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में आया। डरके मारे मेरा श्वास रुकने के किनारे पर आ गया । ' पट ' से एक बटन दबाने की आवाज हुई और कमरे में बिजलीकी रोशनी फैल गई । एकदम उजाला होनेके कारण मेरी आँखें चकचधा गई ।
जैनहितैषी -
जब थोड़ी देरमें आँखें खुलीं तब मैंने देखा कि मेरे सामने ही एक स्त्री सकपकाई हुई खड़ी है। आश्चर्य और भय से निश्चेष्ट होकर रमणी मेरी ओर देख रही है । मेरा सिर घूमने लगा, मानों पैरोंके नीचेकी जमीन खिसकती जा रही है दीवारका सहारा लेकर मैंने अपने आपको गिरने - से बचाया | मानों अपने भीतर मैं नहीं रहा ।
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आश्चर्यका वेग बीत जानेपर रमणीकी नजर दराज पर पड़ी। वह दरवाजेकी ओर बढ़ी। अब मुझे भी होश हुआ । समझा कि वह और किसीको
जा रही है । पागलकी तरह मैं दरवा - जे की ओर लपककर उसके पैरों पर लोट गया । वह हलकीसी चींख मारकर दो पैर पीछे हट गई। मैंने कातर और दीन भावसे कहामुझे क्षमा करो, मेरा सर्वनाश मत करो, किसी को बुलाओ मत।
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माता,
पत्थर की मूर्तिके समान चुपचाप खड़ी हुई वह मेरी ओर सन्देहकी दृष्टि से देखने लगी । फिर कहने लगा- "मा, मैं भले घरका हूँ, विवश होकर आज एक दिनके लिए चोर बना हूँ, इसके सिवाय मेरे लिए और कोई उपाय न था, मेरा विश्वास करो - मेरा विश्वास करो। "
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उस रमणीने कुछ भी न कहा । वह वैसे ही पत्थर की मूर्तिके समान खड़ी रही। मैंने नजर उठाकर उसे देखा । मेरी दीनता देखकर ही हो, या माता कहनेसे ही हो—चाहे जैसे हो पर उसके मुखसे डरका भाव चला गया । मानों वह समझ चुकी कि मेरे द्वारा उसकी कोई हानि न होगी। नहीं तो अबतक वह अवश्य ही किसीको पुकारती ।
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मैंने दबे हुए स्वरमें, संक्षेपसे अपनी सब अवस्था उससे कह दी। अब उसके पास दयाके
[ भाग १३
सिवाय मेरे लिए और उपाय ही क्या था ?
रमणीकी दृष्टि कोमल हो आई, मानों उसने मेरी बातका विश्वास किया । पर तब भी उस एक शब्द भी न निकाला । मैंने कहा - " मैंने चोरी की है पर मैं, चोर नहीं हूँ । आप दराज खोलकर देख लीजिए, मैंने और कोई ग नहीं लिया । सोचा था कि इस चुडीको गिरवी रखकर अपनी स्त्रीका इलाज करूँगा, पर मालूम होता है कि भगवानकी यह मरजी नहीं है । लो मा, यह अपना गहना लो। मैं चोर भी बना और अपनी स्त्रीके प्राण फिर भी न बचा सका ! " यह कहकर मैंने वह चूड़ी उसके पैरों के पास रख दी। मेरी आँखोंसे दो बूँद आँसू टपक पड़े ।
उस रमणीने एक बार अपने गहने की ओर और एक बार मेरे मुँहकी ओर देखा । फिर गर्दन टेढी करके थोड़ी देर खड़ी रहने के बाद वह अत्यन्त कोमल स्वर में बोली - "इस चूड़ीको तुम ले जाओ । "
मैं आश्चर्य में डूबकर उसके मुँहकी ओर देखता रह गया । फिर गद्गद कंठसे मैंने कहामा, तुम साक्षात् देवी हो । आपकी दयासे आज मेरी स्त्रीके प्राण बचेंगे । यह उपकार मैं इस जन्ममें न भरूँगा । जैसे होगा वैसे इसे गिरवी से छुड़ाकर मैं वापिस लोटा दूँगा ।
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- " लौटाने की कोई जरूरत नहीं है । तुम जल्दीसे यहाँ से चले जाओ । ” यह कहकर स्त्रीने उँगली से दरवाजा दिखा दिया ।
[ ४ ]
धीरे धीरे घर से बाहर निकल आया। उस मैं छतकी ओर बढ़ रहा था कि इतने में समय मन में नाना प्रकारके भाव आ रहे थे । चोर " । मेरा सब शरीर पत्थर हो गया । मान अकस्मात् न मालूम कौन पुकार उठा - " चोर, आकाशके सब तारे मुझे नजर गड़ाकर देख रहे हैं और कह रहे है- " चोर चोर । "
नीचे से कोई जल्दी जल्दी ऊपर चढ़ता चला आ रहा था । और भी कई तरफ से कई मनुष्यों की आवाज सुनाई दी । हतज्ञान होकर मैं फिर उसी रमणीके घरमें आगया । उसने भी " चोर, , चोर"
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