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जैनहितैषी -
[ भाग १३
'रानी - हाँ राज्य भी । बादशाह - एक घोड़े के लिए ?
बल थे, बादशाह के कृपाकांक्षी बन बैठे । साथिकुछ तो काम आये, कुछ दगा कर गये । रानी - नहीं - उस पदार्थके लिए जो संसार में यहाँ तक कि निज सम्बन्धियोंने भी आँखें चुरा
योंमें
सबसे अधिक मूल्यवान् है ।
बादशाह -- वह क्या है ? रानी- अपनी आन ।
इस भाँति रानीने एक घोड़ेके लिए अपनी विस्तृत जागीर, उच्च राज्यपद और राजसम्मान सब हाथसे खोया और केवल इतना ही नहीं, भविष्य के लिए काँटे बोये । इस घड़ीसे अन्त दशा तक चम्पतरायको शान्ति न मिली । [ ६ ]
लीं । परन्तु इन कठिनाइयोंमें भी चम्पतरायने हिम्मत नहीं हारी । धीरजको न छोड़ा। उसने ओरछा छोड़ दिया, और वह तीन वर्ष तक बुंदेलखण्ड के सघन पर्वतों पर छिपा फिरता रहा । बादशाही सेनायें शिकारी जानवरोंकी भाँति सारे देशमें मँडरा रही थीं । आये दिन राजाका किसी न किसीसे सामना हो जाता था । सारन्धा सदैव उसके साथ रहती, और उसका साहस बढ़ाया करती । बड़ी बड़ी आपत्तियों में भी जब कि धैर्य्य लुप्त हो जाता-और आशा साथ छोड़ देती, आत्मरक्षाका धर्म्म उसे सम्हाले रहता था तीन सालके बाद अन्तमें बादशाह के सूबेदा रोंने आलमगीरको सूचना दी कि इस शेरका शिकार आपके सिवाय और किसीसे न होगा । उत्तर आया कि सेनाको हटा संकट से लो, और घेरा उठा लो । राजाने समझा, निवृत्ति हुई, पर यह बात शीघ्र ही भ्रमात्मक सिद्ध हो गई ।
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राजा चम्पतरायने फिर ओरछेके किलेमें पदार्पण किया । उन्हें मन्सब और जागीरके ` हाथसे निकल जानेका अत्यन्त शोक हुआ, किन्तु उन्होंने अपने मुँहसे शिकायतका एक शब्द भी नहीं निकाला । वे सारन्धाके स्वभा वको भली भाँति जानते थे । शिकायत इस समय पर कुठारका काम करती । कुछ दिन यहाँ शान्तिपूर्वक व्यतीत हुए । लेकिन बादशाह सारन्धाकी कठोर बातें भूला न था । वह क्षमा करना जानता ही न था । ज्यों ही भाइयोंकी ओरसे निश्चिन्त हुआ, उसने एक बड़ी सेना चम्पत का गर्व चूर्ण करनेके निमित्त भेजी और बाईस अनुभवशील सरदार इस मुहीम पर नियुक्त किये । शुभकरण बुंदेला बादशाहका सूबेदार था । वह चम्पतरायका बचपनका मित्र और सहपाठी था । उसने चम्पतरायको परास्त करने का बीड़ा उठाया । और भी कितने ही बुंदेला सरदार राजासे विमुख होकर बादशाही सूबेदारसे आ मिले । एक घोर संग्राम हुआ । भाइयोंकी तलवारें भाइयोंहीके रक्त से लाल हुईं । यद्यपि इस समर में राजाको विजय प्राप्त हुआ, लेकिन उनकी शक्ति सदाके लिए क्षीण हो गई। निकटवर्ती बुंदेला राजे जो चम्पतरायके बाहु
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[ ७ ] तीन सप्ताह से बादशाही सेनाने ओरछा को घेर रक्खा है । जिस तरह कठोर वचन हृदयको छेद डालते हैं, उसी तरह तोपके गोलोंने दीवा - रोंको छेद डाला है । किलेमें २० हजार आदमी घिरे हुए हैं, लेकिन उनमें आधेसे अधिक स्त्रियाँ और उनसे कुछ ही कम बालक हैं । मर्दोंकी संख्या दिनों दिन न्यून होती जाती है। आनेजानेके मार्ग चारों तरफसे बन्द हैं | हवाका भी गुज़र नहीं । रसदका सामान बहुत कम रह गया है । स्त्रियाँ पुरुषों और बालकोंको जीवित रखने के लिए आप उपवास करती हैं। लोग बहुत हताश हो रहे हैं । औरतें सूर्य्यनारायणकी ओर हाथ उठा उठा कर शत्रुको कोसती हैं ।
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