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________________ जैनहितैषी - ५५६ से निकलकर विजयार्द्धकी गुफाओंमें होती हुई पूर्व और पश्चिम समुद्रमें जा मिली हैं, जिनसे भरत क्षेत्र के छह खण्ड हो गये हैं । ) “ 'यह सब कथन प्रमाण योजनसे है । एक प्रमाण योजन वर्तमानके २००० ( दो हजार कोशके बराबर है । इससे पाठक समझ सकते हैं कि, आर्य खण्ड बहुत लम्बा चौड़ा है। चतुर्थ कालकी आदिमें इस आर्यखण्डमें उपसागरकी उत्पत्ति होती है, जो क्रमसे चारों तरफको फैलकर आर्यखण्डके बहुत भागको रोक लेता है । वर्तमानके एशिया, योरोप, आफ्रिका, अमेरिका और आस्ट्रेलिया ये पाँचों महाद्वीप इसी आर्यखण्डमें हैं । उपसागरने चारों ओर फैलकर ही इनको द्वीपाकार बना दिया है । केवल हिन्दु स्तानको ही आर्यखण्ड नहीं समझना चाहिए । वर्तमान गंगा सिन्धु महागंगा या महासिन्धु नहीं है । " यदि श्रद्धादेवीको सन्तुष्ट रखनेके लिए यह सब कथन किसी तरह सत्य भी मान लिया जाय, तो भी काम नहीं चल सकता । इस कथनसे सम्बंध रखनेवाले जो और और कथन हैं, वे इस मानतासे तत्काल ही रुष्ट हो जाते हैं और मूलकोही नाश करनेके लिए उद्यत हो जाते हैं । जैनधर्मका खगोल ज्ञान कहता है, कि इस लक्षयोजनप्रमाण जम्बूद्वीपमें दो चन्द्र और दो सूर्य अविश्रान्त रूपसे निरंतर परिभ्रमण करते रहते हैं। जम्बूद्वीपके मध्यभागमें जो लक्ष योजन ऊँचा मेरु पर्वत है, उसीके चारों ओर ये चंद्र सूर्य परिक्रमण किया करते हैं । जब एक सूर्य मेरुपर्वतकी दक्षिण ओरको प्रकाशित करता है तब दूसरा उत्तरकी ओरको, और दोनों चंद्र क्रमशः पूर्व और पश्चिम भागमें रहते हैं । अर्थात् प्रत्येक चन्द्र और सूर्य मेरु पर्वत एक ओरका सारा भूभाग प्रकाशित करता है । जो सूर्य या चन्द्र मेरुके [ भाग १३ दक्षिणकी तरफ परिक्रमण करता है, वह अकेले . भरतको ही नहीं, किन्तु उसके समान विस्तार-वाले जम्बूद्वीपके अन्य ६२ भूखण्डों को भी आलोकित करता है । ऐसी दशामें वर्तमानमें जो एशिया, यूरोप, अमेरिका और आस्ट्रेलियादिक भूभागों में (जो जैनधर्मशास्त्रोंके अनुसार भरतखण्डके ही अन्तर्गत हैं ) भिन्न भिन्न का प्रतीत होता है वह कभी घटित नहीं हो सकता । यह तो सर्वप्रत्यक्ष और सर्वथा असंदिग्ध बात है कि जब भारत के बम्बई शहर में दिन के बारह बजते हैं, तब अमेरिकाके न्यूयार्क नगर में रात के बारह बजने की तैयारी होती है ! न्यूज़ीलैंड में जब शामके ६ बजते हैं और रात होने लग हैं, तब इंग्लेंडमें प्रातः कालके ६ बजते हैं और सूर्योदयका समय होता है ! अकेले भरतक्षेत्रहीमें यह दिन रातोंका महान अंतर जैनशास्त्रानुसार कैसे प्रमाणित किया जा सकता है ? उत्तरीय ध्रुवका समीपवर्ती प्रदेश जब ग्रीष्म ऋतुमें लगातार ६ महीने तक सूर्यसे आलोकत रहता है, तब दक्षिणीय ध्रुव उसी तरह अन्धकारनिमग्न रहता है- इन दोनों स्थानों पर क्रमशः ६ महीनेकी रात और ६ महीनेका दिन होता है ! यह बात जैनशास्त्रोंसे कदापि सिद्ध नहीं हो सकती । पृथ्वीको गेंदकी तरह गोल माने बिना इस शंकाका समाधान नहीं हो सकता । शीतकालमें भारतमें रात १३ || घंटेकी और दिन १० ॥ घंटेका हो जाता है । इससे अधिक फर्क कभी नहीं पड़ता । किन्तु इंग्लेण्डमें रात १८ घंटेकी और दिन केवल ६ ही घंटेका रह जाता है ! इस विषमताका कारण कोई जैनग्रंथ नहीं बतला सकता । दूरकी बात जाने दीजिए, हमारे हिन्दुस्थानही की एक बात ले लीजिए । यह तो सभी जानते हैं कि, जिस समय मदरासमें सूर्योदय होता है, उसके ३९ मिनिट बाद बम्बई में सूर्योदय होता है ( कलकत्ता,
SR No.522838
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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