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द्वारा खोजे हुए इसी प्रकार के नियमोंसे आपसमें लोगों के मतभेदका निर्णय हो सकता है और होता है ।
जैनहितैषी -
यद्यपि इस विचारणीय विषयके सम्बन्धमें यहाँ दुनियामें सैकड़ों प्रकारके मत माने जा रहे हैं तो भी वे सब, मोटे रूपसे, तीन भागों में विभाजित हो जाते हैं । ( १ ) एक विभागवाले तो एक परमेश्वर या ब्रह्मको ही अनादि अनन्त मानते हैं । इनमें से भी कोई तो यह कहते हैं कि उस ईश्वर या ब्रह्मके सिवाय अन्य कुछ है ही नहीं, यह जो कुछ भी सृष्टि दिखाई दे रही है वह स्वमके समान एक प्रकारका भ्रम मात्र है । कुछ यह कहते हैं कि भ्रम मात्र तो नहीं है, दुनिया के सब पदार्थ सत्रूप विद्यमान तो हैं परन्तु इन सभी चेतन अचेतन पदार्थोंको उस परमेश्वरने ही नास्ति से अस्तिरूप कर दिया है । पहले तो एक परमेश्वर के सिवाय अन्य कुछ भी नहीं था; फिर उसने किसी समयमें अवस्तुसे ही ये सब वस्तुएँ बना दी हैं, जब वह चाहेगा तब इन सब पदार्थोको नास्तिरूप कर देगा और तब सिवाय उस एक ईश्वरके अन्य कुछ भी न रह जायगा । ( २ ) दूसरे विभागवाले यह कहते हैं कि अवस्तुसे कोई वस्तु बन नहीं सकती; वस्तुसे ही वस्तु बना करती है; इस कारण जीव अजीव ये दोनों प्रकारकी वस्तुएँ जो संसार में दिखाई देती हैं न तो किसी के द्वारा बनाई गई हैं और न बनाई ही जा सकती हैं । जिसप्रकार परमेश्वर सदासे है और सदातक रहेगा उसी प्रकार जीव अजीवरूप वस्तुएँ भी सदा से हैं और सदा रहेंगी । परन्तु इन जीवअजीवरूप वस्तुओंकी अनेक अवस्थाओं-अनेक रूपों का बनाना बिगाड़ना उस परमेश्वरके ही हाथमें है । ( ३ ) तीसरे प्रकारके लोगों का यह कहना है कि जीव और अजीव ये दोनों ही प्रकारकी वस्तुएँ अनादिसे हैं और अनन्त तक रहेंगी।
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[ भाग १४
इनकी अवस्था और रूपको बदलनेवाली, संसारचक्रको चलानेवाली, कोई तीसरी वस्तु नहीं है । बल्कि इन्हीं वस्तुओं के आपस में टक्कर खाने से इन्हीं गुण और स्वभावके द्वारा संसारका यह सब परिवर्तन होता रहता है-रंग-बिरंगे रूप बनते बिगड़ते रहते हैं ।
इस प्रकार, यद्यपि इन तीनों प्रकारके लोगों के सिद्धान्तों में धरती आकाशका सा अन्तर है तो भी एक जरूरी विषय में सभी सहमत हैं; अर्थात् ये तीनों ही किसी न किसी वस्तुको अनादि अवश्य मानते हैं । नम्बर अव्वल तो यह कहता है कि परमेश्वरको किसीने नहीं बनाया, वह तो बिना बनाये ही सदासे चला आता है और अपने अनादि स्वभावानुसार ही इस सारे संसारको चला रहा है- अनेक प्रकारकी वस्तुओंको बना बिगाड़ रहा है । नम्बर दोका यह कहना है कि परमेश्वरके समान जीव और अजीवको भी किसीनें नहीं बनाया, वे सदासे चले आते हैं और सदातक रहेंगे । इसी तरह नं० ३ भी कहता है कि जीव और अजीवको किसीने नहीं बनाया, किन्तु ये दोनों प्रकार की वस्तुएँ बिना बनाये ही सदासे चली आती हैं । इन तीनों विरोधी मतवालोंमें यह विवाद तो उठ ही नहीं सकता कि बिना बनाये सदासे भी कोई वस्तु हो सकती है या नहीं और जब यह बात भी सभी मानते हैं कि वस्तुमें कोई न कोई गुण या स्वभाव भी अवश्य ही होता है; अर्थात् बिना किसी प्रकारके गुण या स्वभाव के कोई वस्तु हो ही नहीं सकती है, तब ये तीनों ही प्रकारके लोग यह बात भी जरूर मानते हैं कि जो वस्तु अनादि है उसके गुण और स्वभाव भी अनादि ही होते हैं । अर्थात्, अल एक परमेश्वरको अनादि माननेवाले तो उस परमे -- श्वरके गुण और स्वभावको अनादि बताते हैं; जीव, अजीव और परमेश्वरको अनादि मानने
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