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________________ अङ्क ७-८] कलकत्ता जैनसभाकी आज्ञा ! २०९ एक गँवार ग्वाला वहाँ आया। उसके हृद- यह साबित हो कि ये जान बूझकर गौरवको यमें मुनिको इस प्रकारसे जाड़े अकड़ते देख- गौरव और अगौरवको अगौरव समझते हुए भी कर बहुत दया उत्पन्न हुई और उसने अपना अमुक द्वेषभावसे जैनधर्मके गौरवको घटानेका कम्बल उन्हें ओढ़ा दिया । साथ ही, जंग- उद्योग कर रहे हैं । यदि सभाके पास ऐसा कोई लसे कुछ लकड़ियाँ वगैरह इकट्ठा करके उसने प्रमाण मौजूद नहीं है बल्कि वह सिर्फ इतना उनके पास आग भी जला दी । मुनिराजने ही जानती है कि जिसे मैं गौरव, गौरव घटाना ग्वालेके इस कृत्यको उपसर्ग समझा और वे या गौरव घटानेका उद्योग समझती हूँ दूसरे भी सवेरे तक विना कुछ हले चले उसी तरह बैठे उसको वैसा ही समझते होंगे, तो यह उसकी रहे । प्रातःकाल जब कुछ श्रावक वहाँ पर महामूर्खता और कोरी अनुभवशून्यता है । आये और उन्होंने कम्बलादिकको दूर किया हम पूछते हैं, बहुतसे जैनी भाई देवोंके तब मुनि महाराजने उपसर्ग टला समझ कर आगमन, आकाशमें गमन और चंवरछत्रादि अपना ध्यान खोला और वे दूसरे कामों में लगे। विभूतिको जिनेन्द्र भगवानके गौरवकी उनके शास्त्रोंमें बतलाया गया है कि यद्यपि मनि- अतिशय, चमत्कारकी चीज समझते हैं । परंतु राजने ग्वालेके इस कृत्यको उपसर्ग समझा श्रीसमन्तभद्राचार्य महावीर भगवानको लक्ष्य और वह उनकी चर्यानसार था भी उनके करके कहते हैं कि इन बातोंसे मेरे हृदयमें लिये उपसर्ग, तो भी ग्वालेका भाव उपसर्ग आपका कोई गौरव नहीं है-मैं इनके आधार करनेका नहीं था, वह उनके शीतोपसर्गको पर आपको महान्-पूज्य-नहीं मानता, ये बातें दूर करके उन्हें आराम ही पहुँचाना चाहता था। तो मायावियों-इंद्रजालियोंमें भी पाई जाती उसे यह खबर नहीं थी कि ऐसे कामोंसे. हैं* । क्या सभा स्वामी समंतभद्रके इन उद्गाभी दिगम्बर मुनियोंको उपसर्ग हुआ करता रोको जैनधर्म अथवा महावीर भगवानका है । और इस लिये उसके इस कृत्यसे " गौरव घटानेवाले अथवा घटानेका उद्योग करनेपुण्यका ही बंध हुआ पापका नहीं । लोगोंने वाले समझती है ? यदि नहीं समझती, तो भी उसकी अज्ञता, दयार्द्रता और सरल- फिर किसी पत्रमें यदि इस प्रकारके विचारहृदयके कारण उसे मुनिको उपसर्ग करने या भेदको लिये हुए कोई लेख निकलें अथवा इन उनका गौरव घटाने आदि किसी भी अपरा- पत्रोंके कोई लेखक किसी बातको जैनधर्मके घका अपराधी नहीं समझा। इन दोनों गौरवकी चीज न समझकर उसको वैसी ही अथवा उदाहरणोंसे हमारे पाठक गौरव घटाने, अप- गौरव घटानेवाली प्रतिपादन करें तो उससे मान करने या नुकसान पहुँचाने आदिके उद्यो- सभा उत्तेजित क्यों होती है ? क्या वह इतनेगका रहस्य बहुत कुछ अनुभव कर सकते हैं। हीसे उनकी बदनीयती समझती है ? उदाहकिसी मनुष्य पर गौरव घटाने या नुकसान रणके लिये हालमें 'स्वामी समन्तभद्रकी अद्भुत पहुँचाने आदिके उद्योगका आरोप ( इलजाम) कथा' शीषर्क एक लेख सत्योदयमें प्रकाशित उस वक्त तक नहीं लगाया जा सकता जब हुआ है । इस लेखमें लेखक बाबू सूरजभानजी तक कि उसका कलुषित भाव सिद्ध न हो- वकीलने श्रीसमंतभद्राचार्यकी खुले. दिलसे बदनीयती साबित न कर दी जाय । क्या *देवागमनभोयानचामरादिविभूतयः। सभाके पास ऐसा कोई स्पष्ट प्रमाण मौजूद है मायाविष्वपि दृश्यते नातस्त्वमसि नो महान् ॥ जिससे इन पत्रोंकी बदनीयती पाई जाय और -आप्तमीमांसा । । Jain Education International For Personal & Private Use Only Aww.jainelibrary.org
SR No.522881
Book TitleJain Hiteshi 1920 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1920
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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