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________________ अङ्क ५-६] वर्ण और जाति-विचार। खाकर वैश्य बनाये, और नीच काम करनेवाले कि कोई मनुष्य अपने वर्णके पेशेको छोड़शूद्रोंकी रचना अपने पैरोंसे की, क्योंकि उच्च कर दूसरे वर्णका पेशा न करे । यदि कोई ऐसा वर्णोकी सेवा करना ही उनकी आजीविका है । करेगा तो उसको राजासे दंड मिलेगा और अथाधिराज्यमासाद्य नाभिराजस्य सन्निधौ। वह वर्णसंकर हो जायगा । प्रजानां पालने यत्नमकरोदिति विश्वसृट् ।। २४१॥ स्वामिमां वृत्तिमुत्क्रम्य यस्त्वन्यां वृत्तिमाचरेत् । कृतादितः प्रजासर्गतद्वृत्तिनियमं पुनः। स पार्थिवनियंतव्यो वर्णसंकीर्णिरन्यथा ॥ २४८ ॥ स्वधर्मानतिवृत्त्यैव नियच्छन्नन्वशात्प्रजाः॥२४॥ --आदिपुराण पर्व १६ । स्वदोभ्या धारयन् शस्त्रं क्षत्रियानसृजद्विभुः। क्षतत्राणे नियुक्ता हि क्षत्रियाः शस्त्रपाणयः ॥ २४३ ॥ ___भगवानने उपर्युक्त आज्ञाके द्वारा शूद्रोंको ही उरूभ्यां दर्शयन्यात्रामस्राक्षीद्वणिजः प्रभुः। " बाध्य नहीं किया, अर्थात् केवल उन्हीके वास्ते जलस्थलादियात्राभिस्तवृत्तिर्वार्तया यतः ॥ २४४॥ यह रोक पैदा नहीं की कि वे क्षत्री या वैश्यका 'न्यम्वृत्तिनियतान् शूद्वान् पद्भ्यामेवासृजत्सुधीः। पेशा न कर सकें, बल्कि क्षत्रियों को भी मजबर वर्णोत्तमेषु शुश्रूषा तवृत्तिकधा स्मृता ॥ २४५॥ किया है कि वे वैश्य या शूद्रका पेशा न करने -आदिपुराण पर्व १६ । पावें और वैश्योंको भी रोका है कि वे क्षत्री या उपर्युक्त श्लोकोंसे साफ जाहिर है कि भगवान् र _ शूद्रका काम न करने लगे। क्योंकि भगवानको आदिनाथने वर्णव्यवस्था दुनियाका व्यवहार चला '. यह भय था कि यदि राज्यकी तरफसे ऐसा कड़ा नेके ही वास्ते की है और राज्यावस्थामें की है। नियम नहीं होगा, तो वर्णसंकरता हो जायगी, उन्होंने राज्य पाकर उस समयके मनुष्योंको ' अर्थात् उनका यह विचार था कि इस समय तीन टुकड़ोंमें बाँटकर किसीको हथियार चलाना, जितने फौजी आदमियोंकी जरूरत है उतने किसीको सौदागरी आदि करना, और किसीको क्षत्री, जितने इस समय खेती करनेवाले, सेवा करना सिखाया। उस समय यद्यपि भगवानने पशु पालनेवाले, या व्यापार करनेवाले चाहिए हथियार चलाना और खेती, व्यापार आदि कर उतने वैश्य, और जितने इस समय सेवक चाहिए नेको उत्तम कर्म और सेवा करनेको नीच कर्म उतन शूद्र बनाये गये हैं; परन्तु यदि इनको - अपना पेशा बदलनेकी स्वतंत्रता होगी तो ससमझा; परन्तु सेवकोंके बिना भी दुनियाका न काम नहीं चल सकता है, इस कारण भगवानने " म्भव है किसी पेशेके आदमी जरूरतसे ज्यादा उन्हीं मनुष्योंमेंसे बहुतोंको नीच कर्भ भी ' हो जावें और किसी पेशेके बहुत कम, और यह भी सम्भव है कि किसी पेशेका कोई भी आसिखाया और उनको सेवक बनाया । वह कर्मभूमिका नया नया समय था । उस समयके दमी न रहे । ऐसा होनेसे कर्मभूमिका सर्व प्र. मनुष्योंमें किसी भी पेशेकी बाबत पूर्वके कोई बंध बिलकुल गड़बड़ हो जावेगा । इस वास्ते सबसंस्कार नहीं थे, इस कारण यह सम्भव था ही पेशोंके वास्ते ऐसी कड़ी आज्ञा दी गई। । कि जिन लोगोंको भगवानने नीच काम सिखाकर यद्यपि उस समय भगवानने राज्यदृष्टिसे सेवक बनाया था, वे सब लोग या उनमेंसे बहुतसे क्षत्रीका पेशा सबसे उत्तम समझा और स्वयं लोग यह नीच काम छोड़ देते और इससे उस हथियार चलाना सिखाया; परन्तु इस पेशेमें समयके प्रबन्धमें गड़बड़ी पड़ जाती। इस कारण सिर कटवाना पड़ता है, अनेक मनुष्योंका उस समय भगवानने यह भी आज्ञा जारी की सिर काटकर खूनकी नदियाँ बहानी पड़ती : Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522833
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size4 MB
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