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________________ ३३८ जैनहितैषी [ भाग १३ और उसका जमीन तथा जायदाद पर कुछ श्रीस्वस्ति । शालिवाहन शक १५५६, भाव अधिकार नहीं होगा। संवत्सरमें, आषाढ सुदी १३ को, शनिवारके यदि कोई मनुष्य, इस विज्ञप्तिका उल्लंघन दिन, ब्रह्मयोगमें करके, रहन रक्खेगा या रहन स्वीकार करेगा, __ श्रीमन्हाराजाधिराज, राजपरमेश्वर, अरिराय- . .तो वे राजा जो इस राष्ट्र पर राज्य करेंगे इस . देवके स्वत्वोंको पूर्वरीत्यानुसार सुरक्षित रखेंगे। मस्तकशूल, शरणागतवज्रपंजर, परनारीसहोदर, " जो कोई राजा इस कर्त्तव्यसे अनभिज्ञ रहकर सत्त्यागपराक्रममुद्रामुद्रित, भुवनवल्लभ, सुवर्ण - उपेक्षा धारण करेगा उसे वारणासीमें एक हजार कलशस्थापनाचार्य, धर्मचक्रेश्वर, मैसूरपट्टनाधी- गौओं और ब्राह्मणोंके वध करनेका पाप लगेगा। श्वर चामराज वोडेयर अप ___ इस प्रकार धर्मशासन लिखा गया और दिया पुजारियोंने, अपनी अनेक आपत्तियोंके गया । मंगलमहाश्री। श्री ॥ श्री॥ कारण, बेल्गुलके गोम्मटनाथ स्वामीकी पूजाके नं. ८४। लिये दिये हुए उपहारों (दानकी हुई ग्रामादिक श्रीशालिवाहन शक वर्ष १५५६, भाव संवसंपत्ति ) को वणिग्गृहस्थोंके पास रहन (बंधक) स्सरमें, आषाढ सुदी १३ को, शनिवारके दिन कर दिया था,- और रहनदार लोग (बंधक- ब्रह्म योगमें; श्रीमन्महाराजाधिराज, राजपरमेग्राही-Mortgagees ) उन्हें हस्तगत किये हुए श्वर, मैसूरपट्टनाधीश्वर, षट्दर्शनधर्मस्थापनाचार्य, बहुत कालसे उनका उपभोग करते आरहे थे- चामराज बोडेयर अप्प,-बेल्गोलके मंदिरकी . जमीनें बहुत दिनोंसे रहन थीं, उक्त चामराज चामराज वोडेयर अप्पने, इस बातको मालूम , बोडेयर अप्पने होसवोललुकेम्पप्पके पुत्र चन्नण्ण करके, उन वाणग्गृहस्थाका बुलाया जिनक पास बेल्गुलपायि सेट्टिके पुत्रों चिक्कण्ण और जिगरहन थे और जो संपत्तिका उपभोग कर रहे थे पाय सेट्टि नामके रहनदारों तथा दूसरे रहन और कहा कि- " जो कर्जजात (ऋण )तुमने दारोंको बुलाकर, कहा कि “मैं तुम्हारे रहनका पजारियोंको दिये हैं उन्हें हम दे देवेंगे और रुपया अदा कर दूंगा।" ऋणमुक्तता कर देवेंगे।" इसपर चन्नण्ण, चिक्कण्ण, जिगपायि-सेट्टि इसपर उन वणिग्गृहस्थोंने ये शब्द कहे- मुद्दण्ण, अज्जण्णन-पदुमप्पनका पुत्र पण्डेण्ण, "हम उन ऋणोंका, जो कि हमने पुजारियोंको पदुमरसप्प दोडण्ण, पंचवाण कविका पुत्र दिये हैं, अपने पिताओं और माताओंके कल्या- बोम्मप्प, बोम्मणकवि, विजयण्ण, गुम्मण्ण, णार्थ, जलधारा डालते हुए दान करेंगे।" चारुकीर्तिनागप्प, बेडदय्य, बोम्मि-सेट्टि, होसह__उन सबके इस प्रकार कह चुकने पर,- ल्लिय रायण्ण, परियण्ण गौड, वैरसेट्टि, बैरण्ण, वणिग्गृहस्थोंके हाथोंसे, गोम्मटनाथ स्वामीके वीरप्प, नामके इन सब वणिकों और क्षेत्रपतियोंसम्मुख, देव और गुरुकी साक्षीपूर्वक, यह. कहते न ने, अपने पिताओं और माताओंके कल्याणार्थ, हुए कि-"जबतक सूर्य और चंद्रमा स्थित गोम्मट स्वामीकी मौजूदगीमें और अपने गरु हैं तुम देवकी पूजा करो और सुखसे रहो-". चारुकीर्ति पंडित देवके सन्मुख, जलधारा डालते यह धर्मशासन पुजारियोंको, ऋणमुक्तताके तौर- हुए ब हुए बंधकग्राहियोंके (?) मंदिरानेरीक्षकोंको पर, दिया गया। " रहननामे (Motgage bonds) दे दिये और यह बेल्गोलके पुजारियोंमें अगामी जो कोई उप शिलाशासन रहनोंके छूटनेका लिख दिया । (शाप-काशी रामेश्वरमें एक हजार गोओं और हारोंको रहन रक्खेगा, या जो कोई उन पर रहन ई उन पर रहन ब्राह्मणों के मारनेका पाप)। श्री श्री। करना स्वीकार करेगा, वह धर्मबाह्य किया जायगा - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522834
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
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