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१४४ जैनहितैषी
[भाग १४ दृढ़तासे और सात्विक भावसे उपदेश देश देते इसमें आश्चर्य ही क्या है । वहाँके लोगोंको थे। कभी कभी वे कटुवचन भी सुनाते थे, विद्याबुद्धिमें, कला कौशल्यमें, व्यवसाय वाणिपरन्तु उनमें भी प्रियता और सत्यता रहती थी। ज्यमें और सभ्यता शिष्टतामें संसारके शिरोभसमाजी भाइयोंको क्रिश्चियनोंकी प्रचारपद्धति षण बनना ही चाहिए। “किं किं न साधयतिछोड़ देना चाहिए । वह अनुकरणीय नहीं है।" कल्पलतेव विद्या." ___ महात्मा गाँधीके उक्त विचारोंसे हमारे जैन- ५ पारसी जातिकी दानशीलता । धर्मप्रचारक पण्डितगण भी बहुत कुछ लाभ उठा भारतवर्षमें पारसियोंकी जनसंख्या एक सकते हैं । समाजके समान हमारे यहाँ भी लाखसे कुछ ही अधिक है; परन्तु वह बड़ी ही धनअसहिष्णुता और कटु तिक्त वाक्यप्रहार; ये सम्पन्न जाति है, साथही बड़ी ही दानशीला भी है। दोनों दोष बढ़े हुए हैं । इनसे धर्मप्रचार तो समयोपयोगी सार्वजनिक कार्यों में उसके बराबर नहीं होता, उलटा धर्मद्वेष बढ़ता है । धर्मप्र- दान इस देशकी किसी भी जातिके धनियोंने चारकी वही पद्धति सर्वश्रेष्ठ है; जिसे प्राचीन नहीं किया है। कुछ समय पहले इस जातिके समयके धर्मोपदेष्टा काममें लाते थे और एक धनी मि० एन० एम्. वाडियाने समस्त जिसके विषयमें गाँधीजी इशारा करते हैं। भारतवासियोंके कल्याणार्थ अनेक हितकर कार्योंके शास्त्रार्थोसे और तीक्ष्ण वाग्वाणोंसे लोग चप हो लिए एक करोड़ पचास लाख रुपयेका दान सकते हैं, हार मान सकते हैं: परन्त इससे किया था। इतना बड़ा दान इस देशमें वर्तमान वे विजयी विद्वानके धर्मको स्वीकार नहीं समयमें और किसीने भी नहीं किया है। इस कर सकते और न उन्हें उस धर्मसे प्रेम दान-द्रष्यसे अनेक शुभकार्य हो रहे हैं । इसी ही हो सकता है । क्योंकि प्रेमका विशेष सम्बन्ध वाडिया वंशकी एक जेरबाई नाम्नी महिलाने हृदयसे है, केवल बुद्धिसे नहीं । अतः उसके अभी हाल ही पचास लाख रुपयोंका एकमुश्त उत्पन्न करनेके लिए आघातसे नहीं किन्तु आ- दान किया है। यह धन पारसी जातिके दरिद्र कर्षणसे काम लेना चाहिए ।
और मध्यमश्रेणीके लोगोंकी सहायतामें खर्च
किया जायगा । निस्सन्देह स्त्रीजातिके लिए यह ४ बीस करोड़का महान् दान। दान बड़े ही गौरवकी बात है । विख्यात धनी
अमेरिकाके लोग जैसे धनी हैं वैसे दानी भी हैं। सर जमसेदजीताताने कुछ वर्ष पहले वैज्ञानिक - ज्ञान और विज्ञानकी उन्नतिके लिए अमेरिकाके शिक्षाके लिए जो तीस लाख रुपयेका दान धनियोंने जितने बड़े बड़े दान किये हैं, संसार- किया था और जिससे बंगलोरमें एक विशाल के किसी भी देशमें वैसे दान नहीं किये गये। विज्ञान-शिक्षालय खुला हुआ है, उसे पाठक करोड़ों रुपयोंका एकमुश्त दान करनेवाले वहाँ भूले न होंगे। तातावंशने पटनाके प्राचीन खंडसैकड़ों धनी हो गये हैं और इस समय भी हैं। हर खोदनेके लिए, पूने के भाण्डारकर इन्स्टिट्यूअभी हाल ही वहाँके सुप्रसिद्ध धनकुवेर मि० टमें एक भवन बनवा देनेके लिए, तथा और राकफेलरने विद्या-शिक्षाके लिए एक साथ बीस भी अनेक उपयोगी कामोंमें अनेक दान किये करोड़ रुपयोंका दान किया है। जिस देशमें हैं । बम्बईका जमसेदजी जीजीभाई नामका इतने बड़े बड़े दान होते हैं, वहाँ यदि ज्ञान- विशाल हास्पिटल, जे० जे० आर्ट स्कूल, आदि विज्ञानकी असमान्य उन्नति दिखलाई दे, तो और भी अनेक संस्थायें पारसियोंकी दानशील