SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अङ्क १२] गुप्त राजाओंका काल, मिहिरकुल और कल्कि। ५२३ सम्पन्न और सद्गुणी थे। उस समय चूंकि एक बड़ी भारी पुस्तक छपाई । यह पुस्तक लिखते बौद्ध धर्मका उत्कर्ष हो रहा था, इस कारण समय ग्वालियर राज्यके मन्दसौर नामक स्थान चीन देशसे अनेक यात्री बौद्धधर्मके तत्त्व सम- पर डा० फ्लीटको एक बड़ा भारी शिलालेख झनेके लिए, संस्कृत भाषाका अध्ययन करनेके मिला। उस शिलालेखसे जान पड़ता है कि मालवलिए और बौद्धोंके पवित्र स्थानोंका दर्शन कर- संवत् ४९३ में कुछ कोष्टी (कोरी) लोगोंने नेके लिए इस देशमें आया करते थे । इसी वहाँ एक सूर्यका मन्दिर बनवायाथा । उस समय समय कालिदासके समान प्रख्यात कवि और कुमारगुप्त नामक गुप्तवंशीय राजा राज्य करता दिङ्नागके समान प्रख्यात तत्त्ववेत्ता हो गये। था। इसके ३६ वर्ष बाद जब कि उसी मन्दिगुप्त राजाओं के अनेक ताम्रपट और शिलालेख का जीर्णोद्धार किया गया. उस समय मालव. मिले हैं। उनमें उन राजाओंने अपना कालनिर्देश संवत् ५२९ था। इस शिलालेखके विषयमें भी किया है । परन्तु उन्होंने जो अपना संवत्. फ्लीट साहबने अपना यह मत दिया कि दिया है उसका आरम्भ कहाँसे समझा जावे, मालवसंवत् विक्रमसंवत् ही है। और यह इस विषयमें विद्वान् लोगोंमें अनेक वर्षों से चर्चा प्रतिपादन किया कि गुप्तशक और शालिवाहो रही है । लेकिन उसका विश्वासयोग्य हन शकमें दो सौ बयालीस वर्षका अन्तर है। निर्णय नहीं हुआ। इस विषयमें अनेक विद्वानों- अन्य विद्वान् लोगोंको यह मत पसन्द नहीं मे बड़े बड़े निबन्ध लिखे हैं । जिन विद्वानोंने आया । इसका परिणाम यह हुआ कि फ्लीट इसका निर्णय करने के लिए प्रयत्न किया है वे बड़े साहबका ग्रन्थ निकल जाने पर भी गुप्तकालके बड़े प्रसिद्ध विद्वान थे और हैं । कुछ विद्वानोंने इस विषयमें वादविवाद जारी ही रहा। विषयका विवेचन करते हुए अल्बरूनीके ग्रन्थका . इतनेमें जैन ग्रन्थों में इस विषयमें बहुत अच्छा आधार लिया है । गजनीके महमूद बादशाहने वृत्तान्त मिल गया है। ईस्वी सनकी ग्यारहवीं सदीमें भारतवर्ष इन जैनग्रन्थों में पहला ग्रन्थ जिनसेन आचापर चढ़ाई की, तब उसके साथ अलबरूनी र्यक्रत हरिवंश है । यह ग्रन्थ शक संवत् ७०५ में नामक विख्यात अरब जातिका पंडित आया लिखा गया है। दूसरा ग्रन्थ उक्त जिनसेन आचार्यके था । उसने अपने ग्रन्थमें गुप्त राजाओं और * शिष्य गुणभद्राचार्यका रचा हुआ उत्तरबल्लभी राजाओंका वृत्तान्त दिया है । उसका पराण है। तीसरा ग्रन्थ नेमिचन्द्राचार्यकृत कथन है कि शक संवत् दो सौ एकतासलीसवें मार है। ये ग्रन्थकार कहते हैं कि वर्षमें गुप्तकाल शुरू हुआ और गुप्तकालको ही महावीर स्वामीके निर्वाणके ६०५ वर्ष ५ बल्लभी. काल कहते थे । गुप्तकाल, गुप्तरा• महीने बाद शक राजा उत्पन्न हुआ । शक राजाजाओंका विस्तृत राज्य लय हो जाने पर प्रारम्भ के ३९४ वर्ष सात महीने बाद चतुर्मुख कल्कि हुआ । परन्तु कई कारणों से उसका यह कथन नामक दुष्ट राजा हुआ। अर्थात् महावीर स्वामीके विद्वानों को मान्य नहीं हुआ । अन्तमें भारतसरकारने इस बातका निर्णय करने के लिए सन् श्रीयुत पाठक महाशय अभीतक हरिवंशपुराण के कर्ता जिनसेनको और आदिपुराणके कर्ता ( गुण१८८४ के लगभग डा० फ्लीटकी नियुक्ति की। भद्रके गुरु ) को शायद एक ही समझ रहे हैं। पर यह डा० फ्लीटने उस समय तक उपलब्ध होनेवाले भ्रम है । विद्वद्रत्नमालामें हम इस बातको अच्छी तरह सारे शिलालेखों और ताम्रपटोंको एकत्र करके सिद्ध कर चुके हैं। -सम्पादक। - -
SR No.522838
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy