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________________ ५२० - जैनहितैषी [भाग १ ___ इन सब विषयोंकी आलोचना करके हम ये सब बातें पुराणवर्णित विष्णुयशाके कार्योंके विद्वानोंके सामने इस सिद्धान्तको निःसन्देह साथ मिल जाती हैं । बल्कि हमारी समझमें तो होकर रखते हैं कि ये पुराणोक्त विष्णुयशाः इस राजाकी 'विष्णु' आख्या और अपरिमित और मालवाधिपति विष्णुवर्द्धन यशोधर्मन् एक वीरकीर्तिका विचार करके ही संभवतः पुराणही व्यक्ति हैं । 'विष्णुवर्द्धन' और 'यशोध-, कारोंने उसे भगवान् विष्णुका अंशसंभूत मान मन् ' इन दोनों नामोंके आद्य अंश 'विष्णु' लिया था। और 'यशस्' मिलाकर पुराणकारोंने 'विष्णु- विष्णुयशोधर्मन और विष्णुयशस् इन दोनोंयशस् । नाम बनाया है । 'विष्णुवर्द्धन' का का जन्मस्थान एक ही है। मन्दसोर ग्राममें यशो'वर्द्धन' शब्द नाम नहीं है; यह सम्राटोंकी धर्मदेवका जो जयस्तम्भ मिला है, उसमें इस वीरत्वज्ञापक उपाधिमात्र है । जैसे अशोकका दिग्विजयी राजाके जन्मस्थानका उल्लेख है। नाम अशोकवर्द्धन, हर्षका हर्षवर्द्धन, आदि । *- दोनोंके जीते हुए देशोंके वर्णनमें भी बहुत संभवतः दिग्विजयके बाद राज्यविजय और धर्म- एकता है । विष्णुयशोधर्माने लोहित्य अर्थात् विजय इन दो प्रकारके कार्योंके परिचायक ब्रह्मपुत्रनदके उपकण्ठसे लेकर महेन्द्रगिरिके विष्णुवर्द्धन और यशोधर्मन ये दो नाम ग्रहण नीचेतक और हिमालयसे लेकर पश्चिमसागर. किये गये थे। तककी भूमिको जीता था। यह वर्णन विष्णुविष्णुयशोधर्ममने अपने शिलालेखमें प्रकट यशाके जीते हुए देशोंके वर्णनके साथ किया है कि, उन्होंने उस युगके निन्द्य आचार- मिलता है। वाले राजाओंके हाथसे देशका उद्धार किया है। दोनोंका अभ्युदयकाल भी मिलता है। उन्होंने लोकके हितके लिए दिग्विजयकार्य विष्णुयशोधर्माने हूणराजा मिहिरकुलको परास्त । आरंभ किया था-(लोकोपकारव्रतः)। वे अपने किया था । मिहिरकुलके पिता तोरमाणका समसामायिक राजाओंके साथ सम्बन्ध नहीं रखते राज्यकाल बुधगुप्तके कुछ ही पीछे है. और थे और उन्होंने मनु, भरत, अलर्क, मान्धाता बुधगुप्तका समय ईस्वी सन् ४८४-८५ है । * आदि राजाओंका काल उपस्थित कर दिया था। मिहिरकुल यशोधर्माके द्वारा काश्मीर देशमें वे अपने जीवितकालमें ही अधर्मध्वंसकर्ता और पराजित हुआ था । काश्मीर जानेके पहले धर्मके निकेतन गिने जाने लगे थे। उनके मिहिरकुलने लगभग पन्द्रह वर्ष भाब्राह्मण प्रतिनिधि भी इस बातके लिए प्रसिद्ध रतमें बिताये थे, यह बात, ग्वालियरके शिला • हैं कि, उन्होंने राज्यमें 'सतयुग' ला दिया है । लेखसे मालूम होती है। अतः यशोधर्माके - द्वारा मिहिरकुलका पराजय ईस्वी सन् ४९९ के _* कितने ही सिक्कोंमें 'विष्णु' नाम खुदा हुआ बाद और ५३३-३४ में मन्दसोरके विजय. है। डा० हानलीके मतसे ये सब सिक्के यशोधर्मा स्तंभ स्थापित होनेके पूर्व हुआ था। इसके साथ विष्णुवर्द्धनके हैं । Hoernle J. R. A. S. पुराणवर्णित कल्किके अभ्युदयकाल (४९९ 1903 p. 352; Ibid, p.p. 133-134. ईस्वी) की एकता है। __ + Fleet, gupta Inscriptions. p.p. 146-147. * Fleet, G. I., p. 159. XIbid. p. 154. 'कृत इव कृतमेतद् येन x Gwalior Stone Inscription, F. राज्यं निराधि ।' G. I., p. 161.
SR No.522838
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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