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उसका परिणाम स्वभावतः अमेरिकावालोंको अपने हठ पर दृढतासे आरूढ रहने में हुआ । अन्तमें युद्धक भेरी बज उठी, इंग्लैण्ड से सेनायें आने लगीं । लगातार कई वर्षोंतक यह युद्ध होता रहा और अमेरिकावालोंने अपना सर्वस्व लगाकर वह ' स्वाधीनता' प्राप्त की, जिसे वे आज ऊँचा मस्तक किये हुए भोग रहे हैं। इस युद्ध के प्रधान नेता जार्ज वाशिंगटन थे। उन्हीं के अश्रान्त परिश्रम, देशभक्ति, उत्साह, सच्चरित्रता आदि गुणों के कारण यह विजय प्राप्त हुई थी । इस ग्रन्थ में इसी महात्माका- अमेरिका की स्वाधीनताके पिताका - जीवनचरित्र लिखा गया हैं । प्रत्येक देशभक्तके पढ़ने की चीज है। चरित्र के साथ ही साथ अमेरिका के संक्षिप्त इतिहासका भी इससे परिचय प्राप्त हो जायगा । भाषा साधारणतः अच्छी है । प्रूफसंशोधन सावधानी से नहीं किया गया ।
जैनहितैषी -
नीचे लिखी हुई पुस्तकें धन्यवादपूर्वक स्वीकार की जाती हैं:
१ कृपण ( प्रहसन ) । ले० और प्र० --बाबूफूलचन्द जैन, शिकोदाबाद ( यू. पी. ) ।
२ चार सालकी सम्मिलित रिपोर्ट, बुंदेल - खण्ड जैन संस्कृत एंग्लो वर्नाक्यूलर स्कूल, बांदा | प्र० - नायक राजारामजी मंत्री ।
३. जैनों का धर्म, ४ पर्युषण पर्व में क्या करना, ५ इन्दौरका जैनसमाज और फूटका राज्य । प्रकाशक, जैनसमाज सेवक मण्डल, गौराकुंड, इन्दौर सिटी ।
७ चन्द्रकला नाटक | ले०, पं० मुन्नालाल शर्मा और प्रकाशक, लाला माँगीलालजी गुप्त, छावनी नीमच |
[ १ ]
खंडित दुर्गानाथ जब कालेज से निकले तो 'उन्हें जीवननिर्वाहकी चिंता उपस्थित हुई वे दयालु और धार्मिक पुरुष थे । इच्छा थी कि ऐसा काम करना चाहिए जिससे अपना जीवन भी साधारणत: सुखपूर्वक व्यतीत हो और दूसरोंके साथ भलाई और सदाचरणका भी अवसर मिले | ६ वार्षिक रिपोर्ट १२-१३ वें वर्षकी, श्री वे सोचने लगे-यदि किसी कार्यालय में कुर्क बन स्याद्वाद महाविद्यालय, काशी । जाऊँ तो अपना निर्वाह तो हो सकता है किन्तु सर्व साधारण से कुछ भी सम्बन्ध न रहेगा | वकालत में प्रविष्ट हो जाऊँ तो दोनों बातें सम्भव हैं, किन्तु अनेकानेक यत्न करने पर भी अपनेको पवित्र रखना कठिन होगा। पुलिस विभागमें दनिपालन और परोपकार के लिए बहुत से अव
८ बारहवाँ वार्षिक विवरण - तीर्थक्षेत्र कमेटी बम्बई | प्र०, लाला भागमल प्रभुदयालजी ।
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[ भाग १३
९ दो वर्षों की रिपोर्ट, दि० जैन श्राविकाश्रम, मुरादाबाद । प्रका०, गंगादेवी ।
१० सप्तभंगीनय । ले०, लाला कन्नोमल एम. ए. । प्र०, आत्मानन्द जैन ट्रेक्ट सुसाइटी, अम्बाला शहर |
११ शिशु-लोरी । संग्रहकती और प्रकाशक, श्रीयुत बनवारीलाल गुप्त, कासगंज, एटा ।
१२ जैनभजनतरंगिणी । ले०, कविवर हीरालालजी महाराज | प्रकाशक, नौरतनमल, बोहरा, जैनपुस्तकप्रचारक मंडल, अजमेर।
१३ माधुर्यलता । लेखक, कुमुद । प्रकाशका धन्नालाल कठरया, माणिक ग्रन्थमाला कार्यालय, बीना इटावा, ( सागर ) सी. पी. |
१४ जैन सिद्धान्त विद्यालयकी सातवीं वार्षिक रिपोर्ट । प्र०, पं० वंशीधर जैन, मोरेना ( ग्वालियर ) ।
पछतावा ।
( लेखक --श्रीयुत प्रेमचन्दजी ।)
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