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में मिलाने पर भी तेरा जी न भरा ? मुझसे विजयका बीड़ा माँगता है ? हाँ, यह विजयका बीड़ा है । पर तेरी विजयका नहीं, मेरी विजयका |
जैनहितैषी -
इतना मनमें कहकर जुझारसिंहने बीड़ेको हाथमें उठाया । एक क्षणतक कुछ सोचता रहा, फिर मुसकुराकर हरदौलको बीड़ा दे दिया । हरदौल सिर झुकाकर बीड़ा लिया, उसे माथे पर चढ़ाया। एक बार बड़ी ही करुणा के साथ चारों ओर देखा और बीड़े को मुँहमें रख लिया। एक सच्चे राजपूतने अपना पुरुषत्व दिखा दिया । विष हालाहल था; कंठ के नीचे उतरते ही हरदौल - के मुखड़ेपर मुर्दनी छा गई और आँखें बुझ गई । उसने एक ठण्डी साँस ली और दोनों हाथ जोड़कर जुझारसिंहको प्रणाम किया और जमीन पर बैठ गया । उसके ललाट पर पसी
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की ठण्डी ठण्ढी बूँदें दिखाई दे रही थीं और साँस तेजी से चलने लगी थी । पर चेहरे पर प्रसन्नता और सन्तोषकी झलक दिखाई देती थी जुझारसिंह अपनी जगह से जरा भी न हिला उसके चेहरे पर वीर - ईर्षा से भरी हुई मुसकुराहट छाई हुई थी, पर आँखों में आँसू भर आये थे । उजेले और अँधेरेका मिलाप हो गया था ।
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गोलमालकारिणी सभा ।
समाज इस समय बड़ी उलझनों में पड़ा हुआ "है । बेचारा एक उलझन मेंसे निकल नहीं पाता हैं कि दूसरीमें गढ़प ! यह देखकर समाज के कुछ शुभचिंतकोंने एक नई सभा स्थापित की है। स्थापकों का सिद्धान्त है कि कोई उलझन कभी सुलझती नहीं । लोग व्यर्थ ही सिरखप्पी किया करते और रागद्वेष बढ़ाया करते हैं । इन उलझनों को सुलझाने में जितना वक्त और बल लगाया
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[ भाग १३
जाता है उसका सौवाँ हजारवाँ हिस्सा भी यदि गोलमाल करनेमें लगाया जाय तो समाज उलझनोंके दुःखको एकदम भूल जाय । उलझनोंके विषदन्त उखड़ जायँ, वे किसीको सता ही न सकेँ । अतएव गोलमाल करना इस सभाका मुख्य उद्देश्य है और इसी कारण इसका अन्वर्थक नाम भी गोलमालकारिणी सभा रक्खा गया है । मैं श्रीगड़बड़ानन्द शास्त्री बहुसम्मति से इस सभा आनरेरी सैक्रेटरी बनाया गया हूँ । केवल परोपकारके लिए ही मैं इस सभा की रिपोर्ट जैनहितैषीके द्वारा प्रकाशित किया करूँगा । हितैषीके सम्पादकने मेरा चित्र और चरित्र प्रकाशित करनेका वादा करके मुझे रिपोर्ट भेजते रहने के लिए राजी कर लिया है ।
सभाका पहला जल्सा बड़ी धूमधाम से हुआ । सभासदों का उत्साह उमड़ा आता था । एक सज्जनने ब्रह्मचारी गोलमालानन्दजीको सभापति बनाने का प्रस्ताव उपस्थित किया और कहा कि गोलमाल करनेमें जितने सिद्धहस्त आप हैं, उतना इस समय कोई भी नजर नहीं आता । आप अपनी इस विद्याके बलसे पण्डित और बाबू, तेरहपंथी और बीसपंथी, छापिया और गैर छापिया, सबको ही वशमें रख सकते हैं। एक ही साथ आप सबके शुभचिन्तक हैं । सारी संस्थाओंकी पोलोंको आप अपने विस्तृत पर फैलाकर उसी तरह ढँके रहते हैं जिस तरह मुर्गी अपने अण्डों को। क्या मजाल जो उन्हें हवा लग जाय । यदि कोई जरा भी उनके विरुद्ध चूँ चरा करे, तो आप उस पर दो चार चोंचें जमा देने को भी तैयार रहते हैं । दूसरे सज्जनने इस प्रस्तावका अनुमोदन करते हुए कहा कि सबसे बड़ी बात यह है कि गोलमालानन्दजी अपने श्रद्धानको दिनों दिन शुद्ध करते जाते हैं और कुछ लोगोंने आपको जो 'सुधारक' के नाम से प्रसिद्ध कर रक्खा था उसे धोकर साफ करते जाते हैं । अब
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