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________________ ५२४ जैनहितैषी - - [भाग १३ निर्वाणके ठीक १००० वर्ष बाद कल्कि राजा- विक्रमसंवत् ४९३, गुप्तसंवत् ११७ और शक का जन्म हुआ। उस वर्ष माघ संवत्सर था। ३५८ में राज्य करता था। - इससे ऐसा जान पड़ता है कि, शकराजाके. इससे यह निर्विवाद सिद्ध होता है कि, मुप्तसंवत् बाद ३९४ वें वर्षमें माघ संवत्वर था । इसके और विक्रमसंवत्में ३७६ वर्ष का अन्तर है । मार बिरावलमें एक शिलालेख मिला है उस में विक्रम तीन वर्ष बाद वैशाख संवत्सर प्राप्त हुआ । । वैशाख संवत्सरके रहते हुए १५६ वाँ गुप्तवर्ष था। स. संवत् १३२० और वल्लभीसंवत् ९४५ आषाढ़ उस समय परिवाजक महाराज हस्ती नामक । कृष्ण त्रयोदशी रविवारका कालनिर्देश किया गया है । गणित करनेसे ऐसा जान पड़ता है कि, इस मांडलिक राजा राज्य करता था । चूंकि यह . शिलालेखमें दिया हुआ संवत् कार्तिकादि है । राजा गुप्त राजाओंका मांडलिक था, इस कारण : इससे ऐसा सिद्ध होता है कि, उस समय चैत्रादि गुप्त राजाओंका वर्चस्व इसने अपने ताम्रपटमें विक्रमसंवत् १३२१ था। अर्थात् शक संवत् स्वीकार किया है । इसके समयमें गुप्त राजा राज्य करते थे और उस समय गुप्त ... ११८६, चैत्रादि विक्रम १३२१ और वल्लभी वर्ष ९४५ बराबर होते हैं। वर्ष १५६ वाँ था। शक ३९४ में तीन वर्ष शक विक्रम वल्लभी जोड़नसे ३९७ होते हैं । इस लिए वैशाख ११८६ = १३२१ = ९४५ संवत्सर रहते हुए ३९७ शकवर्ष था; और ३५८ = ४९३ = ११७ १५६ गुप्त वर्ष था । इससे जान पड़ता है कि २ २ ८२८ गत वर्ष में २४१ वर्ष मिलानेसे शकवर्ष आता अर्थात् पहले अंकोंसे दूसरे अंकोंको घटा है। अथवा शकवर्ष और गुप्तवर्षमें ठीक २४१ देनेसे ८२८ बाकी बचते हैं । इससे यह सिद्ध वर्षका अन्तर होता है । इस लिए जब कि यह होता है कि, वल्लभी नाम गुप्तशकका ही है कहा है कि कल्कि राजाका जन्म ३९४ वें शक- और मालव नाम चैत्रादि विक्रमसंवत्का है। बर्षमें हुआ तब फिर उसमेंसे २४१ वर्ष घटा और इसी लिए ९४५ बल्लभी वर्षमें २४१ देनेसे यह सिद्ध होता है कि १५३ वें गुप्त , मिलानेसे ११८६ आते हैं। इसकी सिद्धि दो वर्षमें कल्कि राजा उत्पन्न हुआ । अब शक संवत् रीतियोंसे होती है । पहले माध संवत्सरका ३९४ में यदि १३५ मिलाये जायें तो ५२९ हमने उल्लेख किया है; और फिर बिरावलके मालवसंवत् आता है । अर्थात् मालवसे तात्पर्य शिलालेखके अंकोंका उपयोग किया है। इस तरह विक्रम सिद्ध होता है । क्योंकि किसी भी शक- जैन लोगोंके दिये हुए वृत्तान्तसे आज लगभग वर्षमें १३५ जोड़नेसे विक्रमसंवत् आता है। ७८ वर्षके वादविवादका निर्णय हुआ है। यह बात सुप्रसिद्ध है । मन्दसौर-शिलालेखमें ।। यहाँ, इस समय एक बातका और भी उल्लेख ५२९ मालव वर्ष आनेका उल्लेख ऊपर हो चुका करना चाहिए कि, इस समय जिस प्रकार प्रभवहै । यह वर्ष मन्दिरके जीर्णोद्धार करनेका है। विभवादि साठ संवत्सर जारी हैं, उसी प्रकार ईस्वी ऊपर यह भी कहा जा चुका है कि, मालव सन्की पाँचवीं शताब्दिमें माघ वैशाखादि द्वादश सैवत् ४९३ में कोष्टी लोगोंके द्वारा इस मन्दि- संवत्सर जारी थे। रके बनाये जानेका उक्त शिलालेखमें उल्लेख है। जैनग्रन्थकार यह भी कहते हैं कि, कल्कि इससे यह सिद्ध होता है कि कुमारगुप्त राजा राजाने शक ४३४ में गुप्तोंका विस्तृत राज्य ।
SR No.522838
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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