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________________ अङ्क ५-६] योग-चिकित्सा। २२५ यड़ा हुआ हृदय चंचल हो उठेगा, तुम्हारे नि- है। स्नायुओका बल केवल इतना ही है कि वह स्तेज नेत्र चमकने लगेंगे और तुम्हारी मंद जठ- तुम्हारे मनकी आज्ञाके अनुसार कार्य कर दे। राग्नि वैश्वानरके रूपमें प्रकट होगी। तुम एक एक उदाहरण लो। तुम दस मील चलकर आये अपूर्व बलका अनुभव करोगे और जीवनका सच्चा हो, इस लिए कुछ थक गये हो । इसी समय आनंद लूटोगे। तुम जिससे मिलोगे उसे ही यदि कोई तुम्हें ऐसा समाचार सुनावे जिससे तुम अपनी शक्तिसे पराजित कर डालोगे। मैं कहता उत्तेजित हो उठो और तुमको बीस मील और हूँ, केवल इतना ही नहीं, इससे सैकड़ों गुनी चलनेकी आवश्यकता प्रतीत होने लगे तो तुम सफलतायें प्राप्त कर सकोगे। केवल विश्वास उठकर खड़े हो जाओगे और चलना प्रारंभ कर रक्खो, आत्मश्रद्धा रक्खो और इस लेखमें बताई दोगे। तुम इस धुनमें बीस मील चले जाओगे हुई क्रियाओंको आचारमें लाओ। और तुम्हें कुछ भी थकावट न मालूम होगी । जब ___ तुम्हारे आसपास वायु है और तुम्हारी जीवन- तुम्हारे यहाँ किसीका विवाह होता है या जब क्रियाको परिचलित करनेके लिए तुम्हारे फेंफ- कोई बीमार पड़ता है तब तुम मनकी उत्तेजित डेमें उसकी अवश्यकता है। परंतु यदि तुम नाक अवस्था प्रतिदिन बेशुमार चलते फिरते हो, . बंद करके बैठे रहोगे तो क्या वह अमृत वायु परंतु क्या तुम्हें उस समय श्रम प्रतीत होता है ? तुम्हारे शरीरमें प्रवेश कर सकेगी ? नहीं। एक सिपाही ज्वरसे पीड़ित पड़ा हुआ है । ऐसी तुमको इच्छाशनिक बल द्वारा नाकके द्वारोंको स्थितिमें युद्ध आरम्भ होता है और रणवाद्य खोलना पड़ेगा और फेफड़ोंको खाली करना बजने लगते हैं । उनका स्वर कानों में पड़ते ही पड़ेगा, जिससे वायु अपने आप ही तुम्हारे शरी- उस सिपाहीमें वीरत्व आ जाता है। इस वीरत्वके रमें प्रवेश करेगी। इस विश्वमें अनंतशक्ति भरी आदेशसे ज्वर एकदम उतर जाता है और वह हुई है और तुम शक्तिसमूहके बीच बैठे हो। पागलके समान रणक्षेत्रकी ओर दौड़ जाता है। अब तुम्हें केवल इच्छाशक्तिका उपयोग करना यह बल किसका है ? मनका या शरीरका ? सीखना है । इच्छासे उस शक्तिको शरीरमें खीं- शरीरके ऊपर मनका पूर्ण अधिकार है, इस चना सीखो। वह तुम्हारी आज्ञाके वशमें है। वातको सभी मानते हैं । जब तुम क्रोधित तम ऐसा अनुभव करो कि वह अनंतशक्ति मेरे होते हो तब तुम्हारे नेत्र लाल हो जाते हैं; जब शरीरमें प्रवेश कर रही है-मेरे शरीरके अवयव तुम भययुक्त होते हो तब तुम्हारा मुख मलिन उससे पूर्ण हो रहे हैं और उससे नये रजः कण पड़ जाता है । तुम निद्रित अवस्थामें हो और बन रहे हैं । बस इतनी इच्छा दृढ़तापूर्वक करो स्वप्नमें किसीके साथ लड़ते हो, तो कभी कभी और फिर क्या चमत्कार होता है उसे देखो। तुम बोल उठते हो और हाथ पैर फेंकने लगते .. मनोबलकी महिमा । हो । स्वप्नमें कामवश होनेसे वीर्यस्त्राव हो जाता _तुम मनोबलका प्रभाव जानते हो ? न है । इन सब बातोंसे यही सिद्ध होता है कि जानते हो तो अब जान लो। तुम्हारे हाथ पैरके शरीर पर मनका बहुत बड़ा प्रभाव है । कसरत स्नायुओंमें शक्ति है । तुम भारी वजन उठा सकते सिखानेवाले उस्ताद उपदेश दिया करते हैं कि हो और दस मील चल सकते हो। इससे तुम शरीरको दृढ़ करनेवाली कसरत करते समय मनको यह मानते होगे कि यह बल हमारे स्नायुओंका भी कसरतमें लगाना चाहिए। मैं बलवान होता है । नहीं, उसमें अधिकांश बल तुम्हारे मनका जाता हूँ ऐसी भावना करना चाहिए; अन्यथा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522833
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size4 MB
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