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________________ अंडू५] विविध प्रसङ्ग। १४५ ताका परिचय दे रही हैं । पारसियोंकी इस ८-१० वर्ष पहले वे एक ऐसी ही प्रतिष्ठा और दानशीलता और सार्वजनिक सेवावृत्तिने ही उन्हें भी करा चुके थे। उस बार वे 'सिंघई' बने थे इस देशकी एक गण्य मान्य जाति बना अबकी बार जैनधर्मके शुभचिन्तकोंने उन्हें - रक्खा है। 'सवाई सिंघई'केपदसे विभूषित कर दिया । - इसके बाद दो रथ प्रतिष्ठायें एक ही साथ जबल६ एक और बड़ा भारी दान । पुरमें हुई और वे और भी अधिक ठाठसे हुई । कलकत्तेके सुप्रसिद्ध वकील सर रासविहारी इनमें भी हमारी समझमें ५०-६० हजारसे कम घोषका नाम जैनहितैषीके पाठक अवश्य जानते रुपयोंका श्राद्ध न हुआ होगा । इनके बाद होंगे । उन्होंने कुछ वर्ष पहले कलकत्ता-विश्व- तीसरी रथप्रतिष्ठा अकलतरा जि० विलासपुरमें विद्यालयको एक वैज्ञानिक कालेज खोलनके हई। संभव है। इसमें उतना रुपया खर्च न लिए दस लाख रुपये की रकम प्रदान की थी। हआ होगा। क्यों कि उस ओर जैनोंकी संख्या उक्त कालेज खल चका है और उससे देशका कम है और रथों में सबसे अधिक खर्च भोजनबड़ा भारी उपकार हो रहा है। अब आपने उक्त प्रसाद'में ही लगता है। तो भी इस महँगाईविश्वविद्यालयको ही ग्यारह लाख रुपये देनेका के जमानेमें २०-२५ हजारसे क्या कम खर्च और भी संकल्प किया है । इससे फलित-रसाय- हआ होगा। गरज यह कि पिछले एक ही महीनकी शिक्षा देने और शिल्पवस्तुयें बनाना नेमें अकेली परवार जतिके जैनोंने लगभग सिखानेकी व्यवस्था की जायगी। उपयोगिताकी सवालाख रुपयेका दान कर डाला । बतलाइप, दृष्टिसे यह दान बहुत ही महत्त्वका है । इससे यह दानशीलता क्या मामूली है ? हमारी जैन देशका बहुत कल्याण होगा । फलित-विज्ञानकी जाति इस प्रकारके दान करने में निरन्तर तत्पर शिक्षाकी इस समय देशको बड़ी भारी आवश्य- रहती है। प्रतिवर्ष सैकड़ों नये नये मन्दिर बनकता है । यदि देशमें इस शिक्षाका प्रचार होता, वाना, पचासों वेदीप्रतिष्ठायें और बीसों रथतो युद्धकालमें हमारे देशके व्यवसायी इस प्रतिष्ठायें या विम्बप्रतिष्ठायें करना इसी दानतरह हाथ पर हाथ रक्खे हुए न बैठे रहते । शीला जातिका काम है । और नहीं तो इन ७ जैनोंकी दानशीलता ।। सब कामोंमें वह प्रतिवर्ष अधिक नहीं तो ६-७ लाख रुपये अवश्य खर्च कर देती होगी । बतयह तो हुई मिथ्यातियोंके दानकी बातें, लाइए, और कौन जाति इस विषयमें उनकी अब आइए. पाठक, आपको जैनोंकी दानशीलता- बराबरी कर सकती है । के कुछ समाचार सुनावें । पिछले महीनेमें ... ८परवार जातिकी दुरवस्था । हमारे यहाँ रथप्रतिष्ठाओंकी खूब धूम रही। एक रथप्रतिष्ठा सागर जिलेके ' हरदी' अब जरा दूसरी ओरकी अवस्था देखिए । नामक ग्राममें हुई थी । उसमें लगभग २० जिस परवार जातिके धनिकोंने एक महीने में लाख हजार भाई एकत्र हुए थे । जो लोग वहाँ गये सवा लाख रुपये खर्च कर डाला है, उसकी थे, उनका अनुमान है कि इस रथमें पचास दुरवस्था सुनकर हृदय काँप उठता है ? हजार रुपयोंसे कम खर्च न हुआ होगा । जिन कुछ समय पहले एक जैनसंस्थाके उपदेशक धनी महाशबने यह प्रतिष्ठा कराई थी, कोई महाशय बुन्देलखण्ड और बघेलखण्डकी ओर
SR No.522877
Book TitleJain Hiteshi 1920 01 02 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1920
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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