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जैनहितैषी -
[ भाग १४
परवार-महासभाने एक प्रस्ताव वृद्धविवाह के ( त्रुवल्लुव नायनार त्रुकुरल ।
( लेखक - स्वर्गीय बाबू दयाचन्दजी गोयलीय बी० ए० । )
रोकने के लिए पास किया है । प्राय समी जातीय सभाओं में यह प्रस्ताव किया जाता है और उन पर बड़े बड़े जोरोंके व्याख्यान दिये हैं । कुँओंमें ऐसी भाँग पड़ गई है कि कोई भी मस्तकको जरा ठिकाने लाकर यह नहीं सोचता कि इन प्रस्तावोंसे बूढ़े लोग ब्याह के मोहको कैसे छोड़ देंगे ? यदि श्रीगढ़वड़ानन्द शास्त्रीकी ही यह इच्छा हो कि मुझे इस बुढ़ापेमें भी नई दुलहियाके नखरे देखना है, तो उसे रोकनेवाले तुम कौन ? यदि बिरादरी दण्ड देगी तो बन्दा समझेगा कि नई दुलहिया के बापको जब दो हजार दिये हैं, तब बिरादरी भी हजार पाँच सौपानेकी हकदार है। दोकी जगह तीन हजार लगे । और बुढ़ापेमें ब्याह कोई कंगाल तो करता नहीं है, जो बिरादरीके दण्डकी परवाह करे । धनी और मुखिया ही इसके अधिकारी हैं । ऐसे कई जातीय सभाओंके सभापतियोंके ही नाम गिनाये जा सकते हैं जिन्होंने स्वयं इस प्रस्तावको पास किया है और फिर स्त्रीके मरते ही नया ब्याह कर डाला । वृद्ध विवाह रोकनेका यदि कोई उपाय है तो यही कि लड़कियाँ ब्याहके समय तक इतनी सज्ञान बना दी जायँ, वे अपने हित अहितको इतना समझने लगें कि बूढ़ोंसे ब्याह होने
[ जैनहितैषीमें तामिल भाषा के सुप्रसिद्ध महाकवि 3 कुरल का कई वल्लुवर और उनके अमरकाव्य बार उल्लेख किया जा चुका है । यह विक्रम संवत् १०० के लगभग रचा गया था । इसके कर्ताका धर्म क्या था, इस विषय में मतभेद है; परन्तु अधिकांश विद्वानोंने यही निर्णय किया है कि वल्लुवर जैनधर्मके अनुयायी थे । तामिल भाषाभाषियों में इस काव्यका अत्यन्त आदर है । उसके पाठको ब्राह्मण और ब्राह्मणेतर सभी गीताके पाठके समान पुनीत मानते हैं । इसकी पूजा तक की जाती है। मद्रास यूनीवर्सिटी का यह एक पाठ्य ग्रन्थ है । यूरोपकी अंगरेकई भाषाओं में इसके अनुवाद हो चुके हैं । जीमें भी इसके दो तीन अनुवाद हैं । कोई तीन चार वर्ष पहले हमारी इच्छा हुई कि इस अपूर्व काव्यका हिन्दी अनुवाद भी कराया जाय । तदनुसार स्वर्गीय बाबू दयाचन्दजी बी० ए० ने इस काव्यका अनुवाद करना शुरू कर दिया । जहाँतक हम जानते हैं, बाबू साहबने तीन चतुर्थांशसे अधिक अनुवाद तैयार कर लिया था और वे एक तामिल विद्वानकी सहायता से उसका संशोधन कर रहे थे कि अचानक ही उनका स्वर्गवास हो गया । उन्होंने अपने एक पत्रमें मुझे लिखा था कि “ ड ० अँगरेजी अनुवाद बहुत ही भ्रमपूर्ण है, इस लिए मैंने एक मद्रासी विद्वानका किया हुआ दूसरा अंगरेजी अनुवाद मँगा लिया है; साथ ही मुझे यहाँ एक तामिल विद्वानसे परिचय हो गया है जो मूल कुरलके अच्छे जानकार हैं । अब मैंने इन दोनों साधनों की सहायतासे अपने अनुवादका संशोधन करना आरंभ कर दिया है । काम धीरे धीरे होगा, परन्तु अच्छा होगा । " खेद है कि बाबू साहबकी यह इच्छा पूर्ण न हो सकी और हमारा मनोरथ भी मनका रह गया ।
पोपका
मौका आने पर साफ इन्कार कर बैठें और बूढ़ोंसे साफ साफ कह देवें कि अपनी पोती के बराबर लड़की के साथ शादी करनेमें तुम्हें शर्म आनी चाहिए । यदि जी नहीं मानता है, तो किसी अपनी ही उमरकी बुढ़ि याको देख लो । बस, बूढ़ोंकी अकल ठिकाने आ जायगी । इसके सिवाय जिनका एक बार ब्याह हो चुका है, उनको दोबारा कन्या के साथ ब्याह करनेका अधिकार ही नहीं रहना चाहिए । यदि वे ब्याह करना चाहें तो किसी विधवाके साथ करें। पर ये खरी बातें हैं । इन्हें न कोई सुनना चाहता है और न मानना ।
बाबू साहबके स्वर्गवास के बाद जब मैने उक्त अनुवादकी खोजकी तो मालूम हुआ कि उसका बहुतसा अंश नहीं मिलता। न जाने कोई उनके यहाँ से
-श्रीगड़बड़ानन्द शास्त्री ।
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