SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२ जनहितैषी [भाग १४ ३-मुनियोंकी महिमा। ३०-उसी मनुष्यको ब्राह्मण कहना चाहिए २१-शास्त्रों में उन महापरुषोंकी बडी महिमा जो ब्राह्मणके कार्य करता है । ब्राह्मणका कार्य लिखी है जिन्होंने संसारिक वस्तुओंका सर्वथा जीव मात्रके प्रति दयाका व्यवहार करना है। त्याग कर दिया है और जो मुनिजीवनका विधि ४-धर्मकी महिमा। ३१-जब धर्मसे इस लोक, परलोक दोनोंका पूर्वक पालन करते हैं। .... सुख साम्राज्य मिल जाता है तब धर्मसे बढ़कर २२-जिस प्रकार मृतक मनुष्योंकी गणना मनुष्यके लिये कौन वस्तु है। करना असम्मव है उसी प्रकार मुनियाँकी महि- . ३२-धर्मसे बढ़कर कोई लाभ नहीं है और माका वर्णन करना मनुष्य की शक्तिसे बाहर है। धर्मकी विस्मृतिसे बढ़कर कोई हानि नहीं है। ___ २३-जिन महात्माऑन इस संसारको तुच्छ ३३-जिस प्रकार हो सके और जहाँ कहीं नाशवान और असार समझकर सांसारिक सुखों- हो सके मनुष्यको निरंतर यथाशक्ति धर्मकार्य का त्याग कर दिया है और मुनिमार्गको करने चाहिएँ।.. ग्रहण कर लिया है उनका महत्त्व इस लोकमें ३४-अपने हृदयको शुद्ध और निर्दोष सर्वाच्च है। बनाओ, इसका नाम वास्तवमें धर्म है । इसके २४-जो महानुभाव अपनी इन्द्रियोंको उसी अतिरिक्त और सब केवल आडम्बर है। प्रकार अपने वशमें कर लेते हैं जिस प्रकार ३५-लोभ, द्वेष, क्रोध और दुर्वचन इन चार अकुंश हाथीको बशमें करता है वे स्वर्गभमि- बातोंका त्याग करके मनुष्यको धर्म करना चाहिए। के लिये उत्तम बीज हैं। ३६-अपने मनमें कभी यह बात मत सोचो २५-जिस योद्धाने अपनी पाँचों इन्द्रियों- कि मरते समय धर्म कर लेंगे, अभी क्या जल्दी को निग्रह कर लिया है उसके बलके स्वयं है। किंतु अभीसे धर्म करना प्रारम्भ कर दो। देवाधिदेव साथी हैं। एक क्षणका भी विलम्ब न करो । क्यों कि ... मरते समय धर्म ही तुम्हारा एक मात्र सहायक ___२६-महापुरुष ही कठिन कार्योंको कर और साथी होगा। सकते हैं; नचि पुरुषोंसे कठिन कार्य नहीं हो 3७-धर्मका फल वाणिद्वारा प्रकट नहीं सकते । ( कठिन कार्योंसे यहाँ पर तात्पर्य यम, किया जा सकता । इसका ज्ञान तुम्हें पालकीमें नियम, साधन, प्राणायाम इत्यादिसे है । ). बैठे हुए मनुष्य और पालकीको अपने कंधे २७-जो मनुष्य स्पर्शन, रसना, घाण, पर रखकर दौड़कर लेजानेवाले मनुष्योंके देखचक्षु और श्रोत्र इन पाचों इन्द्रियोंके विषयको नेसे भली भाँति हो सकता है। भली भाँति समझता है और समझकर उनको ३८-यदि तुम अपने जीवन में निरंतर धर्मअपने वशमें रखता है, संसार उसके अधीन हो कार्य करो और एक दिन भी व्यर्थ नष्ट न करो __ तो तुम पुनरागमनके झंझटसे मुक्त हो जाओगे। ___२८- ऋषियोंके वाक्योंसे उनका महत्त्व ३९-अपनी स्त्रीके साथ रमण करनेमें ही सुख है । अन्यके साथ रमण करना दुःख और प्रकट होता है। नाशका कारण है। २९-जिन महर्षियोंने संसारको सर्वथा त्याग . ४०-मनुष्यको केवल धर्मकार्य करना चाहिए दिया है उनका क्रोध इतना तीव्र होता है कि वे और अधर्मसे बचना चाहिए। स्वयमेव क्षणमात्रके लिये भी उसे रोक नहीं सकते। जाता है।
SR No.522877
Book TitleJain Hiteshi 1920 01 02 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1920
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy