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________________ अङ्क १२] कल्कि अवतारकी ऐतिहासिकता। Ananww बाधा नहीं आती । राजवंशोंके वर्णनके समय वह देव अन्तर्धान हो गया था ('ततः काले अन्यान्य राजाओंके समान कल्किके भी कीर्ति- व्यतीते तु स देवोऽन्तरधीयत'--मत्स्य ४७ २५५)। कलापोंका वर्णन किया गया है । उसके प्रति इस तरह भविष्यत्कालके साथ भूतकी क्रियादेवत्त्वका आरोप नहीं किया गया, किन्तु वह ओंका मिश्रण रहने से साफ साफ समझमें आ एक साधारण व्यक्तिके रूपमें ही उल्लिखित जाता है कि, पुराणोंके लेखक कल्किसम्बन्धी किया गया है । इसके सिवाय कल्किकी ऐति- घटनाओंको जानते तो थे भूतकालकी ही घटना. हासिकता सिद्ध करनेके लिए केवल साधारण ओंके रूपमें; परन्तु पुराणों के साधारण नियमके भविष्यत्कालके वर्णन पर ही निर्भर नहीं रहना अनुसार उन्हें भविष्यत्कालकी घटनाओंके रूपमें पड़ता । पुराणोंमें, अनेक जगह कल्किके सम्ब- लिखने के लिए लाचार होना पड़ा था। कल्किके न्धमें सुस्पष्ट भूतकालकी क्रियाओंके भी प्रयोग जन्मस्थान और वंश आदिका परिचय एवं पाये जाते हैं । वायुपुराण कहता है कि पराशर- उसकी की हुई दिग्विजयका सिलसिलेबार वर्णन वंशीय विष्णुयशा नामक कल्किने (' कल्कि- आदि बातें ऐसी नहीं मालूम होतीं, जो बिलकुल विष्णुयशा नाम पाराशर्यः प्रतापवान् '-वायु कल्पनाप्रसूत कही जा सकें । और फिर जब ३६,१०४ ) साधारण मनुष्यके रूपमें जन्म पुराणोंमें जगह जगह कल्किके वर्णनमें भूतग्रहण किया था ('मानवः स तु संजज्ञे पारा- कालकी क्रियाओंका प्रयोग हुआ है, तब तो शर्य्यः प्रतापवान्-' वायु ३६,११० ) और वे यह अच्छी तरह सिद्ध हो जाता है कि उसकी कलियुगके पूर्ण होनेपर उत्पन्न हुए थे ('पूर्णे कलि- ऐतिहासिकता अन्य व्यक्तियोंकी अपेक्षा सुदृढ युगे भवत् '-वायु ३६, १११) । ब्रह्माण्डपुराण भित्ति पर प्रतिष्ठित है। भी ठीक इसी प्रकार कहता है कि पराशर- इस बातके भी प्रमाण मिलते हैं कि, कल्किके वंशीय विष्णुयशा नामक कल्किने ('कल्कि- कीर्तिकलापोंका वर्णन आभिनव है और वह विष्णुयशा नाम पाराशयः प्रतापवान्'-ब्र०७३, पीछेसे जोड़ा गया है । ४९८ ईस्वी सनके बाद १०४) मनुष्य होकर बुद्धिवान् देवसेनके पुत्रके जिन सब पुराणों के अन्तिम संस्करण हुए हैं रूप में जन्मग्रहण किया था ('मानवः सतु संजज्ञे उन्हींमें यह कल्किका विवरण पाया जाता है। देवसेनस्य धीमतः'-ब्र० ७३, ११०) और गार्गीसंहिताके अन्तर्गत युगपुराणमें लिखा है कलियुगके पूर्ण होने पर अवतार लिया था ('पूर्णे कि यवन अर्थात् ग्रीक लोगोंके ध्वंसकालके कलियुगेऽभवत्'-ब०७३, १११) । मत्स्यपुराण ( ईस्वी सन्से लगभग १८८ वर्ष पूर्व ) साथ ही कहता है-बुद्धने नवें अवतारके रूपमें जन्म कलिकालकी समाप्ति हो गई । उसमें कलियुगके ग्रहण किया था ('बुद्धो नवमको जज्ञे'-मत्स्य वर्णनमें कल्कि का उल्लेख नहीं है । ४७, २४७ ) और कल्कि विष्णुयशा (विष्णु- मनुसंहिता ( अध्याय १, श्लो०६९-७०), यशसः १) पराशरवंशवालोंका नेता दशवाँ विष्णुपुराण ( अंश ४, श्लो० २४-२६ ) और अवतार होगा ('...... भविष्यति । कल्की तु भागवतपुराण (स्कं० १२, श्लो०.२-२९ ) के विष्णुयशसः पाराशर्य्यपुरःसरः ॥ दशमः' अनुसार कलियुग १२०० वर्षका होता है । ' इत्यादि-मत्स्य ४७, २४८)। इसके बाद उक्त जिस दिन श्रीकृष्णका देहान्त हुआ, उसी -पुराण छः श्लोकोंमें कल्किके दिग्विजयका वर्णन दिनसे ( पुराणानुसार ) कलियुगकी गणना करके कहता है कि कितने ही काल बीतने पर आरंभ होती है और वह समय ईस्वी सनसे १३८८ ..
SR No.522838
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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