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________________ २७० जैनहितैषी [भाग १३ जाता रहा हो, केवल अमितगतिने ही मृत्युका संवत् लिखा हो, तो इसके विरुद्ध क्या प्रमाण है ! प्रमाण यह है कि राजा मुञ्जका समय सुनिश्चित है । अनेक शिलालेखोंसे और दानपत्रोंसे यह बात निश्चित हो चुकी है कि वे विक्रम संवत् १०३६ से १०७८ तक मालवदेशके राजा रहे हैं। १०३६ का उनका एक दानपत्र मिला है । उसके पहले भी वे कितने दिनोंतक राजा रहे, यह मालूम नहीं। १०७८ में कल्याणक राजा तैलिपदेवके द्वारा उनकी मृत्यु हुई थी और इसी वर्ष भोजका राज्याभिषेक हुआ था। अमितगतिने सुभाषितरत्नसंदोहके बननेका समय १०५० दिया है और उस समय मुन्न राज्य कर रहे थे, ऐसा लिखा है। अब यदि इस १०५० संवतको हम जन्मका संवत् बनावें, तो इसमें विक्रपकी उम्र जो ८० वर्ष कही जाती है जोड़नी चाहिए । अर्थात ११३० संवतक लगभग यह समय पहुँच जायगा; अथवा राज्याभिषेकका संवत् बनावें और अनुमानतः आभषेकके समयकी अवस्था २० वर्ष मान लें, और इसलिए ( ८०-२०-६० ) साठ वर्ष जोड़ें तो १११० के लगभग पहुँच जायगा। परन्तु इस समयतक मुञ्जके रहनेका कोई प्रमाण नहीं है। मुंजके उत्तराधिकारी भोजकी मृत्यु सं० १११२ के पूर्व हो चुकी थी और १११५ में उदयादित्यको सिंहासन मिल चुका था। इससे सिद्ध है कि विक्रमका वर्तमान संवत् उसकी मृत्युका ही संवत् है और दर्शनसारमें जो संवत् दिया गया है उसको और प्रचलित विक्रम संवतको एक ही समझना चाहिए। - इस विषयमें यह बात भी ध्यानमें रखने योग्य है कि संवत् एक स्मतिका चिह्न या यादगार है। इसका चलना मृत्युके बाद ही संभव है। जो बहुत प्रतापी और महान होता है उसको ही साधारण जनता इस प्रकारके उपायोंसे अमर बनाती है । सर्व साधारणके द्वारा राज्याभिषेकका संवत् नहीं चल सकता । क्योंकि सिंहासन पर बैठते ही यह नहीं मालूम हो सकता कि यह राजा अच्छा होगा। कोई कोई राजा लोग अवश्य ही अपने दानपत्रादिमें अपने राज्यका संवत् लिखा करते थे; परन्तु वह उन्हीं के जीवन तक चलता था । इसी तरह जन्मका संवत् भी नहीं चल सकता ।भगवान् महावीर, ईसा, मुहम्मद आदि सबके संवत् मृत्युके ही हैं । अब सब संघोंके समयकी जाँच की जानी चाहिए। सबसे पहले द्राविड संघको लीजिए। इसकी उत्पत्तिका समय है वि० संवत् ५२६ । इसका उत्पादक बतलाया गया हैं आचार्य पूज्यपादका शिष्य वज्रनन्दि । दक्षिण और कर्नाटकके प्रसिद्ध इतिहासज्ञ प्रो० के. बी. पाठकने किसी कनडी ग्रन्थके आधारसे मालूम किया है कि पूज्यपाद स्वामी दुर्विनीत नामके राजाके समयमें हुए हैं । दुर्विनीत उनका शिष्य था। दुर्विनीतने विक्रम संवत् ५३५ से ५७० तक राज्य किया है। वज्रनन्दि यद्यपि पूज्यपादका शिष्य था; फिर भी संभव है कि उसने उन्हींके समयमें अपना संघ स्थापित कर लिया हो । ऐसी दशामें ५२६ के लगभग उसके द्वारा द्राविडसंघकी उत्पत्ति होना ठीक जान पड़ता है। __इसके बाद यापनीय संघके समयका विचार कीजिए । हमारे पास जो तीन प्रतियाँ हैं, उनमें से दोके पाठोंसे तो इसकी उत्पत्तिका समय वि० सं० ७०५ मालूम होता है और तीसरी ग प्रतिके पाठसे वि० सं० २०५ ठहरता है । यद्यपि यह तीसरी प्रति बहुत ही अशुद्ध है, परन्तु ७०५ से बहुत पहले यापनीय संघ हो चुका था, इस कारण इसके पाठको ठीक मान लेनेको जी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522833
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size4 MB
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