SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अङ्क ८] गोम्मटस्वामीकी संपत्तिका गिरवी रक्खा जाना। गोम्मटस्वामीकी संपत्तिका मंदिरोंकी हालतको देखा जाय तो दांतोतले अंगु ली दबानी पड़ती है। जगह जगह कूड़ा कर्कटका गिरवी रक्खा जाना। ढेर लगा हुआ है। बहुतसे मंदिरोंके गर्भगृहोंमेंसे [ले०-श्रीयुत बाबू जुगलकिशोर मुख्तार।] १ इतनी दुर्गधि आती है कि वहाँ ठहरा नहीं जाता! '' नगरमें और पर्वतों पर अधिकांश मंदिर ऐसे हैं __ जो लोग भगवानकी पूजा करके आजीविका जिनमें नित्य क्या, माहनों और वर्षों में भी प्रतिमाकरते हैं-पूजनके उपलक्षमें वेतन लेते अथवा ओंका प्रक्षालन नहीं होता।आठ दिन ठहरने पर दक्षिणा, चढ़ावा या उपहार ग्रहण करते हैं- भी, पुजारियोंकी कृपासे, नगरके दो तीन मंदिर उनमें प्रायः धर्मका भाव बहुत ही कम पाया दर्शनोंके लिए खुल नहीं सके। इतने पर भी “पूजन जाता है। यही वजह है कि समय समय पर कब कराओगे, गोम्मटस्वामीका खास पुजारी मैं उनके द्वारा तीर्थादिकों पर अनेक अत्याचार भी हूँ,दान या इनाम मुझे ही देना, हम आपकी आशा हुआ करते हैं । वे लोग जाहिरमें अपने अंगोंको लगाये हुए हैं," इत्यादि दीन वचन पुजारियोंके चटका मटका कर बहुत कुछ भक्तिका भाव मुखसे बराबर सुननेमें आते थे । इससे पढ़ें दिखलाते हैं और यात्रियों पर उस देव तथा तीर्थके पुजारियोंकी धर्मनिष्ठाका बहुत कुछ अनुभव गुणोंका जरूरतसे अधिक बखान भी किया हो सकता है । यह धर्मनिष्ठा आजकलके करते हैं; परन्तु वास्तवमें उनके हृदय देवभाक्ति पंडेपुजारियोंहीकी नहीं बल्कि इससे कई शताब्दियों तथा तीर्थभक्तिके भावसे प्रायः शून्य होते हैं। पहलेके पंडे पुजारियोंकी भी प्रायः ऐसी ही धर्मनिष्ठा उनका असली देव और तीर्थ टका होता है। पाई जाती है, जिसका अनुभव पाठकोंको. वे उसीकी उपासना और उसीकी प्राप्तिके लिए सिर्फ इतने परसे ही हो जायगा कि इन पुजारिसब कुछ करते हैं । यदि उनको अवसर मिले योंके पूर्वजोंने श्रवणबेल्गोलके गोम्मटस्वामीकी तो वे उस देवतीर्थकी सम्पत्तिको भी हड़प सम्पत्तिको एक समय महाजनोंके पास गिरवी जानेमें आनाकानी नहीं करते ! ऐसे लोगोंके अर्थात् रहन (Mortgage) रख दिया था! लगभग हृदयके क्षुद्र भावों और दीनताभरी याचना- तीनसौ वर्ष हुए जब शक संवत् १५५६ आषाढ ओंको देखकर चित्तको बहुत ही दुःख होता है सुदी १३ शनिवारके दिन मै सूरपट्टनाधीश और समाजकी धार्मिक रुचिपर दो आँसू बहाये महाराज चामराज वोडेयर अप्पके सदुद्योगसे ये विना नहीं रहा जाता । यह दशा केवल हिन्दू सब रहन छूटे हैं। श्रवणबेल्गोलमें इस विषयके तीर्थोके पंडे पुजारियोंहीकी नहीं, बल्कि जैनियोंके दो लेख हैं, एक नं० १४० जो ताम्रपत्रोंपर लिखा बहुतसे तीर्थोके पंडे पुजारियोंकी मी प्रायः ऐसी हुआ मठमें मौजूद है और दूसरा नं० ८४ जो ही अवस्था देखनेमें आती है । पिछली श्रवण- एक मंडपमें शिलापर उत्कीर्ण है । वे दोनों लेख बेल्गोलसम्बन्धी मेरी तीन महीनेकी यात्रामें मुझे कनडी भाषामें हैं। पाठकोंके ज्ञानार्थ उनका इस विषयका बहुत कुछ अनुभव प्राप्त हुआ है। भावार्थ * नीचे प्रकाशित किया जाता है:उस समय तारंगा तीर्थका पुजारी अपने फटे पुराने ट पुरान * यह भावार्थ मिस्टर बी. लेविस राइस साहबके कपड़ोंको दिखलाकर यात्रियोंसे भीख माँगता था! अंगरेजी अनुवाद परसे लिखा गया है। कहीं कहीं श्रवणबेलगोलमें, जिसे जैनबद्री मी कहते हैं, चामराजके विशेषणादि सम्बंध मूलसे भी सहायता ३६ घर पुजारियोंके हैं। परंतु यदि वहाँके ली गई है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522834
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy