SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५१८ जैनहितैषी - वर्ष पहले है, यह हम अपने अन्य लेखमें प्रमा णित कर चुके हैं। अतएव मनुसंहिता और पुराणमें पहले कलियुगका जो परिमाण दिया था उसके अनुसार ईस्वी सन्से १८८ वर्ष पहले कलियुगका अन्त होता है। इसी समय सुङ्गवंशीय पुष्यमित्रके द्वारा यवन राजाओंका ध्वंस और सनातनधर्मका अभ्युत्थान हुआ । यह देखकर उस समय के पुराणकारोंने समझ लिया कि कलियुग समाप्त हो गया । इसीसे उन्होंने प्रकाशित कर दिया कि, कलियुगका अन्त हो गया* ● और युगपुराण के समान जो जो पुराण इसके बाद फिरसे संस्कृत तथा परिवर्धित नहीं हुए, उनमें वही वर्णन रह गया, उनमें कल्किकी और कोई भी बात नहीं जोड़ी गई । किन्तु पछेिके पौराणिकोंने जब देखा कि यवनोंके नाश हो जाने पर भी प्रजा पहले ही समान दुर्दशाग्रस्त हो रही है। तब उन्होंने कलियुगका परिमाण बढ़ा दिया और वे पञ्चम शताब्दि के प्रारंभ में कल्किका अभ्युदयकाल ले गये । कल्किके द्वारा म्लेच्छवंशका ध्वंस हो कलियुग पूरा हो गया और सारे दुःखोंका अन्त आ गया, इस प्रकारकी आशा उनके हृदयों में उठी; परन्तु उन्होंने देखा कि, दुःखोंका अन्त नहीं हुआ । युगपुराण में यवनोंके नष्ट होने के समय कलिके अन्तमें प्रजाकी जिस प्रकारकी दुर्दशा बतलाई गई है + ठीक उसी [ भाग १३ प्रकारकी भाषामें कल्किकृत म्लेच्छध्वंस के बाद भी प्रजाकी शोचनीय अवस्था वर्णित हुई है---- " ततो व्यतीत कल्कौ तु.... परस्पर हताश्व निराक्रन्दा सुदुःखिताः” * इत्यादि भाषामें पौराणिकोंने प्रजाओंके दुःखकी कहानीका वर्णन किया और कलियुगका स्थितिकाल एक अनिदिष्ट भविष्यत् तक बढ़ा दिया । कलियुग स्थितिकाल के सम्बन्धमें हमने अन्य लेखमें पुराण और ज्योतिषशास्त्र के आधारसे विस्तृत आलोचना की है । भविष्यन्तीह यवना धर्मतः कामतोऽर्थतः । नैव मूर्द्धाभिषिक्तास्ते भविष्यन्ति नराधिपाः । युगदोषदुराचाराः भविष्यन्ति नृपास्तु ते । स्त्रीणां नालबधेनैव हत्वा चैव परस्परम् ॥ + + + अभीतक जो कुछ कहा गया उससे प्रमाणित हो गया कि, पुराणोक्त कल्कि एक ऐतिहासिक व्यक्ति है; और वह पञ्चम शताब्दि के अन्तिम भागमें उत्पन्न हुआ था । अब यह बतलाया जाता है कि वह कौन था । पुराणों में कल्किके विषयमें जो विवरण मिलता है वह यह है : १ कल्किका परिचित नाम विष्णुयशस् अथवा विष्णुयशस है- ( ' कल्कि र्विष्णुयशा नाम ' - वायु ३६, १०४ और ब्रह्माण्ड ७३, 1 ' कल्कि तु विष्णुयशसः - मत्स्य १०४ ४७, २४८ । ) २ उनका जन्म सम्भल ग्राममें हुआ था( भागवत १२ स्कन्द, २ अध्याय, १८ श्लोक विष्णुपुराण चतुर्थांश, २४ अ०, २६ श्लो०)। भोक्ष्यन्ति कलिशेषे तु वसुधाम् । * भविष्यन्तीह यवना धर्मतः कामतोऽर्थतः । भोक्ष्यन्ति कलिशेषे तु वसुधाम् ॥ इत्यादि + + + ---- + युगपुराणमें यवनोंके सम्बन्ध में इस प्रकार शूद्रा कलियुगस्यान्ते भविष्यति न संशयः । यवनाः क्ष्यपयिष्यन्ति न शचेयं ( ? ) च पार्थिवः । लिखा है:मध्यदेशे न स्थास्यन्ति यवना युद्धदुर्मदाः । तेषामन्योन्यसंभावाः भविष्यन्ति न संशयः ॥ आत्मचक्रोत्थितं घोरं युद्धं परमदारुणम् । ततो युगवशात्तेषां यवनानां परिक्षयम् ॥ * वायुपुराण ३६ अ०, ११७ श्लो०, और ब्रह्माण्ड ७३ अ० श्लो०, ११८ ।
SR No.522838
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy