कमानेके साधन बने हुए हैं और हमसे कुछ भी नहीं चाहिए । इन लोगोंको राह पर लानेके लिए भी बन पड़ता है । एक दिन आयगा कि जिस तरह अब प्रयत्न करनेका समय आ गया है। पहले हम अपने सैकड़ों ग्रन्थरत्न नष्ट कर चुके हैं उसी तो चार छह अच्छे अच्छे प्रतिष्ठित पुरुषोंका डेप्य- तरह ये सिद्धान्त भी लुप्त हो जायेंगे क्योंकि टेशन भेजकर उन्हें समझाना चाहिए और उनके संसार भरमें इनकी कोई दूसरी प्रति नहीं है भाण्डारोंको खुलवाना चाहिए । यह आवश्यक और इनके साथके कई सिद्धान्त ग्रन्थ-जो लगनहीं है कि उनकी बिना इच्छाके ग्रन्थ लिये भग १०० वर्ष पहले मौजूद थे-उक्त मठाधीशोंजायँ; परन्तु वे इस बातके लिए अवश्य मजबूर की कृपासे, नष्ट हो भी चके हैं। किये जाने चाहिए कि ग्रन्थोंकी सूची बना लेने यदि हम लोगोंमें अपने प्राचीन ग्रन्थोंपर दें और जो ग्रन्थ अन्यत्र अलभ्य हाँ उनकी जरा भी भक्ति हो और ग्रन्थोंकी रक्षा करना कापी करा लेने दें।
हम अपने धर्मका अंग समझें तो इन ग्रन्थोंकी ___ जो लोग बहुत हठी दुराग्रही और स्वार्थसाधु एक नहीं पचास प्रतियाँ छह महीने के भीतर ही हैं, वे सरकारी और राजाओंकी सहायतासे ठीक कराई जा सकती हैं और वे जुदा जुदा पचास
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