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________________ अङ्क ९-१०] पछतावा। morrharu नहीं बोल सकता। और न इस प्रकार शहादत पीछे पीछे जाते थे। मानों अब वे फिर उनसे दे सकता हूँ। न मिलेंगे। कुँवर साहब (कोमल शब्दों में कृपानिधान. पंडित दुर्गानाथके लिए ये तीन दिन कठिन यह झठ नहीं है। मैंने झठका व्यापार नहीं किया परीक्षाके ये । एक ओर कुँवर साहबकी प्रभावहै। मैं यह नहीं कहता कि आप रुपयेका वसल शालिनी बातें, दूसरी ओर किसानोंकी हाय होना अस्वीकार कर दीजिए। जब असामी मेरे हाय। परन्तु विचारसागरमें तीन दिन तक मणी हैं तो मुझे अधिकार है कि चाहे रुपया निमग्न रहनेके पश्चात् इन्हें धरतीका सहारा ऋणके मदमें वमल करूँ या मालगजारीके मदमें। मिल गया । उनकी आत्माने कहा- यह यदि इतनी सी बातको आप झूठ समझते हैं तो पहली परीक्षा है । यदि इसमें अनुत्तीर्ण रहे तो आपकी ज़बरदस्ती है । अभी आपने सेसार फिर आरिभक बजता ही हाथ रह जायगी। देखा नहीं । ऐसी सच्चाई के लिए संसार में स्थान निदान निश्चय हो गया कि मैं अपने लाभके नहीं। आप मेरे यहाँ नौकरी कर रहे हैं । इस लिए इतने गरीबोंको हानि न पहुँचाऊँगा । सेवकधर्म पर विचार कीजिए। आप शिक्षित और दसबजे दिनका समय था। न्यायालयके सामने होनहार परुष हैं। अभी आपको संसारमें बहत मेला सा लगा हुआ था । जहाँ तहाँ श्याम वस्त्रादिन रहता है और बाच्छादित देवताओंकी पूजा हो रही थी। चाँदपारअभीसे आप यह धर्म और सत्यता धारण करेंगे के किसान झुंडके झुंड एक पेड़के नीचे आकर तो अपने जीवनमें आपको आपत्ति और बैठे । उनसे कुछ दूर पर कुँवरसाहबके मुख्तार निराशाके सिवा और कुछ प्राप्त न होगा । सत्य. आम, सिपाहियों और गवाहोंकी भीड़ थी। ये प्रियता अवश्य उत्तम वस्तु है किन्तु उसकी भी लोग अत्यंत विनोदमें थे। जिस प्रकार मछलियाँ सीमा है।' अति सर्वत्र वर्जयेत्' । अब अधिक पानी पहुँचकर किलोलें करती हैं, उसी भाँति सोचविचारकी आवश्यकता नहीं। यह अवसर ये लोग भी आनन्दमें चूर थे । कोई पान खा ऐसा ही है। रहा था, कोई हलवाईकी दूकानसे पूरियोंके कुँवर साहब पुराने खुर्राट थे। इस फेंकैनतसे पत्तल लिये चला आता था। उधर बेचारे कियुधक खिलाड़ी हार गया। सान पेड़के नीचे चुप चाप उदास बैठे थे कि आज न जाने क्या होगा, कौन आफत आयेगी, [५] भगवानका भरोसा है । मुकदमेकी पेशी हुई । इन घटनाके तीसरे दिन चाँदपारके असा- कुँवर साहबकी ओरके गवाह गवाही देने लगेमियों पर बकायालगानकी नालिश हुई । समन कि ये असामी बड़े सरकश हैं । जब लगान आये । घर घर उदासी छा गई । समन क्या थे, माँगा जाता है तो लड़ाई झगड़े पर तैयार यमके दूत थे । देवी देवताओंकी मन्नतें होने हो जाते हैं । अबकी इन्होंने एक कौड़ी भी लगीं । स्त्रियाँ अपने घरवालोंको कोसने लगीं, नहीं दी। और पुरुष अपने भाग्यको । नियत तारीखके कादिर खाँने रोकर अपने सिरकी चोट दिखाई। दिन गाँवके गँवार कन्धे पर सोटा डोर रक्खे सबके पीछे पंडित दुर्गानाथकी पुकार हुई । और अंगोछेमें चबेना बाँधे कचहरीको चले। उन्हीं के बयान पर निपटारा था। वकील साह-सैकड़ों स्त्रियाँ और बालक रोते हुए उनके बने उन्हें खूब तोतेकी भाँति पढ़ा रक्खा था, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522836
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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