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________________ ९२ हमारे पण्डित लोग चाहें और उद्योग करें तो इनमें जैन भी बहुतसे बन सकते हैं, पर क्या ये उनकी अपने पर छाया पड़ने देना भी पसन्द करेंगे ? यदि बहुत उदारता हुई तो कह देंगे कि जैनधर्म पालो मन्दिरके शिखरों परकी प्रतिमा - ओंके दर्शन करो, हमसे दस हाथ दूर खड़े रहो बस । पर क्या इस समय इन सेब तिरस्कारों को सहन करके भी कोई किसी धर्मको ग्रहण करनेके लिए तत्पर हो सकता है। लोग केवल धर्म ही नहीं चाहते हैं धर्मके साथ प्रेमकी भी उनके हृद आकांक्षा रहती है । एक बात और है । यदि प्रति दस वर्षमें हमारी संख्या में ८६ हजारकी कमी होती गई तो अनुमान ११० वर्षमें इन पुराने जैनोंका तो सर्व नाश हो जायगा, अब रहे नये जैन जो कि जात-पाँतका खयाल रखे बिना चाहे जिस जाति से बनाये जायँगे । सो जब इनकी संख्या काफी हो जायगी, तब इनके लिए जातिबिरादरी की क्या व्यवस्था की जायगी ? यदि इन्हें हमने अपनी जाति न मिलाया, ये मन्दिर पूजा आदिसे दूर ही रक्खे गये तब तो एक सौ दस वर्ष के बाद तमाम मन्दिरोंके ताले लगा देना पड़ेंगे और कहना होगा कि पूजाधिकारी जैन समाजका लोप हो गया । और यदि उनकी भी वर्तमान जातियोंके समान जुदी जुदी जातियाँ बना दीं, एक दूसरेसे उन्हें न मिल जाने दिया, तो फिर वर्तमान जैनोंके ही समान उनकी भी संख्या घटने लगेगी और उनकी भी कालरात्रि शीघ्र आ जायगी । जैनहितैषी - गरज यह कि ये सब बातें अविचारितरम्य हैं । जब तक वर्तमान जैनों की संख्या घटनेके कारण निष्पक्ष होकर न ढूँढ़े जायँगे और उन कारणोंके दूर करनेका प्रयत्न न किया जायगा तब तक जैनसमाजके लुप्त होनेका भयंकर संकट नहीं टलं सकता । Jain Education International [ भाग १३ ४ सम्मेद शिखरजी के मामले की अपील | हमारा विश्वास था कि हजारीबाग के मजिस्ट्रेटने शिखरजीके मुकद्दमेका जो फैसला किया है, उससे हमारे दिगम्बरी भाई सन्तुष्ट हो जायँगे और जो कुछ हक उन्हें मिले हैं, उन्हीं में संतोष करके वे अपील न करेंगे । समाजके दस पाँच अगुओंकी भी राय सुनी गई थी कि अब अपील न करनी चाहिए । जैनगंज के वर्तमान सम्पादक महाशयकी भी राय अपील करनेकी नहीं थी; फिर भी सुनते हैं कि एक दो सज्जनोंके जोर लगाने पर अपील करना निश्चित हो गया है और शायद वह दायर भी हो चुकी है । कहा जाता है कि मुकद्दमेकी केवल नकलों के तैयार कराने में ही लगभग १२-१३ हजार रुपया खर्च होगा ! यदि १०-१२ हजार रुपया ही और लगे, तो कमसे कम २५ हजार रुपया और भी इस मामलेमें खर्च हो जायँगे। जिनके हृदय है और जो देशकी दुर्दशाको जानते हैं, उन्हें इस बातसे अवश्य ही दुःख होगा । ५ आन्दोलन के सम्बन्ध में आक्षेप । तीर्थों के झगड़े मिटाने के लिए जो आन्दोलन शुरू किया गया है, उसके विषयमें अभी अभी सत्यवादी, जैनगजट, आदिमें कई लेख प्रकाशित हुए हैं । इन लेखोंके पढ़ने से यह मालूम होता है कि लेखक महाशय बहुत ही उत्तेजित हो उठे हैं और इस कारण उन्होंने बहुत से ऐसे आक्षेप कर डाले हैं जो भ्रम पैदा करनेवाले हैं । इस आन्दोलनका मुख्य उद्देश्य यह है कि श्वेताम्बरी और दिगम्बरियों के बीच में जो जगह जगह झगड़े होते हैं और मुकद्दमे चलकर लाखों रुपया बरबाद होते हैं वे न होवें और दोनों में For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522830
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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