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________________ जैनहितैषी [भाग १३ तैषीके गताङ्कमें प्रकाशित हुए प्रो० निहाल- भरोसे विद्यालयको अच्छा बतला दिया और करण सेठीके लेख पर ब्रह्मचारीजीने जैनमित्रके पण्डितजीकी बातोंसे प्रसन्न होकर यदि उन्होंने १२ वें अंकमें एक लेख प्रकाशित किया उनकी भी प्रशंसा कर दी, तो बस विद्यालयकी है । उस लेखका उद्देश्य यही है कि स्याद्वाद- दशा अच्छी होगई ! भले ही वहाँ खोजने पर भी पाठशालाकी दशा ही लोगोंकी दृष्टिमें विद्यालयके रजिस्टरोंका पता न लगे । परीक्षाबुरी प्रतीत न हो, सेठीजीके आक्षेपोंका समा- लयके रिमार्क और कितने विद्यार्थियोंने सरकारी धान होने न होनेसे कोई मतलब नहीं। पंडित परीक्षायें दीं, यह भी विद्यालयके अच्छे होनेका उमरावसिंहजीके तो आप बहुत ही बड़े भक्त हैं कोई प्रमाण नहीं है, जब तक यह न मालूम हो उनसे आप दबते भी खब हैं। उमरावसिंहजीने कि परीक्षामें बैठनेवाले विद्यार्थियोंकी वह पढ़ाई इस बातको स्वयं स्वीकार किया कि मैंने हड़ताल कितने समयकी है । और क्या केवल पढ़ाईहाँसे कराई है । और अधिष्ठाता पं० गणेशप्रसादजीने हमें अच्छी और बुरी दशाका निर्णय कर लेना कमेटीमें साफ शब्दोंमें कहा कि “ अपराध पं० चाहिए ? चारित्रका क्या कोई मूल्य ही नहीं है ? उमरावसिंहजीका है; किन्तु दूसरा अध्यापक विद्यालयमें पढ़ाई न होनेका कारण ब्रह्मन मिल सकनेके कारण उनकी खुशामद करनी चारीजी यह बतलाते हैं कि कमेटीके जुड़नेमें पड़ेगी। इस समय उन्हें पृथक् नहीं कर सकते; २५ दिन लग गये । पर यह असत्य है। किन्तु जब और कोई प्रबन्ध हो जायगा तो वे कमेटीकी तो इस बीचमें कई बैठकें हो गई थीं; भी पृथक किये जा सकेंगे।" तो भी आप पं० परन्तु कार्यकर्त्ता तो कोई काशीका था नहीं, उमरावसिंहजीको दोषी नहीं समझते और तब प्रबन्ध कौन करता ? और यदि कमेटी उनकी प्रशंसाके गीत गाये जाते हैं । उन्होंने न जुड़ सकी, तो यह किसका दोष है ? मंत्रीका अपमान किया, उन्हें पदच्युत करानेका संस्थाकी इससे बड़ी दुरवस्था और क्या हो प्रयत्न किया, यह तो कोई अपराध ही सकती है कि उसके तमाम कार्यकर्त्ता काशीसे नहीं हुआ; और हड़तालको तो आप कोई बड़ा बाहर रहते हैं । क्या इस त्रुटिको दूर करनेकी दोष ही नहीं समझते हैं। आप इस बातको स्वयं आवश्यकता नहीं है ? सेठीजीने लिखा था कि स्वीकार करते हैं कि बाहरी प्रबन्ध ठीक नहीं २७-२८ छात्रों पर भोजनादिमें ४०० मासिक है, फिर भी कहते जाते हैं कि पढ़ाई में काई त्रुटि व्यय होता है, सो इसमें तो कोई असत्यता नहीं है। हम कहते हैं कि यदि पढ़ाई में कोई नहीं मालूम होती । जैनमित्रके इसी ( १२ वें) त्रुटि नहीं है-जो कि मुख्य है-तो फिर बाहरी अंकमें स्याद्वादविद्यालयका दिसम्बर महीनेका प्रबन्धको सुधारनेकी अवश्यकता ही क्या है ? हिसाब छपा है। उससे मालूम होता है कि इस क्योंकि आपकी समझमें तो प्रबन्धका पढ़ाई महीनेमें ५५३।७)॥ खर्च हुआ है। इसमें पर कुछ असर ही नहीं पड़ता है। हड़तालें होने- अध्यापकोंका वेतन केवल १११-)। है । यदि पर भी, पढ़ाई बन्द रहने पर भी और कार्यकर्त्ता- पुस्तकालयका तथा मुतफरिर्क खर्च भी इसमें ओंकी आपसमें न बनने पर भी पढ़ाईमें कोई त्रुटि शामिल कर दिया जाय तो यह खर्च १४०) से नहीं होती है, तो फिर प्रबन्धकी जरूरत ही क्या अधिक नहीं होता है। तब ४१३) मासिक है ! शिखरजीके यात्रियोंने अथवा दूसरे दर्शकोंने खर्च विद्यार्थियोंके भोजनादिका हुआ या नहीं ? आकर यदि दश-बीस मिनिटके निरीक्षणके हाँ छात्रोंकी संख्यामें अवश्य ही थोड़ा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522830
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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