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________________ ४१५ अङ्क ९-१०] आदिपुराणका अवलोकन । है वे श्राविकायें नहीं थीं; परन्तु जब ये सब हमारी समझमें सतयुगमें या चौथे कालके बातें तीर्थकर भगवानकी दिव्य ध्वानके अनुसार प्रारंभमें स्त्रियोंका इस प्रकार मद्यपायी होना लिखी गई हैं, तब प्रश्न यह है कि तीर्थकर भग- विश्वासके योग्य नहीं । या तो ग्रन्थकर्त्ताने वानको क्या आवश्यकता थी कि वे उस नगरकी अपने समयकी सर्व साधारण जनोंकी प्रवृत्तिके स्त्रियोंके गुप्तसम्भोगदिका खुल्लमखुल्ला वर्णन अनुसार ये सब बातें लिखी हैं, या काव्यों महाकरते? दूसरा प्रश्न यह है कि वे स्त्रियाँ कौन थीं? काव्योंके नियमोंकी पालना करनेके लिए उन्हें -आर्या या म्लेच्छा ? यदि आर्या थीं तो किस यह सब वर्णन करना पड़ा है । काव्यों और वर्णकी थीं और उनके वर्णमें क्या यह शराब महाकाव्योंमें कितने कितने सर्ग रहने चाहिए पीनेकी रीति प्रचालित थी अथवा अपने वर्णके और उन स!में किन किन विषयोंका वर्णन प्रतिकूल ही वे ये सब क्रियायें कर रही थीं ! रहना चाहिए, संस्कृत साहित्यमें इस प्रकारके तीसरा प्रश्न यह है कि, जब उस समय आदि- अनेक नियम निर्धारित हैं । पीछे पीछे ये नाथ भगवान्के समवसरणमें उनकी दिव्यध्वनि नियम कवियोंके लिए प्रायः अनुलंघनीय बन संसारके जीवोंको सूर्यके समान सन्मार्ग दिखला गये थे, ऐसा जान पड़ता है । यही कारण है रही थी, तब स्त्रियोंमें इस तरहकी बढ़ी चढ़ी जो पिछले महाकाव्योंमें रात्रिक्रीड़ा वर्णन और शराबखोरी कहाँसे आ घुसी ? चौथा प्रश्न यह मधुपान वर्णनके कमसे कम एक एक सर्ग है कि उस कर्मभूमिके प्रारंभिक कालमें ही क्या अवश्य रचे गये हैं । जान पड़ता है, अन्य लोग शराब बनाना और उसका पीना सीख कवियोंके समान जैन कवियोंने भी इन नियमोंगये थे ? को सिर झुकाकर मान लिया था । यही कारण ___ मद्यपानलीलाके इन और इन्हींके सामान है जो चन्द्रप्रभ और धर्मशर्माभ्युदय आदि अन्य प्रकरणों में इस बातकी ओर विशेष लक्ष्य " - जैनकाव्योंमें भी इस विषयके एक एक दो दो १ सर्ग मौजूद हैं । आदिपुराणको भी इसके कर्त्ताने जाता है कि यह मद्यपान जहाँ तहाँ स्त्रियोंको '' एक महाकाव्यके रूपमें रचा है और इसी ही कराया गया है, पुरुषोंको नही । एकाध कारण इसकी रचनामें उन्हें संस्कृत काव्योंके प्रसंगको छोड़कर ( जैसे कि भरतकी नियमोंको मानकर चलना पड़ा है । उन्होंने सेनाके सिपाहियोंका नारियलका रस पीना ) संस्कृत कवियोंके इस नियमको भी माना है कि पुरुष इस व्यसनसे बरी ही रक्खे गये हैं । सुन्दर स्त्रियोंके पैरोंके लगनेसे, उनके पैरोंके पर्व ४६ में एक दरिद्रीकी कथा लिखी गई है । घुघरुअकि शब्दसे, और उनके मुखकी मदिराके दरिद्रीने मुनि महाराजके उपदेशसे आठ प्रका- 3 - कुरलोंसे बहुतसे वृक्ष फूल उठते हैं । रके पापोंका त्याग कर दिया था । यह त्याग __ योषितां मदगण्डूषैपुरारावरंजितैः । कुर्वन् वामानिभिश्चालमांध्रपानपि कामुकान् । २७३। उसके पिताको पसन्द नहीं आया, इस लिए वह -पर्व ४३। अपने लड़केको मुनि महाराजके पास उक्त इसके सिवाय जब शृंगाररसका वर्णन करना त्यागको वापस करनेके लिए लेकर चला । ग्रन्थकर्ताको अभीष्ट था, तब यह संभव नहीं मार्गमें उसे आठों पापोंके अपराधी घोर दण्ड कि वह ऐसी बातोंको न लिखता । क्योंकि स्त्रिपाते हुए मिले, जिनमें मदिरा पीनेका अपराध योंकी उन्मत्तता और मदविह्वलताको प्रकट किये करनेवाली एक स्त्री ही थी। ( देखो श्लोक विना शृंगाररसका चरम उत्कर्ष नहीं दिखलाया २८१-८२।) जा सकता। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522836
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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