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________________ अङ्क ८ ] मूल्य कृत्योंके उपलक्ष में बारह हजारी मन्सब प्रदान किया । ओरछासे बनारस और बनारस से यमुना तक उसकी जागीर नियत की गई । बुंदेला "राजा फिर राज्यसेवक बना, वह फिर सुखविलासमें डूबा, और रानी सारन्धा फिर पराधी ताके शोकसे घुलने लगी । रानी सारन्धा । वली बहादुरखाँ बड़ा वाक्यचतुर मनुष्य था । उसकी मृदुलताने शीघ्र ही उसे बादशाह आलमगीरका विश्वासपात्र बना दिया । उस पर राजा -सभा में सम्मान की दृष्टि पड़ने लगी । खाँ साहब के मनमें अपने घोड़े के हाथसे निकल जानेका बड़ा शोक था । एक दिन कुँवर छत्रसाल उसी घोड़े पर सवार होकर सैरको गया था । वह खाँ साहब के महलकी तरफ जा निकला । वली बहादुर ऐसे ही अवसरकी ताकमें था । उसने तुरत अपने सेवकोंको इशारा किया), राज-कुमार अकेला क्या करता ! _पाँव पाँव घर आया, और उसने सारन्धासे सब समाचार बयान किया । रानीका चेहरा तमतमा गया । बोली- मुझे इसका शोक नहीं कि घोड़ा गया, शोक इसका है कि त उसे खोकर जीता क्यों लौटा। क्या तेरे शरीरमें बुंदेलोंका रक्त नहीं है ? घोड़ा न मिलता न सही, किन्तु तुझे दिखा देना चाहिए था कि एक बुंदेला बालकसे उसका घोड़ा छीन लेना हँसी नहीं है । यह कहकर उसने अपने पच्चीस योद्धाओंको तैयार होने की आज्ञा दी, स्वयं अस्त्र धारण किये और वह योद्धाओंके साथ वली बहादुरखाँके निवासस्थान पर जा पहुँची । खाँसाहब उसी घोड़े पर सवार होकर दरबार चले गये थे । सारन्धा दरबारकी तरफ चली, और एक क्षणमें किसी वेगवती नदीके सदृश बादशाही दरबारके सामने जा पहुँची । यह कैफियत देखते ही दरबारमें हलचल मच गई । अधिकारीवर्ग इधर उधर से आकर जमा हो गये । आलमगीर भी Jain Education International ३४७ 3 सहन में निकल आये । लोग अपनी अपनी तलवारें सँभालने लगे और चारों तरफ शोर मच गया । कितने ही नेत्रोंने इसी दरबारमें अमरसिंहकी तलवारकी चमक देखी थी । उन्हें वही घटना फिर याद आ गई । सारन्धाने उच्च स्वरसे कहा — खाँसाहब ! बड़ी लज्जाकी बात है कि आपने वह वीरता जो चम्बलके तट पर दिखानी चाहिए थी, आज एक अबोध बालक के सम्मुख दिखाई है । क्या यह उचित था कि आप उससे घोड़ा छीन लेते ? वली बहादुरखाँकी आँखोंसे अग्निज्वाला निकल रही थी । वे कड़ी आवाजसे बोले-किसी गैरको क्या मजाज है कि मेरी चीज अपने काममें लाये ? 5 रानी - वह आपकी चीज नहीं, मेरी है । मैंने उसे रणभूमिमें पाया है और उस पर मेरा अधिकार है। क्या रणनीतिकी इतनी मोटी बात भी आप नहीं जानते ? For Personal & Private Use Only खाँसाहब - वह घोड़ा मैं नहीं दे सकता, उसके बदले में सारा अस्तबल आपको नजर है ।. रानी--मैं अपना घोड़ा लूँगी । खाँसाहब--मैं उसके बराबर जवाहरात दे सकता हूँ, परन्तु घोड़ा नहीं दे सकता । रानी - तो फिर इसका निश्चय तलवारोंसे होगा । बुंदेला योद्धाओं ने तलवारें सौंत लीं और करीब था कि दरबारकी भूमि रक्तसे प्लावित हो जाय कि बादशाह आलमगीरने बीचमें आकर कहा - रानी साहबा ! आप सिपाहियों को रोकें । घोड़ा आपको मिल जायगा । परन्तु उसका मूल्य बहुत देना पड़ेगा । रानी -- मैं उसके लिए अपना सर्वस्व त्यागने पर तैयार हूँ । - बादशाह - जागीर और मन्सब भी ? रानी - जागीर और मनसब कोई चीज नहीं । बादशाह - अपना राज्य भी ? www.jainelibrary.org
SR No.522834
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
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