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________________ अङ्क ८ ] बालकवृन्द मारे क्रोधके दीवारोंकी आड़से उन पर पत्थर फेंकते हैं, जो मुश्किल से दीवारके उस पार जाते हैं । राजा चम्पतराय स्वयम् ज्वरसे पीड़ित हैं । उन्होंने कई दिन से चारपाई नहीं छोड़ी । उन्हें देखकर लोगों को कुछ ढारस होता था, लेकिन उनकी बीमारी से सारे किलेमें नैराश्य छाया हुआ है 1 राजाने सारन्धासे कहा - आज शत्रु जरूर दिलायेगा ? किलेमें घुस आयेंगे । सारन्धा - ईश्वर न करे कि इन आँखोंसे वह दिन देखना पड़े । रानी सारन्धा । राजा - मुझे बड़ी चिन्ता इन अनाथ स्त्रियों और बालकों की है। गेहूँ के साथ यह घुन मी पिस जायँगे । 5 सारन्धा - बादशाह के सेनापतिका प्रतिज्ञापत्र। - राजा - हाँ तब मैं सानन्द चलूँगा । सारन्धा विचारसागरमें डूबी । बादशाह के सेनापतिसे क्यों कर वह प्रतिज्ञा कराऊँ ? कौन यह प्रस्ताव लेकर जायगा ? और वे निर्दयी सारन्धा - हम लोग यहाँसे निकल जायँ ऐसी प्रतिज्ञा करने ही क्यों लगे ? उन्हें तो अपने तो कैसा ? विजयकी पूरी आशा है । मेरे यहाँ ऐसा नीतिकुशल, वाक्पटु, चतुर कौन है, जो इस दुस्तर छत्रसाल का सिद्ध करे । - चाहे तो कर सकता है । उसमें ये सब गुण मौजूद हैं + 1 राजा - इन अनाथोंको छोड़ कर ? सारन्धा—इस समय इन्हें छोड़ देनेहीमें कुशल है । हम न होंगे तो शत्रु इन पर कुछ दया अवश्य ही करेंगे । । राजा - - नहीं, ये लोग मुझसे न छोड़े जायँगे जिन मर्दोंने अपनी जान सेवामें अर्पण कर दी है, उनकी स्त्रियों और बच्चोंको मैं यों कदापि नहीं छोड़ सकता ! - सारन्धा — लेकिन यहाँ रहकर हम उनकी कुछ मदद भी तो नहीं कर सकते । राजा उनके साथ प्राण तो दे सकते हैं । मैं उनकी रक्षामें अपनी जान लड़ा दूँगा । उनके लिए बादशाही सेनाकी खुशामद करूँगा । का रावासकी कठिनाइयाँ सहूँगा, किन्तु इस संकटमें उन्हें छोड़ नहीं सकता । सारन्धाने लज्जित होकर सिर झुका लिया और वह सोचने लगी, निस्संदेह अपने प्रिय साथियोंको आगकी आँचमें छाड़ेकर अपनी Jain Education International ३४९ जान बचाना घोर नीचता है। मैं ऐसी स्वार्थांध क्यों हो गई हूँ ? लेकिन फिर एकाएक विचार उत्पन्न हुआ । बोली- यदि आपको विश्वास हो जाय कि इन आदमियोंके साथ कोई अन्याय न किया जायगा तब तो आपको चलने में कोई वाधा न होगी ? राजा - ( सोचकर ) कौन विश्वास इस तरह मनमें निश्चय करके रानीने छत्रसालको बुलाया । यह उसके चारों पुत्रोंमें सबसे बुद्धिमान और साहसी था । रानी उसे सबसे अधिक प्यार करती थी । जब छत्रसाल रानीको प्रणाम किया तो उसके कमलनेत्र सजल हो गये और हृदयसे दीर्घ निश्वास निकल आया । छत्रसाल - माता मेरे लिए क्या आज्ञा है । रानी—आज लड़ाईंका क्या है क्या ढंग है ? छत्रसाल - हमारे पचास योद्धा अब तक काम आ चुके हैं। रानी -- बुंदेलोंकी लाज़ अब ईश्वर के हाथ है। छत्रसाल — हम आज रातको छापा मारेंगे। रानीने संक्षेपसे अपना प्रस्ताव छत्रसालके सामने उपस्थित किया और कहा- यह काम किसको सौंपा जाय ? For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522834
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
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