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________________ ५१६ जैनहितैषी [भाग १३ कल्कि अवतारकी ऐतिहा प्रमाणं वै तथा चोक्तं महापद्मान्तरं च यत् । अनन्तरं तच्छतान्यष्टौ षट्त्रिंशच समाः स्मृताः॥ सिकता। एतत्कालान्तरं भाव्या अन्ध्रान्ता ये प्रकीर्तिताः॥ [श्रीयुक्त बाबू काशीप्रसाद जायसवाल बैरिस्टर एट. (अथवा 'अन्धान्ते अन्वयाः स्मृताः ।') ला. के बंगलाभाषामें प्रकाशित हुए लेखका अनुवाद।] -वायु, ब्रह्माण्ड, मत्स्य आदि । हिन्दुओंके पुराणग्रन्थोंमें कलिकालके बहुतसे उक्त वचनोंके अनुसार परीक्षितका जन्म राजाओंके राज्यकालका और कार्यकलापोंका महापद्मके अभिषेकके १०५० वर्ष पहले हुआ. भविष्यत्कथनके रूपमें वर्णन मिलता है । इन है। महापद्मने ३७४ से ३३८ ( ईस्वी सनसे भविष्यत्के राजाओंके वर्णनमें अजातशत्रु, पूर्व ) तक राज्य किया है, इस बातको हम उदयी, चन्द्रगुप्त, चाणक्य, अशोक आदि इति- अपने अन्यलेखमें बतला चके हैं + । अतएव हासप्रसिद्ध व्यक्तियोंके जन्म, कर्म आदिके ३७४ से पीछेकी ओर गणना करके जिक्रके साथ साथ कल्किके भी कामोंका उल्लेख ( ३७४+१०५०) ईस्वी सन्से १४२४ है। पुराणकारोंने भविष्यराजाओंके वर्णनप्रसङ्गमें वर्ष पूर्वमें परीक्षितका जन्म हुआ, ऐसा मानना अन्धराजाओंके अनन्तर, भारतवर्षके भिन्न भिन्न पड़ेगा । महापद्मके मृत्युकाल (ईस्वी सन् वंशोंके राजाओंके नामोंके साथ प्रबल और पर्व ३३८ ) से सम्मुखकी ओर ८३६ वर्ष गिअत्याचारपरायण म्लेच्छ राजाओंका वर्णन ननेसे ( ८३६-३३८) ४९८ ईस्वी सन् होता किया है और अन्तमें कहा है कि कल्कि इन है। इसी समय तक 'अन्ध्राताः', अथवा सब अधर्मी म्लेच्छोंका नाश करेंगेः- 'अन्ध्रान्ते अन्वयाः' अर्थात् अन्ध्रोंके परवर्ती करिकनोपहताः सर्वे म्लेच्छा यास्यन्ति सर्वशः। आर्य और म्लेच्छ राजाओंने राज्य किया अधार्मिकाश्च तेऽत्यर्थं पाषण्डाश्चैव सर्वशः ॥ था। इस वर्ष के बाद और किसी भी राजाका -वायुपुराण अ० ३७, श्लोक ३९०। परिचय पुराणों में नहीं पाया जाता-इसी जगह मत्स्यपुराणमें कहा है कि, वे कल्किके द्वारा आकर भविष्य राजाओंका वंशपरिचय समाप्त मारे गये थेः हो गया है। अतएव पूर्ववर्णित अन्धोंके परकहिकनानुहताः सर्वे आर्या म्लेच्छाश्च सर्वतः। वर्ती म्लेच्छ और आर्य राजाओंको 'अन्ध्रान्ताः' अधार्मिकाश्च तेऽत्यर्थं पाषण्डाश्चैव सर्वशः ॥ कहा है, इस विषयमें कोई सन्देह नहीं है । इन ___-मत्स्य अ० २७२, श्लो० २७ । अन्ध्रान्त राजाओंका राज्य ४९८ ईस्वी में समाप्त हो कल्किके बाद और किसी भविष्य राजाका गया है । अतएव इनके बाद ईस्वीसन् ४९९ का वर्णन पुराणों में नहीं किया गया है। वर्ष कल्किके अभ्युदयका समय सिद्ध होता है । पुराणमें राजाओंका जो कालपरिमाण दिया। पहले कहा जा चुका है कि एक ही प्रसङ्गम गया है, उससे ईस्वी सन् ४९८ के अन्तमें यह बात कही गई है कि चन्द्रगुप्त, पुष्यमित्र अथवा ४९९ के प्रारंभमें कल्किके अभ्युत्था- आदि अन्यान्य इतिहासविदित पुरुषों के साथ नका समय मालूम होता है । राजाओंका समयपरिमाण संक्षेपमें इस प्रकार है:-- कल्किके कार्यकलाप भी भविष्यत्कालमें घटित महापद्माभिषेकात्तु यावजन्म परीक्षितः । होंगे, अतएव कल्किकी ऐतिहासकतामें कोई भी एवं वर्षसहस्रं तु शेयं पञ्चाशदुत्तरम् ॥ +J. B.O. R.S. Vol 1, pp. 111-116.
SR No.522838
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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