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________________ अङ्क १२] कल्कि अवतारकी ऐतिहासिकता। ५१९ यह संभल ग्राम राजपूतानेकी शाकम्भरी नगरी अधार्मिक वृषलोंको नष्ट किया था और म्लेच्छों है, ऐसा अनेक शिलालेखों तथा पृथ्वीराजवि- तथा दस्युओंको मारकर नष्टप्राय आर्यधर्मका जय आदि ग्रन्थोंसे निश्चय होता है। उद्धार किया था * । . ३ उन्होंने एक साधारण मनुष्यके रूपमें ८ उनका यह दिग्विजय क्रूरकर्म ('क्रूरेण जन्म लिया था, और वे देवसेन नामक एक कर्मणा '-वायु० ३६,११४) होने पर भी पराशरगोत्रीय अथवा याज्ञवल्क्यगोत्रीय ब्राह्मण- धर्मकी रक्षा और लोकके हितके लिए किया. के पुत्र थे। गया था ('धर्मत्राणाय लोकाहतार्थाय-' ४ उनके शरीरकी कान्ति चन्द्रमाके समान वायु ३६,१०३।) थी-( ' गात्रेण वै चन्द्रसमः' -वायु, ३६ अ० ९ अपना कार्य समाप्त करके उन्होंने गंगा१११ श्लो० ।) यमुनाके मध्यवर्ती भागमें देहत्याग किया । __ ५ वे बड़े भारी वीर थे और उन्होंने दिग्विजय यथा, वायुपुराण अ० ३६:किया था-( भागवत १२ स्कं० २ अ० १९ ततः स वै तदा कल्किश्चरितार्थः ससैनिकः । ११५ श्लो७ और भविष्यपुराण ३ अंश २६ अ०, + + + . + . + १ श्लो०।) गङ्गायमुनयोर्मध्ये निष्ठां प्राप्स्यति सानुगः । ११७ -, ६ उन्होंने बहुत जल्दी चतुरंग-सेनायुक्त १० उन्हें इस दिग्विजयकार्यमें २५ वर्ष होकर समग्र भारतवर्षको जीत लिया था। लगे थे। यथाःवायुपुराणके ३६ वें अध्यायमें उन देशोंके नाम 'पञ्चविंशोत्थिते कल्पे पञ्चविंशति वै समाः । दिये हैं जिन्हें कल्किने जीता था: विनिघ्नन् सर्वभूतानि मानुषानेव सर्वशः ॥ ११३ उदींच्यान् मध्यदेशांश्च तथा बिन्ध्यापरान्तिकान् १०६ तथैव दाक्षिणात्यांश्च द्रविडान् सिंहलैः सह । -वायु, १० २६ । गान्धारान्पारदांश्चैव पलवान्यवनान्शकान् ॥ १०७॥ अब यह प्रश्न होता है कि ये स्वदेशरक्षक. तुषाराम्बरांश्चैव पुलिन्दान्दरदान्खसान। स्वधर्मपालक, और लोकहितैषी महात्मा कौन लम्पकानन्धकान् रुद्रान्किरातांश्चैव स प्रभुः १०८। थे। पुराणवर्णित युगके शेष अंशमें कल्किके ___ + + + + + समान और कोई भी राजा इतना यशस्वी नहीं प्रवृत्तचक्रो बलवान् म्लेच्छानामन्तकृबली १०९॥ हो सका । उनकी महिमा सबसे अधिक गाई इनमेंसे ब्रह्माण्ड-पुराणमें रुद्रोंके बदले पौण्ढ़ गई है। - गई है। और बर्बरीके बदले शबर आदि कई उनके सम्बन्धमें हम जानते हैं कि उनका पाठभेद हैं । इन समस्त देशोंको जीतकर नाम विष्णुयशस् था, उनका जन्म राजपूताकल्किने साम्राज्यकी प्रतिष्ठा की। नेमें संभवतः पाँचवीं शताब्दिके शेष भागमें ____७ यह दिग्विजय केवल राज्यविजय ही हुआ था, और उनकी दिग्विजय दक्षिणमें नहीं थी, धर्मविजय भी थी। पुराणोंमें लिखा द्रविड देशसे लेकर उत्तरापथ पर्यन्त और पश्चिहै कि, कल्किने नपनामधारी म्लेच्छराजाओंको मसमुद्रसे खसोंके देश आसाम तक हुई थी। नष्ट किया था, धर्मद्वेषी पाषण्डोंको शस्त्रधारी * मत्स्य ४७, २४९-५० । वायुपुराण ३६, ब्राह्मणोंद्वारा परिवृत होकर मारा था, प्रायः १०५-६ । भागवत १२ स्कन्द, २ अ., २०श्लोक।
SR No.522838
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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