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________________ २७६ जैनहितैषी [भाग १३ श्रद्धा उठ गई। कि यह विकल होना भी कुछ महत्त्व रखता है या नहीं । विचार करनेसे इस भयानक आवाजको उतना भी महत्त्व नहीं दिया जा सकता, जितना (ले०--ब्र० भगवानदीनजी 1) एक बड़े प्रेमी पतिकी अपनी प्यारी पत्नीके विधवा श्रद्धा उठ गईकी गूंज इतनी मुद्दतसे और हो जानेकी खबर सुनकर विकल होनेकी बात "इस जोरशोरसे होती आ रही है कि सुनते पर दिया जाता है । यद्यपि समाज उटकर चली सुबते तबीयत ऊब गई है और कानकी झिल्लियाँ जानेवाली श्रद्धाके पीछे सिर पर पैर रख कर दौड़ा कमजोर हुई जाती हैं । पर जान पड़ता है कि जा रहा है; परन्तु जब आदमी कान न टटोलकर यह कभी बन्द होनेवाली नहीं । जबतक संसार कान ले जानेवाले कौएके पीछे दौड़ सकता है, है और मनुष्योंमें समझनेकी शक्ति है, तबतक यह तब समाजकी दौड़ धूपसे हमें क्यों आश्चर्यगँज जारी ही रहेगी। इतिहासके पृष्ठके पृष्ठ इस युक्त होना चाहिए ? इस दौड़नवाले और शोर 'श्रद्धा उठ गई' की कथाओंसे भरे हुए हैं। मचानेवाले समाजको यह भी तो मालूम नहीं है लोग यह चिल्लाते ही रहेंगे कि उठ गई; परन्तु कि हम कहाँ दौड़े जा रहे हैं, क्यों दौड़े जा रहे वह बैठी ही रहेगी ! यदि उठ गई होती तो शोर हैं और यह शोर क्यों मच रहा है । यह कोई बन्द हो गया होता; परन्तु ऐसा न कभी हुआ कल्पना, गढन्त या दिल्लगी नहीं है कि इस समा. और न होगा। यह आवाज अकेले जैन धर्मावला- जके अधिकांश लोगोंने समझ रखा है कि म्बियोंमें ही नहीं प्रत्येक धर्मके लोगोंमें सदासे श्रद्धा एक गठरी है, वह किसी श्रावककी थी; सुनी जाती रही है और आगे भी सुनी जाती उसको कोई चोर ले गया है और हम उसीकी रहेगी । यति, मुनि, पण्डित, मुल्ला, गुरु- खोजमें भागे जा रहे हैं। कुछ लोग कहते हैं, साहब और पादरी सबको ही यह शोर मचाते नहीं जी, श्रद्धा छानको कहते हैं और वह रहना होगा । जब यह बात है तब सम्भव है यही उन्नतिका मंत्र हो । इसहीं में आपके पास उठाकर छत पर रख दी गई है । यह शोर क्या प्रमाण है, कि मर्गके बिना बाँग दिये भी उसाक लिए है । जब धर्मकी सभी बात अचरसूर्य निकल सकता है ? आप सर्वज्ञ तो हैं ही जोसे भरी होती हैं, तब यह भी साधारण क्यों हो! नहीं । इस बातकी नियमानुसार खोज भी कब एक समय था, जब मुसलमान लोग काफिकी गई है । कभी समवसरणसभामें भी तो यह रोंके पीछे इसी प्रकार दौड़ा करते थे। जहाँ प्रश्न उपस्थित नहीं किया गया । वास्तवमें यह यह खबर उड़ी कि काफिर आ गया, बस प्रश्न बड़े महत्त्वका है। इसे आप फुर्सतके वक्त फिर क्या था, लोग लाठी ले लेकर घरोंमेंसे विचारिए । यदि यह उन्नतिका मंत्र न होता तो निकल पड़ते थे और जिस पर उनके नेताने बड़े बड़े विद्वान् इसमें कदापि सम्मिलित न होते। हाथ उठा दिया उसी पर उनकी लाठियाँ चलने कुछ भी हो, समय युक्तियोंका है, गहरी खोजोंके लगती थीं । काफिरका पीछा करते समय यदि करनेका है, इस लिए हमको अपने लेखमें इन कोई उनसे पूछ बैठता था कि भाई काफिर क्या दोनों बातोंको एकत्र करना होगा, तभी लोग बला है, तो अपनी अपनी बुद्धिके अनुसार कोई हमारी बातको मानेंगे। उसको भूत बतलाकर, कोई शेर, शैतान आदि समाज इस आवाजको सुनकर बहुत ही विकल कहकर प्रश्नकर्ताका समाधान कर देते थे। हो रहा है । इसलिए पहले हम यह तो देख लें काफिरका साक्षात् हो जाने पर भी वे अपने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522833
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size4 MB
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