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________________ अङ्क ९-१०] पुस्तक-परिचय। ४३१ मि० जार्ज एस. आरंडेलने मद्रासके वैश्य छात्र- हासकी दृष्टिसे उनका बहुत कुछ मूल्य है । सम्मेलनके समक्ष एक शिक्षासम्बन्धी व्याख्यान इसी प्रकारके छह रासाओंका संग्रह पहले दिया था। यह उसीका हिन्दी अनुवाद है। भागमें और तीनका दूसरे भागमें है । प्रारंभमें इसके अनुवादकर्ता हैं, श्रीयुत नारायण राजाराम प्रत्येक रासेका संक्षिप्त सार, तत्सम्बन्धी ऐतिहासोमण । पृष्ठसंख्या ४४ । मूल्य चार आने । सिक टिप्पण और ग्रन्थकर्ताका परिचय भी व्याख्याता महाशय विदेशी हैं; परन्तु भारत लगा दिया गया है । इसके लिए सम्पादक महावर्ष पर उनका प्रेम है और यहाँकी प्राचीन शयने यथेष्ट परिश्रम किया है। इन सब रासासभ्यता पर उनकी भक्ति है, इस कारण उन्होंने ओंमेंसे चार विक्रमकी १६ वीं शताब्दिके, तीन जो कुछ कहा है एक सच्चे भारतवासीके समान १७ वींके और दो१८ वीं शताब्दिके बने हुए हैं। कहा है । यहाँकी प्राचीन शिक्षापद्धति बहुत काव्यकी दृष्टिसे इनकी रचना बहुत ही साधारण अच्छी थी, वह धर्ममूलक थी, धर्म उसका प्राण श्रेणीकी है । इस प्रकारके और भी कई रासे था; उससे शारीरिक, मानसिक और आध्या- इस पुस्तकमालाके आगे निकलनेवाले भागोंमें त्मिक शक्तियोंका विकास होता , था, वर्तमान प्रकाशित किये जायेंगे । सूरि महोदयका यह शिक्षाप्रणालीमें धर्मको। कोई स्थान नहीं है, प्रयत्न प्रशंसनीय है। इस समय छात्रोंकी शारीरिक उन्नति पर ध्यान ८ जेनरल जार्ज वाशिंगटनका जीवन. नहीं दिया जाता, छात्र देशहितसम्बन्धी चरित्र । लेखक, श्रीयुत पं० रामप्रसाद त्रिपाठी कामोंसे दूर रक्खे जाते हैं, उनके लिए देशभक्ति एम. ए. । प्रकाशक, बाबू मनोहरदास, शारदा अपराध है, सरकारकी शिक्षानीति अच्छी नहीं बुकडिपो, काशी। डबल क्राउन सोलह पेजी है, शिक्षाखातेके सारे सूत्र देशवासियोंके साइजके १८० पृष्ठ । कपड़ेकी जिल्दसहित हाथमें होने चाहिएँ, .. आदि अनेक बातों पर पुस्तकका मूल्य एक रुपया । अमेरिकाका संयुक्त इसमें विचार किया गया है और राष्ट्रीय शिक्षाके राज्य पहले इंग्लैण्डका उपनिवेश था । उसका प्रचारपर जोर दिया गया है । अनुवाद मजेका है। शासन इंग्लैण्डकी पार्लमेंण्टके द्वारा होता था। ७ ऐतिहासिक राससंग्रह-भाग १ लो अमेरिकामें जो फरासीसी बसते थे, उन्होंने एक अने २ जो। संशोधक और सम्पादक, शास्त्रविशा- बार वहाँके इंग्लैंडवासियोंके साथ जमीनके रद जैनाचार्य श्रीविजयधर्मसूरि ए. एम. ए. एस. सम्बन्धमें झगड़ा किया। झगड़ा बहुत बढ़ गया बी. । प्रकाशक, अभयचन्द भगवानदास गाँधी, और वह युद्धसे शान्त हुआ। इस फरासीसी प्रबन्धक, श्रीयशोविजयजैनग्रन्थमाला । इसके युद्ध में इंग्लैण्डका धन बहुत खर्च हुआ था, पहले भागमें डिमाई आठ पेजी आकारके १५० इसलिए पार्लमेण्टने इस युक्तिको उपस्थित करके और दूसरे भागमें ११० पृष्ठ हैं । मूल्य प्रत्ये- उक्त खर्चको नये टेक्सोंके द्वारा अमेरिकावालोंसे कका आठ आना । गुजराती भाषामें जैनकवि- वसूल करनेका निश्चय किया कि इस युद्धसे • योंने सैकड़ों ‘रासा' ग्रन्थ बनाये हैं, इस अमेरिकावालोंका ही बहुत लाभ हुआ है । पर यह बातकी चर्चा हितैषीमें कई बारकी जा चुकी बात अमेरिकावालोंको असह्य हुई। उन्होंने टैक्स है। इन रासाओंमें बहुतसे रासा ऐसे हैं, जिनके देनेका विरोध करना शुरू किया । झगड़ा बहुत कथानायक स्वयं ग्रन्थकर्ताओंके समयमें या बढ़ गया। पार्लमेंटका पित्त ऊँचा हो गया । उनसे कुछ पहले हो गये हैं और इसलिए इति- उसने कठोर नीतिका अवलम्बन किया और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522836
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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