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________________ अङ्क ९] प्राचीनग्रन्थोंका संग्रह और उनकी रक्षा। वास-फूसकी तरह पड़े हुए हैं और कहीं स्वार्थी होता था। ऐसे पुस्तकालय-अवश्य ही जीर्णशीर्ण लोगोंने उन्हें छुपा रक्खा है। अवस्थामें-तलाश करनेसे अब भी सैकड़ोंकी ___ अब भी समय है। हमें विश्वास है कि यदि संख्यामें मिल सकते हैं । इनके सिवाय अनेक अब भी इस विषयमें काफी उद्योग किया जायगा गृहस्थोंके घरोंमें भी—जिनके पूर्वजोंमें कोई तो अकेले दिगम्बर सम्प्रदायके ही इस समय विद्याव्यसनी थे- दस दस बीस बीस ग्रन्थोंके अधिक नहीं तो जदा जदा दस हजार ग्रन्थोंका संग्रह मिलना कोई बड़ी बात नहीं है । संग्रह किया जा सकता है और हमारा विशाल अजैन लोगोंके गृहपुस्तकालयोंमें और राजा साहित्य अनेक अंशोंमें प्रकाशमें आ सकता है। महाराजाऑकी लायब्रेरियोंमें भी तलाश करनेसे - बम्बईकी गवर्नमेण्टने अबसे लगभग ३०-३५ हजारोंकी संख्यामें जैनग्रंथ मिल सकते हैं । वर्ष पहले इस विषयमें थोड़ासा प्रयत्न किया था। जिस तरह जैनपुस्तकालयोंमें सैकड़ों अजैन जिसके फलसे डेक्कन कालेजकी लायबेरीके ग्रन्थ मिलते हैं उसी तरह अजैन पुस्तकालयोंमें लिए लगभग ६ हजार श्वेताम्बरी और डेड़ दो : जैनग्रन्थ भी रहते हैं । जो सच्चे विद्याव्यसनी हजार दिगम्बरी ग्रंथोंका संग्रह हो गया था-जो होते हैं, उनकी जिज्ञासा केवल अपने ही बड़ा ही मूल्यवान् संग्रह समझा जाता है और " ग्रन्थोंके पठन-पाठनसे नहीं मिट सकती है-वे जो इस समय डा० भाण्डारकर ओरियण्टल रिचर्स । अपने पास सभी प्रकारके ग्रन्थ रखते हैं। इन्टिटयूटकी शोभा बढ़ा रहा है । कहा जाता। ग्रन्थोंके सिवाय जैनसाहित्य और इतिहास पर प्रकाश डालनेवाले और भी अनेक साधन है कि जैनग्रन्थोंका इतना अच्छा और महत्त्वपूर्ण संग्रह देशके किसी भी पुस्तकालयमें नहीं है। जैनग्रंथोंकी खोज और उनका संग्रह करते समय मिल सकते हैं । खेद है कि इस विषयमें अवश्य ही यदि बम्बईसरकारका उक्त प्रयत्न दिगम्बर सम्प्रदायकी ओरसे कुछ भी प्रयत्न नही अभीतक जारी रहता तो यह संग्रह इससे भी किया गया है। प्रसिद्ध प्रसिद्ध ऐतिहासिक पुरुकई गुणा बड़ा हो जाता । परन्तु दुर्भाग्यकी षोंके और पुराण-पुरुषों के चित्र, चिटी पत्रियाँबात है कि आगे उसने इस कार्यको बन्द जो साध और विद्वान् एक दसरोंको लिखा कर दिया। करते थे और जिनसे तत्कालीन अनेक घटनाइससमय हमारे ईडर, नागौर, श्रवणबेलगोला, ओंका ज्ञान हो सकता है-विद्वानोंकी लिखी मूडबिद्री, आमेर (जयपुर ), कारंजा, सोना- हुई तरह तरहकी याददाश्तें, तीर्थों और गिर, ग्वालियर, डूंगरपुर, प्रताबगढ़ आदि प्राचीन मन्दिरोंसम्बन्धी दस्तावेजें, आज्ञापत्र, दानपत्र भाण्डारोंमें जो कुछ संग्रह है वह तो सभीको आदि चीजें भी, बहुलताके साथ पुराने संग्रहोंमें मालूम है; परन्तु इसके सिवाय छोटे छोटे ग्रामों मिल सकती हैं । इनका संग्रह करना बहुत और नगरोंमें भी-जो किसी समय अच्छे स्थान थे ही आवश्यक है। और अब समयके फेरसे ऊजड़ हो गये हैं- देशभाषाओंके ग्रन्थोंके संग्रह करनेकी भी हजारों ग्रन्थ पड़े हुए हैं । भट्टारकोंके शिष्य बहुत आवश्यकता है । भाषाविज्ञान और इतिपाँडे और पण्डित पहले प्रायः सभी मध्यम हासकी दृष्टिसे उनका भी कम महत्व नहीं है। श्रेणीके कस्वों और गाँवोंमें रहा करते थे और उनका भी एक एक पत्र और पत्रका टुकड़ा उन सबके पास एक एक छोटा मोटा पुस्तकालय संग्रह करनेसे न चूकना चाहिए । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522882
Book TitleJain Hiteshi 1920 Ank 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1920
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size5 MB
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