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अङ्क १२ ]
द्रव्यसंग्रह |
विद्यासे, बलसे, वैभवसे, विमल बुद्धिसे सहितविवेक, कर्मयोगको सिद्ध करेंगे, मनमें नहीं डरेंगे नेक । आ स्वतन्त्रते मिल जा हमसे, सभी भाँति अब हैं तैयार,
चाहे प्रथम परीक्षा कर ले, हम न हटेंगे किसी प्रकार ॥ १४ ॥ जिससे दैन्य दूर होता है वही हमें मिल गई जड़ी,
जो मृतक जीवित करती है, निकट खड़ी है वही घड़ी । क्यों मुख मोड़ें? हम स्वराज्यको प्राप्त करेंगे जैसे हो,
तन मन से हम जिसे करें वह काम नहीं फिर कैसे हो ? ॥ १५ ॥
द्रव्य संग्रह । (समालोचना । )
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ले० -श्रीयुत बाबू जुगलकिशोरजी मुख्तार । ) आरा से श्रीयुत कुमार देवेंद्र प्रसादजीके आधिपत्यमें ' दि सैक्रेड बुक्स आफ दि जैन्स' अर्थात् ' जैनियोंके पवित्र ग्रंथः ' नामकी एक ग्रंथमाला निकलनी आरंभ हुई है, जिसके जनरल एडीटर या प्रधान संपादक श्रीयुत प्रोफेसर शरचन्द्र घोशाल एम. ए. बी. एल., सरस्वती, काव्यतीर्थ, विद्याभूषण, भारती नामके एक बंगाली विद्वान हैं । इस ग्रंथमालाका पहला ग्रंथ ' द्रव्यसंग्रह ' जो अभी हाल में प्रकाशित हुआ हैं, हमारे सामने उपस्थित है । द्रव्यसंग्रह, श्रीनेमिचंद्राचार्यका बनाया हुआ जैनियोंका एक प्रसिद्ध ग्रंथ है, जिसमें कुल ५८ पद्य हैं और जिस पर ब्रह्मदेवकी बनाई हुई एक विस्तृत संस्कृत टीका भी पाई जाती है। अनेक वार यह मूलग्रंथ हिन्दी तथा मराठी अनुवादसहित और एकबार उक्त संस्कृतटीका और उसके हिन्दी अनुवादसहित छपकर प्रकाशित हो चुका है। इस तरह पर इस ग्रंथ के कई संस्करण निकल चुके हैं । परंतु अभीतक अँगरेजी संसारके लिए इस ग्रंथका दरवाजा बंद था वह प्रायः इसके
लाभोंसे वंचित ही था । उक्त ग्रंथमाला के उत्साही कार्यकर्ताओं की कृपासे अब वह दरवाजा उक्त संसारके लिए भी खुल गया हैं, यह बड़े ही संतोष और हर्ष की बात है । ग्रंथके उपोद्घात ( preface ) में, उक्त ग्रंथमालाके प्रकाशित करनेका उद्देश्य और अभिप्राय प्रगट करते हुए, लिखा है कि इस " ग्रंथमाला में जैनियोंके उन संपूर्ण पवित्र ग्रंथों को प्रकाशित करनेका विचार है जिन्हें जैनियोंके सभी सम्प्रदाय स्वीकार करते हैं और उन्हें भी जो जैनियोंके किसी खास सम्प्रदाय द्वारा प्रमाण माने गये हैं । " साथ ही यह भी सूचित किया गया है कि “ इस ग्रंथमाला में सभी जैनसम्प्रदायोंके पवित्र विना किसी तरफदारी य पक्षपातके समान आदरके पात्र बनेंगे । इस तरह पर, इस ग्रंथमाला के द्वारा जैनियों के संपूर्ण उत्तम और प्रामाणिक ग्रंथोंको ( प्राचीन संस्कृतटीकाओं तथा अँगरेजी अनुवादादि सहित प्रकाशित करके जैन अजैन सभी के लिए पक्षपातरहित अनुसंधान करनेके वास्ते, एक विशाल क्षेत्र तैयार करनेका अनुष्ठान किया गया है; जिससे अजैन लोक जैनियोंके तत्त्वों का यथार्थ स्वरूप जानकर और जैनी भाई अपने अपने संप्रदाय के वास्तविक भेदों तथा उनके कारणों को पहचानकर परस्परका अज्ञानजन्य मनोमालिन्य
ग्रंथ
."